ज़िन्दगी गम का नाम है या ख़ुशी का, मालूम नहीं
ज़िन्दगी गम का नाम है या ख़ुशी का, मालूम नहीं
पर पता नहीं क्यों बहुत अजब सी लगती है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी गम का नाम है या ख़ुशी का, मालूम नहीं
इंसान की ज़िन्दगी भी एक मेला है
जिस मेले में कभी गम है तो कभी है ख़ुशी
ज़िन्दगी का मेला जब शुरु होता है तब खुश होता है इंसान
पर जो जो आगे बड़ता है मेला, तब दुखी होता है इंसान
क्योकि उस दोरान बहुत कुछ खोता है इंसान
अपनी मासूमियत, और अपना वो बचपन
जिसमें उसे डर नहीं फिकर नहीं, चिंता नहीं
है तो सिर्फ प्रेम, ख़ुशी, शरारते
इंसान की ज़िन्दगी भी एक मेला है
जिस मेले में कभी गम है तो कभी है ख़ुशी
अब इंसान बचपन छोड़ आता है योवन में
जहा उसे घेरे है चिंता, जिमेदारी, फिर्क अपनों की
और इन सब में है थोड़ी सी ख़ुशी
ख़ुशी किसी के आने की, पर ये ख़ुशी भी नहीं है पूरी
क्योकि इस ख़ुशी में भी छिपी है चिंता, जिमेदारी, फिर्क अपनों की
बीत जाती है ज़िन्दगी अपनों की ज़िन्दगी बनाने में
बीत जाती है ज़िन्दगी अपनों की ज़िन्दगी बनाने में
हो जाती है अपनी ज़िन्दगी ख़तम, दुसरो की ज़िन्दगी बनाने में
ज़िन्दगी के इस सफ़र में छोड़ जाते है कुछ अपने
और रहे जाते है कुछ अपने ज़िन्दगी के इस सफ़र में
इंसान की ज़िन्दगी भी एक मेला है
जिस मेले में कभी गम है तो कभी है ख़ुशी
अब इंसान योवन छोड़ आता है बुडापे में
अब भी घेरे है उसे चिंता, जिमेदारी, फिर्क अपनों की
पर छोड़ जाते अपने ही उसे इस बुडापे में
और रहा जाता है वो इंसान अकेला ज़िन्दगी के इस सफ़र में
और रहा जाता है वो इंसान अकेला ज़िन्दगी के इस सफ़र में
फिर भी घेरे है उसे चिंता, फिर्क अपनों की
और एक दिन चला जाता है और ख़तम हो जाता है सफ़र ज़िन्दगी का
इंसान की ज़िन्दगी भी एक मेला है
जिस मेले में कभी गम है तो कभी है ख़ुशी
लेखक: युग्म