माँ का सपना

सुनाती थी न तुम कहानी

भारत था सोने की चिडिया

बहती थी दूध दही की नदीया,

वही सपना देखती हु में बार बार

उसी सपने को करने साकार

अंतर मन में सुय किरणों को भरती हु माँ

 

कहती थी न तुम की

भारत है देवो की भूमि,

भारत है ज्ञानियों की भूमि,

फिर से राम राजय लाने का सपना

देखती हु में बार बार

 

आशाओ के सूरज को

आँखों में भरती हु,

छल छदम मिट जाये धरा से,

मानवता का संचार हो,

दानवता जा दूर हटे,

ऐसा ही सपना देखा था,

देखती हु में बार बार

 

भारत हो ताज विशव का

नवयुग के जन जन में

नवचेतना जागृत हो,

यही सपना तो देखती हु में बार बार

लेखक: नीलम

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