दो भाई

सच और झूठ जुड़वाँ भाई थे | दोनों कि एक सी शकल थी | दोनों एक ही तरह के, एक ही रंग के कपड़े पहनते थे | एक साथ खेलते, एक साथ पढ़ते | दोनों को देखकर लोग यह नहीं समझ पाते थे कि इनमे कोन सच है और कोन झूठ | पर दोनों को सभी पसंद करते थे | दोनों सुंदर थे और हसमुख भी | तब उनके नाम का मतलब वह न था जो आज है | वे तो बस ममतामयी माँ के दो प्य्रारे बेटे थे |

दोनों का बचपन तो खेल खुद में बीत गया | लेकिन किशोर होते ही दोनों अपने अपने मन कि करने लगे | दोनों में झगडा भी हो जाता | जब झूठ कोई शेतानी करके आता तो लोग शिकायत सच कि करते | जब सच कोई अच्छा काम करके आता तो प्रशंसा लुटने में झूठ बाजी मर ले जाता | झूठ भ्रम का फायदा उठाने में कभी न चुकता |

सच ने कई बार यह सोचकर सहन कर लिया कि चलो, मेरा भाई है | शायद सुधर जाएगा | माँ ने भी झूठ को सुधारनेकि बहुत कोशिश की | किन्तु झूठ बुरी आदते नहीं छोड़ सका | आखिर माँ ने उन्हें अलग अलग तरह के कपड़े पहनाने शुरू कर दिए | लोग उन्हें पहचानने लगे | किन्तु इससे भी समस्या हल न हुई | झूठ को जेसे ही मोका मिलता, वह सच जेसे कपड़े पहनकर मनचाहे काम कर आता और दोषी सच को ठहराया जाता |

एक दिन माँ बीमार पड़ी | उसके बचने की कोई आशा न रही | तब उसने दोनों बेटो को बुलाया | उनसे बोली – “मेरे बेटो | में अब मरनेवाली हू | क्या तुम मेरी अंतिम इच्छा पूरी करोगे ?” दोनों बेटे आज्ञा मानने के लिए तेयार हो गए | माँ ने कहा –“तुम दोनों एक दुसरे की तरह पीठ करके खड़े हो जाओ | जब तक में तुमसे आने के लिए न कहू तब तक ऐसे ही रहना |”

इतना कहकर माँ ने अंतिम साँस ले ली | तब से सच और झूठ एक – दुसरे के सामने नहीं आ रहे है | आज तक माँ के आदेश की प्रतिशा कर रहे है } लेकिन झूठ ने जो भ्रम फेलाया था उसका असर आज भी बाकि है | इसी कारण कई बार सच को भी लोग झूठ और झूठ को सच मान बैठते है |

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