सच और झूठ जुड़वाँ भाई थे | दोनों कि एक सी शकल थी | दोनों एक ही तरह के, एक ही रंग के कपड़े पहनते थे | एक साथ खेलते, एक साथ पढ़ते | दोनों को देखकर लोग यह नहीं समझ पाते थे कि इनमे कोन सच है और कोन झूठ | पर दोनों को सभी पसंद करते थे | दोनों सुंदर थे और हसमुख भी | तब उनके नाम का मतलब वह न था जो आज है | वे तो बस ममतामयी माँ के दो प्य्रारे बेटे थे |
दोनों का बचपन तो खेल खुद में बीत गया | लेकिन किशोर होते ही दोनों अपने अपने मन कि करने लगे | दोनों में झगडा भी हो जाता | जब झूठ कोई शेतानी करके आता तो लोग शिकायत सच कि करते | जब सच कोई अच्छा काम करके आता तो प्रशंसा लुटने में झूठ बाजी मर ले जाता | झूठ भ्रम का फायदा उठाने में कभी न चुकता |