बहुत पुरानी बात है एक जंगल बहुत ग्रीषम ऋतू के दिन चल रहे थे | एक दिन दोपहर का समय एक शेर एक छायादार पेड़ के नीचे दो रहा था | उसी पेड़ के पास ही एक चुहिया का घर था | अचानक ही वह अपने घर से बाहर आई तो उसने शेर को वहा सोते हुए देखा |
यह देख कर उसे एक शरारत सूझी | उसने सोते हुए शेर के ऊपर कूदकर उसे जगा लेने की सोची | परन्तु हुआ बिलकुल उल्टा | शेर की नीद टूट गई और उसने उसे अपने पंजे में पकड़ लिया | वह उसे मर कर खाने की सोच ही रहा था की इसने में वह गिडगिडा कर बोली, “आप बहुत महान हो, मेरे प्राण बख्श दीजिए हुजुर | एक न एक दिन में इस दया का बदला अवश्य चूकाउगी |”
यह बात सुन कर शेर को उस चुहिया पर दया आ गई और उसने उसे छोड़ दिया | और कुछ दिनों बाद जंगल में एक शिकारी आ गया और उसने शेर को पकड़ने के लिए एक जाल बिछा दिया और दुर्भाग्य से शेर उस जाल में फस गया | शेर जोर जोर से दहाड़ने लगा मदद के लिए |
दहाड़ने की अवाज सुन कर चुहिया अपने बिल से बाहरआई और उसने देखा की शेर जाल में फसा हुआ है और मदद के लिए पुकार रहा है | शेर को इस हालत में देख कर चुहिया को अपना वादा शायद आ गया और सोचने लगी की सही यही वक्त है है उसकी दया का बदला चुकाने का | अत: वह शेर के पास गई और जाल को अपने दांतों से काटने लगी और कुछ ही समय में शेर मुक्त हो गया |
सीख: अच्छाई कभी व्यर्थ नहीं जाती | इसलिए हमेशा अच्छा करो सभी के साथ |