चालाकी का फल

बहुत पुरानी बात है| किसी गाँव में एक व्यापारी रहता था | उसका नाम मोहन था | मोहन गाँव नहर के किनारे बसा हुआ था | वह नमक का व्यापार करता था | उसके पास एक गधा था | वह रोज एक बोरी नमक गधे पर लादकर शहर ले जाता था | रोजाना एक ही रास्ते से आने-जाने के कारण व्यापारी का गधा शहर का रास्ता पहचान गया था |

मोहन भी समझ गया था की गधा शहर का रास्ता पहचाना गया है, इसलिए अब वह गधे पर नमक लादकर उसे अकेला ही शहर भेज देता था | उस शहर का व्यापारी गधे के ऊपर लदी नमक की बोरी उतार लेता था | इसके बाद गधा वापस लोट आता था | गाँव और शहर का रास्ते में नहर पडती थी, लेकिन नहर पर कोई पुल नहीं बना था, इसलिए नहर को उसमे से चलकर ही पार करना पड़ता था | बरसात के कारण एक दिन नहर में पानी बहुत बढ़ गया | जिससे गधे पर लदी हुई नमक की बोरी भीग गई |

पानी में भीग जाने से थोडा नमक पानी में घुल गया | जिससे बोरी कुछ हलकी हो गई | इससे गधे ने यह समझा की पानी में भीगने से बोझ कम हो जाता है | अब तो गधा रोज नहर के बीच में पहुचकर पानी में थोड़ी देर बेठ जाता | इससे बोरी गीली हो जाती और गीली होने से कुछ नमक पानी में बह जाता | इधर शहर के व्यापारी ने देखा की कुछ दिनों से नमक को बोरी पानी में भीगी हुई होती है | एक दिन उसने बोरी को तोलकर देखा | यह क्या? बोरी का भार तो सचमुच बहुत कम है | व्यापारी की समझ में कुछ नहीं आया की बोरी में नमक क्यों कम होने लगा है उसने मोहन को एक कागज पर यह सब लिखकर भेजा |

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बुरी संगती से छुटकारा

श्याम दास का एक ही पुत्र था | उसका नाम रवि था | श्याम दास अपने बेटे को बहुत करता था | वह उसे हर अच्छी से अच्छी जीजे ला कर देते | हर वो जीज ला कर देता जो उसे चाहिए होती | उसकी हर मांग पूरी करता था |

सिर्फ वो ही नहीं बल्कि रवि की माँ भी उसे बहुत प्यार करती थी | वह उसे माखन, मलाई खिलाकर खुश करती थी | परन्तु रवि को इस सब की कदर नहीं थी क्योकि वो बुरी संगत में पड़ गया था | जुआ खेलना, दोस्तों के साथ बजारों में घूम न और बाहर का खाना पीना |

रवि के माता-पिता ने बहुत समझाया | परन्तु रवि पर कुछ असर न हुआ | तब उसके पिता ने उसे समझाने का एक उपाय सोचा |

एक दिन रामदास ने रवि को पांच रूपये का नोट दिया और कहा – “बेटा, बाजार से पांच रूपये के सेब मोल ले आओ |”

रवि बाजार जाकर पांच रूपये में सात सेब खरीद लाया | सेब ताजा और अच्छे थे | तब पिता ने पचास पैसे और देकर कहा – “जाओ बाजार से एक सडा – गला सेब खरीद लाओ |”

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श्रम ही पूण्य

एक सेठजी थे | जितना कमाते थे, उससे ज्यादा दान देते थे | इसलिए उन्हें लोग “दानी सेठ“ कहने लगे  थे | दानी सेठ दरबार से कभी कोई खाली हाथ नहीं लोटा था |

किन्तु समय बदला | दानी सेठ को अपने व्यापार में भारी घाटा हुआ | धीरे – धीरे सारा व्यापार चोपट हो गया | दानी सेठ की साडी संपति बिक गई | दानी सेठ अपनी लाज छिपाने के लिए नगर छोडकर चल दिए |

एक नगर में आकर दानी सेठ मजदूरी करने लगे | वह बहुत ही मुश्किल से अपना और अपना परिवार का पेट भर पाता था |

एक दिन पत्नी ने कहा – “इस नगर का नगर सेठ तो आपका परिचित है | उसने आपसे लाखो रुपए कमाए है | क्या वह मुसीबत के इन दिनों में हमारी मदद नहीं करेगा? आप उसके पास जाकर तो देखिए?

