मेरा मस्तक अपनी चरण – धूलि तल में झुका दे |
प्रभु | मेरे समस्त अंहकार को आँखों के पानी में डूबा दे |
अपने झूठे महत्व की रक्षा करते हुए में केवल अपनी लघुता दिखता हु |
अपने ही को घेर में घूमता-घूमता प्रतिपल मरता हु |
प्रभु | मेरे समस्त अंहकार को आँखों के पानी में डुबा दे |
मात्र अपने निजी कार्यो से ही में अपने को प्रचारित न करूं |
तू अपनी इच्छा मेरे जीवन के माध्यम से पूरी कर |
में तुझसे चरम शांति की भीख मांगता हु |
प्राणों में तेरी परम कांति हो |
मुझे ओट देता मेरे ह्दय-कमल में तू खड़ा रह|
प्रभु| मेरे समस्त अंहकार मेरे आँखों के पानी में डुबा दे |
लेखक: श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर
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