बेलागांव, एक शांत और हरियाली से भरा गाँव, जहाँ वक्त जैसे थमकर चलता था। उसी गाँव की एक गली के आख़िरी मोड़ पर थी एक पुरानी सी दुकान — “समय मंदिर”। धूल से अटी पड़ी उस दुकान की लकड़ी की तख्ती अब मुश्किल से पढ़ी जाती थी। उस दुकान को चलाते थे हरीश चाचा, जो कभी गाँव के सबसे मशहूर घड़ीसाज़ माने जाते थे।
अब लोग मोबाइल से समय देख लेते हैं — तो घड़ी कौन पहनता?
लेकिन एक दिन, गाँव की 12 साल की नन्ही सी बच्ची नीलम उस दुकान के सामने रुकी और साहस जुटाकर अंदर चली गई।
“चाचा,” उसने उत्सुकता से पूछा, “क्या आपके पास कोई जादुई घड़ी है?”
हरीश चाचा मुस्कराए और बोले, “जादू तो नहीं, लेकिन एक ऐसी घड़ी है जो समय से बातें करती है।”
उन्होंने एक लकड़ी की अलमारी खोली और एक गोल सुनहरी घड़ी निकाली। वह घड़ी धड़क नहीं रही थी, लेकिन उसमें एक छोटी-सी चाबी लगी थी।
“इसे पहनने वाला समय से बाहर निकल सकता है,” चाचा ने धीरे से कहा।
“मगर संभलकर उपयोग करना। वक्त बड़ा संवेदनशील होता है।”
नीलम को यह सब एक खेल जैसा लगा। उसने झटपट घड़ी पहनी और चाबी घुमाई।
अगले ही पल… पूरा गाँव थम गया।
पत्तियाँ हवा में रुकी रहीं, लोग जमे हुए खड़े थे, और पक्षी अधर में उड़ते हुए स्थिर हो गए। नीलम अकेली चल रही थी—समय के बाहर।
वह एक अजीब सी सुरंग में पहुँची, जहाँ दीवारों पर उसके जीवन की झलकियाँ चल रही थीं। माँ की हँसी, पापा की डाँट, स्कूल के दिन… और फिर उसने देखा — उसके दादाजी स्कूल जा रहे हैं। उत्सुकता में उसने एक पुरानी तस्वीर को छू लिया।
झटका!
अब वह 50 साल पुराने बेलागांव में थी। वह वहाँ के लोग, पुराने घर और बिना बिजली के जीवन देखकर हैरान रह गई। लेकिन वह भूल गई थी कि समय के साथ छेड़छाड़ आसान नहीं होती।
जब वह वापिस लौटी, सब बदल चुका था।
माँ ने दरवाज़ा खोला और पूछा, “कौन हो तुम? किससे मिलना है?”
उसके कमरे में उसकी तस्वीरें नहीं थीं। उसके दोस्त उसे नहीं पहचानते थे।
वह भागती हुई “समय मंदिर” पहुँची… लेकिन दुकान गायब थी।
जैसे वो कभी थी ही नहीं।
अब नीलम के पास बस वह घड़ी बची थी, जो अब न तो चलती थी, न बोलती। वह रोज़ उसे देखती और सोचती —
“क्या मैं फिर से समय को ठीक कर सकती हूँ?”
Table of Contents
🕰️ भाग 2: समय की वापसी
एक साल बीत गया। नीलम अब ज़्यादा चुपचाप और सोच में डूबी रहने लगी थी।
एक दिन, गाँव के बाहर पुराने मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी हुई वह एक रहस्यमयी महिला से टकराई। महिला की आँखें चमक रही थीं और गले में घड़ी की चाबी जैसी आकृति लटक रही थी।
“तुमने समय को छुआ है,” महिला बोली।
“पर अभी भी सुधार का रास्ता है। क्या तैयार हो?”
नीलम ने बिना कुछ कहे सिर हिलाया।
महिला उसे एक गुफा के अंदर ले गई, जहाँ एक समय प्रवेश द्वार था।
“ये द्वार तुम्हें समय के प्रहरियों तक ले जाएगा,” उसने कहा।
“पर हर सवाल के बदले एक परीक्षा होगी।”
नीलम जैसे ही द्वार से गुज़री, वह एक सुनहरी सुरंग में पहुँची और फिर एक विशाल, हवा में तैरती घड़ी के सामने आ गई।
वहाँ तीन समय प्रहरी खड़े थे—भूत, वर्तमान, और भविष्य।
भूत बोला, “तुमने अतीत से छेड़छाड़ की।”
वर्तमान ने कहा, “तुम अपने समय में नहीं हो।”
भविष्य मुस्कराया, “लेकिन यदि इरादा सही है, तो समय माफ़ कर सकता है।”
नीलम ने अपनी गलती मानी और कहा,
“मैंने बस जानने के लिए तस्वीर को छू लिया था, मैं वापस सब कुछ सही करना चाहती हूँ।”
प्रहरियों ने उसे एक और मौका दिया—लेकिन इस बार शर्त थी:
वह अतीत में जा सकती है, पर कुछ छू नहीं सकती।
नीलम फिर से उसी पल पहुँची जहाँ दादाजी थे। इस बार उसने उन्हें बस दूर से देखा… और मुस्कराकर वापस मुड़ गई।
जब वह लौटी, सब कुछ वैसा ही था जैसा पहले था।
माँ ने दरवाज़ा खोला, “नीलम! कहा चली गई थी? खाना ठंडा हो रहा है!”
नीलम दौड़कर माँ से लिपट गई।
उसके दोस्त, उसकी तस्वीरें, उसका स्कूल — सब वैसा ही था।
और वह घड़ी? अब वह सिर्फ एक सामान्य घड़ी थी — या शायद अब समय उसे फिर से आज़माने की ज़रूरत नहीं समझता था।
कहानी की सीख:
- समय एक उपहार है, उसके साथ खेलने की नहीं, समझने की ज़रूरत है।
- हर गलती का समाधान है, अगर दिल से स्वीकार किया जाए।
- और सबसे बड़ी बात — हर समय दोबारा नहीं आता, पर सही वक्त पर सही फैसला सब कुछ बदल सकता है।