पर पता नहीं क्यों सेठ नगर के पास जाने से संकोच कर रहा था इस हालत में भी वे दान देने से पीछे नहीं हटते थे | अभी भी जो कुछ होता वो जरूरत मंद को दे देते चाहे वो भूखे ही क्यों न रहे |

और एक दिन सेठ सेठानी के कहने पर नगर चले गए | उस नगर के लोगो ने सेठ को तुरंत पहचान लिया और उन्हें बड़े आदर सहित बैठाया और उनकी पूरी कहानी सुनी |

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पालतू कुता

एक व्यक्ति के पास एक समझदार तथा वफादार कुता था | वह उस कुते को बहुत प्यार करता था | वह दिन रात मुस्तेदी से अपने मालिक के कारखाने की देखभाल किया करता था |

एक दिन सड़क पार करते हुए वह तेजी से जाती हुई कर के नीचे आ गया | उसकी दोनों पिछली टागे बुरी तरह जख्मी हो गई | डॉक्टरों ने उसका बहुत इलाज किया परन्तु वे उसकी टागों को ठीक नहीं कर पाए | अब बाकि की जिन्दगी उसे घसीटते हुए कटनी थी क्योकि अब वह कारखाने की ठीक ढंग से देखभाल करने में असमर्थ था |

कुछ दिनों बाद, एक दिन उसे कारखाने के अहाते में उगे अदरक की महक आई | अदरक उजाड़ स्थान पर लगा था जहा कोई नहीं जाता था किसी तरह वो कुता वहा गया और अपने पंजो से जमीन कुरेदने लगा |

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धोखे की सजा

एक बार की बात है | की व्यक्ति के जीवित रहने की उम्मीद बिल्कुल समाप्त हो गई थी | उसने भगवान से विनती की कि यदि वह जीवित बच गया तो सो बेलो की बली भगवान को देगा | और भगवान ने उसकी विनती स्वीकार कर ली तथा वह व्यक्ति ठीक होने लगा |

परन्तु ठीक होने के बाद उस व्यक्ति में लालच आ गया और उसने बेलो की मुर्तिया बनवाई और वेदी पर रखकर उनमे आग लगा दी | तब उसने प्रार्थना की, “ओ स्वर्ग में रहने वाले भगवान, मेरी भेंट स्वीकार करो |”

भगवान यह देख क्र नराज हो गए हो उसे सबक सिखाने की लिए एक उपाय किया | उसी रात भगवान ने उस व्यक्ति को उसके सपने में दर्शन दिए और कहा – “हे मानव, समुंद्र किनारे जाओ और वहा पर तुम्हारे लिए सो मुद्रए रखी है |”

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जाओ और आओ

 

एक गाँव में एक धनी किसान रहता था | उसके पास बहुत सी जमीन थी | उसके यहाँ बहुत –से आदमी काम करते थे | उस किसान के दो लडके थे |

जब दोनों लडके बड़े हो गये, तो किसान ने उन्हें आधी – आधी जमीन बाँट दी | साथ ही उसने काम करने वाले आदमी भी बराबर – बराबर संख्या में बाँट दिये |

बड़ा लड़का बहुत सुस्त और लालची था | वह कभी अपने खेतो को देखने तक नहीं जाता था | वह अपने आदमियों से कहा करता था  “जाओ, खेतो पर जाकर काम करो |”

उसके आदमी मनमाना काम करते थे | काम कम करते थे, बाते अधिक | वे चिलम पिटे हुए इघर उघर की गप्पे उड़ाया करते थे | न समय पर हल चलते थे | न बीच बोते थे | न ठीक वक्त पर खाद डालते थे, न सिंचाई करते थे | धीरे – धीरे उपज घटने लगी और बहुत कम हो गई | किसान का बड़ा लड़का गरीब हो गया |

उघर छोटा लड़का बहुत मेहनती था | वह सवेरा होते ही कंधे पर हल रखकर अपने आग्मियो को पुकारता था – “आओ, खेतो पर चलकर काम करे |”

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