बहुत पुरानी बात है एक बार दशहरे के अवसर पर राजा हरिदेव राय ने अपने सभी दरबारियों को अलग – अलग झकिया तेयार करने के लिए कहा | और एक इनाम की रकम गोषित कर दी की जिसकी भी झाकिय सबसे अच्छी होगी उसको इनाम की रकम दी जाएगी | या सुनकर दरबारियों में उत्क्स्ता बड गई और तेनाली दास और सभी साथी भी झकिया तेयार करने में जुट गई |
दशहरे का दिन आ गया | राजा ने सभी दरबारियो की झकियो का निरक्षण किया | सभी की झकिया राज्य का इतिहास और संस्कृति को दर्शा रही थी तथा कुछ झकिया राज्य के लोगो और प्रक्रतिक सोंदर्य को दर्शा रही थी | राजा को सभी की झकिया अच्छी लग रही थी सभी दरबारियों ने बहुत मेहनत की थी अपनी अपनी झकियो को अच्छा दिखने के लिए | सभी दरबारियों ने झकिया बनाई थी परन्तु राजा को तेनाली दास की झकी नहीं दिख रही थी राजा के पूछने पर किसी इ बताया की तेनाली दास दूर एक पहाड़ी पर बेठा हुआ है |
राजा उसी समय पहाड़ी की तरफ निकल पड़ा | वहा पहुच कर राजा ने तेनाली दास को एक डरावनी और कोफ्नाक मूर्ति के पास बेठा था | राजा ने उस से पूछा, “क्या यही झकी तेयार की है तुमने “
तेनाली दास ने मूर्ति से कहा, “महाराज को जवाब दो मृति, महाराज कुछ पूछ रहे है | तभी मूर्ति में से अवाज आई | हे महाराज में उसी रावन की आत्मा हु जिसको हर साल आप लोगो जलाते है | आप लोग जलाते तो है परन्तु में कभी नहीं मरता | में तो सभी के अंदर रहता हु हर वक्त | दिन प्रति दिन मेरी ताकत में वृधि हो रही है | और में अपने साथ गरीबी, भूख, दुःख, क्रोध, शोषण आदि भी लाया हु |
राजा यह सुनकर बहुत आचर्य में था और उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे, इतने में राजा ने कहा, में तुम्हे ही ख़तम कर देता हु तुम्हारे टुकरे टुकरे कर दुगा जिससे सारी बुराई ख़तम हो जाएगी | यह सुनकर मूर्ति जोर जोर से हसने लगी और कहा, “महाराज किस किस को ख़तम करोगे, इस मूर्ति को या इस संसार के हर इन्सान को क्योकि में तो इन्सान के अंदर कही न कही वास करता हु |”
यह बात सुनकर राजा बहुत उदास हो गया और बोला, “तुम बिलकुल ठीक कहे रहे हो | रावन तो हर इन्सान के अंदर वास करता है और हम लोग सदियों से सिर्फ एक पुतला ही जलते आ रहे है | असल में तो रावन हम सभी के अंदर है जिसे हमे खुद ही ख़तम करना है | यह हम सभी की लड़ाई है अपने अंदर छिपे रावन से | अगर हम अपने अंदर छिपे रावन को हरा दे तो या संसार कितना अच्छा, कितना स्वच्छ, और आनंदमय हो जाए गा, जहा कोई बुराई, देवेश, गरीबी, भूख, दुःख कुछ नहीं होगा बस होगा तो प्रेम ही प्रेम |”
यह सुनकर मूर्ति की पीछे से तेनाली दस का मित्र बाहर आया और दोनों ने राजा ने शमा मागी | राजा ने दोनों को गले लगा लिया और कहा, “आज तुम दोनों मेरी आँखे खोल दिया और यही मायनो में मुझे दशहरे का मतलब भी समझाया, की हमे भरी रावन को नहीं अपितु अपने अंदर छिपे रावन को जलाना चाहिए | में तुम दोनों को प्रथम पुरुस्कार देने की घोषण करता हु |
सीख: भाइयो और बहनों में आप से विनती करता हु की इस कहानी से हमे क्या सीख मिलती है ये आप बताये सभी को अपने “comment” के माध्यम से |