एक सेठजी थे | जितना कमाते थे, उससे ज्यादा दान देते थे | इसलिए उन्हें लोग “दानी सेठ“ कहने लगे थे | दानी सेठ दरबार से कभी कोई खाली हाथ नहीं लोटा था |
किन्तु समय बदला | दानी सेठ को अपने व्यापार में भारी घाटा हुआ | धीरे – धीरे सारा व्यापार चोपट हो गया | दानी सेठ की साडी संपति बिक गई | दानी सेठ अपनी लाज छिपाने के लिए नगर छोडकर चल दिए |
एक नगर में आकर दानी सेठ मजदूरी करने लगे | वह बहुत ही मुश्किल से अपना और अपना परिवार का पेट भर पाता था |
एक दिन पत्नी ने कहा – “इस नगर का नगर सेठ तो आपका परिचित है | उसने आपसे लाखो रुपए कमाए है | क्या वह मुसीबत के इन दिनों में हमारी मदद नहीं करेगा? आप उसके पास जाकर तो देखिए?
पर पता नहीं क्यों सेठ नगर के पास जाने से संकोच कर रहा था इस हालत में भी वे दान देने से पीछे नहीं हटते थे | अभी भी जो कुछ होता वो जरूरत मंद को दे देते चाहे वो भूखे ही क्यों न रहे |
और एक दिन सेठ सेठानी के कहने पर नगर चले गए | उस नगर के लोगो ने सेठ को तुरंत पहचान लिया और उन्हें बड़े आदर सहित बैठाया और उनकी पूरी कहानी सुनी |
दानी सेठ बोला – “में चाहता हु की तुम लोग मुझे थोडा धन दे दो | उस धन से में अपना व्यापार फिर से शुरू करू | किन्तु इस समय धन के बदले में देने को मेरे पास कुछ नहीं है | बस, जीवन भर दान देकर जो पूण्य कमाया है वही कहो तो बेच दू |”
नगर सेठ ने कहा – “अपने तो जीवन भर दान किया है | में उसी के पूण्य के बराबर धन आपको दे दुगा |”
दानी सेठ ने एक कागज पर अपना पूण्य लिखकर दे दिया | नगर सेठ ने उसे तराजू पर तोला तो वह केवल तीन सिक्को के बराबर निकला |
“क्या बात है दानी सेठ! अपना पूण्य बेचने में कंजूसी क्र रहे हो|”
“दानी सेठ ने कंजूसी शब्द तो सुना ही नहीं |”
“तो फिर कुछ बाकी हो तो वह भी चदा दो|” नगर सेठ ने कहा |
दानी सेठ बोले – “कल मजदूरी में मुझे चार मुट्ठी अनाज मिला था | एक भिखारी आ गया | मेने वह अनाज उसे दे दिया | उसके कुछ दाने अभी भी मेरी झोली में पड़े है | उन्हें ही तोलकर देखो |”
और नगर सेठ ने उस दानो को तराजू के पलड़े पर रख दिया और दुसरे पलड़े पर अपना धन चदाने लगा | उसने धीरे – धीरे अपनी साडी संपति चदा दी | और आखिर में खुद भी बेठ गया, किन्तु तीन दानोवाला पलड़ा न उठा |
वह दानी के सामने हाथ जोडकर खड़ा हो गया और बोला – “दानी सेठ, सपन्नता के दिनों में किए गए पूण्य से श्रम का कमाया पूण्य कही अधिक कीमती है | सच्चा पूण्य तो श्रम से ही मिलता है | आपको जितने धन की जरूरत हो, ख़ुशी से ले लो |
दानी ने पूछा आप कोन हो, तब नगर सेठ ने कहा की में वोही हु, जिसकी आप ने मुसीबत के समय मदद की थी | उस वकत आप ने होते तो शायद आज में होता ही नहीं |
सीख: पूण्य का फल हमेशा मिलता है और बुराई का भी | फिर क्यों न पूण्य किया जाए ताकि अच्छा फल मिले |