बहुत पुरानी बात है | हिमालय की गुफाओ में के बहुत बड़े महात्मा रहते थे | वे हमेशा प्रभु में ही लीन रहते थे | तपस्या करते करते उनके बाल बहुत घने हो गए और इतने घने की उनके घनी जटाओ में एक तोते ने घोंसला बना लिया | फिर उसने उसमे ही अंडे दे दिए और कुछ दिनों बाद उसमे से बच्चे निकले, जो महात्मा के इर्द-गिर्द फुदकने लगे |
कुछ समय और बीता, और महात्मा की तपस्या खत्म हुई | उन्होंने अपनी आँखे खोली तो उन्हें पता चला की उनके सिर के उपर एक तोते ने अपना घोसला बना रखा है | उनको इस बात की बहुत ज्यादा ख़ुशी हुई और अपने आप को महान तपस्वी समझने लगे क्योकि तोते और उसके बच्चो की रक्षा उनके बालो में हुई थी |
एक दिन महात्मा हिमालय की पहाडियों में भ्रमण कर रहे थे की अचानक उनके उपर फूलो की वर्षा होने लगी | उसे आश्चर्य हुआ की उनके उपर फूलो की वर्षा कोन कर रहा है | तभी आवाज आई “महात्मा जी आपकी कठोर तपस्या से देवलोक के सभी देवी देवता बहुत खुश है | लेकिन आप को एक अहंकार भी हो गया है |
महात्मा ने पूछा, “वो क्या?” |
आप को अहंकार हो गया है है की आप के समान कोई और तपस्वी नहीं है और ऐसा सोचना बिलकुल गलत है | आप से भी बड़े – बड़े तपस्वी है | अगर यकीन नहीं आता तो हरिद्वार जा कर आप भोलू से मिल सकते हो | जो आप से भी बड़ा तपस्वी है |
यह सुनते ही महात्मा जी का गुस्सा सातवे आसमान पर जा पहुचा और जोर से चिलाते हुए बोले, “यह हो ही नहीं सकता, मुझ से बड़ा तपस्वी इस धरती पर पैदा नहीं हुआ है | लेकिन फिर भी में जा कर देखू गा |”
यह बोलते ही महात्मा हरिद्वार की तरफ चल पड़े | हरिद्वार पहुचकर, वे भोलू का पता लगाने लगे | पता लगते समय उनको पता चला को भोलू कोई महात्मा नहीं बल्कि एक ग्रहस्थ है | वह एक पंसारी की दुकान चलाता है शहर में | महात्मा तुरंत वहा पहुचे | भोलू ने उनका हार्दिक स्वागत किया और बोले, “महात्मा जी, में आप की क्या सेवा कर सकता हु |”
महात्मा बोले, “मेने सुना है की तुम बहुत महान तपस्वी हो |”
यह सुनकर भोलू बोला, “में कोई तपस्वी नहीं हु महात्मा जी | में तो बस एक आम आदमी हु और ईमानदारी से अपना काम करता हु | और जितना हो सके सब की मदद करता हु | मुझे लगता है की इस से बड़ी कोई तपस्या नहीं है |”
यह सुनकर महात्मा जी बहुत प्रभावित हुए एक प्रश्न पूछा, “मनुष्य का सच्चा धर्म क्या है ?”
भोलू ने कहा, “मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है सत्य, अहिंसा, और ईमानदारी | में एक दुकानदार हु लेकिन मे उतना ही मुनाफा लेता हु जितना की में अपने परिवार का भरन – पोषण कर सकू | जितना हो सके जरुरुत मंदों की मदद कर देता हु | पर में अपने उपर अहंकार नहीं करता | में किसी की भी साथ शत्रुता नहीं करता, सभी के साथ प्रेम से बात करता हु | इन सब कामो से में बहुत खुश रहता हु |
यह सब सुनकर महात्मा जी और अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने भोलू के चरण स्पर्श किये और हिमालय की और चल पड़े |
सीख: कभी भी अपने उपर घमंड नहीं करना चाहिए |