तीर्थ यात्रा का रहस्य

बहुत पुरानी बात है | एक बार एक ऋषि तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे की अचानक उनकी आँख लग गौ और उन्होंने एक सपना देखा | उन्होंने ने अपने सपने में २ देवताओ को आपस में बात करते सुना | पहला देवता कहता, “आज कल तो सभी लोग तीर्थ यात्रा पर जाते है किंतु किसी को परमात्मा का आशीर्वाद नहीं मिलता, विरले ही होते है जिनको परमात्मा का आशीर्वाद मिलता है |” दूसरा देवता कहता, “हा जैसे रमेश को मिला था वो हरिद्वार में गंगा के किनारे रहता है | परमात्मा का आशीर्वाद पाने के लिए जरूरी नहीं की तीर्थ यात्रा करे |”

इतना सुनते ही ऋषि की नीद टूट गई वो हरिद्वार की तरफ निकल पड़े रमेश की तलाश में | ऋषि उस रमेश से जानना चाहते थे की उसे परमात्मा का आशीर्वाद कैसे मिला | उन्हें बहुत वक़्त लगा रमेश की तलाश करने में | पर जब मिले तो उसे देख कर वो बहुत ही हेरान हुए क्योकि वो बहुत ही गरीब था मुस्किल से दो वक़्त की रोटी की कमा पता था |

ऋषि ने बहुत ही उत्क्स्ता से रमेश से पूछा, “की कभी तुम ने तीर्थ यात्रा की है या नहीं” यह सुनकर रमेश ने उत्तर दिया, “हे महात्मा में तीर्थ यात्रा कैसे कर सकता हु, में तो बहुत गरीब हु, मुस्किल से दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता हु | में तीर्थ यात्रा कैसे कर सकता हु | हा पर मेने एक बार बहुत कठिन से तीर्थ यात्रा के लिए पैसे जमा किये थे परन्तु जा नहीं सका था |”

ऋषि ने बड़ी उत्कास्ता से पूछा, “पर क्यों” |

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दिनेश ने कैसे सीखा धंधे का गुर

एक शहर में एक हरीश नाम का आदमी रहता था जो की बहुत गरीब था वह अपने परिवार का पालन पोषण बहुत मुस्किल से करता था | उसके घर में उसकी बीवी, एक बेटा और एक बेटी थी | हरीश एक ईमानदार इन्सान था वो अपने बेटे को भी ईमानदार बनान चाहता था और उसके लिए वो हर कोशिश करता था | उसका बेटा अब बड़ा हो गया था और उसके हाथ बटाने योग्य भी हो गया था | हरीश ने अपने रिश्तेदारों से पैसे उधर पर ले कर अपने बेटे को एक जूते की दुकान खोल कर दी शहर में ही | दिनेश बहुत मन लगा कर वहा पैर काम करता था और जूते बेचता था |

पूरा शहर जनता था की दिनेश अपने पिता की ही तरह बहुत ईमानदार है | तब भी दुकान खुलने के एक सप्ताह तक वो कोई जूता न बेच सका | दिनेश बहुत उदास था क्योकि उसको पता था की उसके पिता ने किस तरह से उसको यह दुकान खोल कर दी है | उसने इस बारे में अपने पिता से बात की | हरीश ने बहुत विनर्ता से अपने को कहा, “चिंता मत करो में तुम्हारी मदद करुगा “| अगले ही दिन हरीश भी अपने बेटे के साथ पूरा दिन उसकी दुकान पर रहा | पूरा दिन बीतने के बाद हरीश ने अपने बेटे दिनेश से कहा, “बेटा तुम केवल ईमानदारी के बूते पैर जूते नहीं बेच सकते | तुम्हे यह सीखना होगा की ग्राहक को कैसे खुश किया जाता है|” दिनेश अपने पिता का इशारा समझ गया |

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दया करना कभी निष्फल नहीं जाता

बहुत पुरानी बात है एक जंगल बहुत ग्रीषम ऋतू के दिन चल रहे थे | एक दिन दोपहर का समय एक शेर एक छायादार पेड़ के नीचे दो रहा था | उसी पेड़ के पास ही एक चुहिया का घर था | अचानक ही वह अपने घर से बाहर आई तो उसने शेर को वहा सोते हुए देखा |

यह देख कर उसे एक शरारत सूझी | उसने सोते हुए शेर के ऊपर कूदकर उसे जगा लेने की सोची | परन्तु हुआ बिलकुल उल्टा | शेर की नीद टूट गई और उसने उसे अपने पंजे में पकड़ लिया | वह उसे मर कर खाने की सोच ही रहा था की इसने में वह गिडगिडा कर बोली, “आप बहुत महान हो, मेरे प्राण बख्श दीजिए हुजुर | एक न एक दिन में इस दया का बदला अवश्य चूकाउगी |”

यह बात सुन कर शेर को उस चुहिया पर दया आ गई और उसने उसे छोड़ दिया | और कुछ दिनों बाद जंगल में एक शिकारी आ गया और उसने शेर को पकड़ने के लिए एक जाल बिछा दिया और दुर्भाग्य से शेर उस जाल में फस गया | शेर जोर जोर से दहाड़ने लगा मदद के लिए |

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