एक जंगल में बटेर पक्षियो का बहुत बड़ा झुंड था | वे निर्भय होकर जंगल में रहते थे | इसी करण उनकी संख्या भी बढती जा रही है |
एक दिन एक शिकारी ने उन बटेरो को देख लिया | उसने सोचा की अगर थोड़े – थोड़े बटेर में रोज पकडकर ले जाऊ तो मुझे शिकार के लिए भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी |
अगले दिन शिकारी एक बड़ा सा जाल लेकर आया | उसने जाल तो लगा दिया, किन्तु बहुत से चतुर बटेर खतरा समझकर भाग गए | कुछ नासमझ और छोटे बटेर थे, वे फंस गए |
शिकारी बटेरो के इतने बड़े खजाने को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था | वह उन्हें पकड़ने की नई – नई तरकीबे सोचने लगा | फिर भी बटेर पकड़ में न आते |
अब शिकारी बटेर की बोली बोलने लगा | उस आवाज को सुनकर बटेर जैसे ही इकटठे होते कि शिकारी जाल फेककर उन्हें पकड़ लेता | इस तरकीब में शिकारी सफल हो गया | बटेर धोखा खा जाते और शिकारी के हाथो पकड़े जाते | धीरे – धीरे उनकी संख्या कम होने लगी |
तब एक रात एक बूढ़े बटेर ने सबकी सभा बुलाई | उसने कहा – “इस मुसीबत से बचने का एक उपाय में जनता हु | जब तुम लोग जाल में फंसे ही जाओ तो इस उपाय का प्रयोग करना | तुम सब एक होकर वह जाल उठाना और किसी झाड़ी पर गिरा देना | जाल झाड़ी के ऊपर उलझ जाएगा और तुम लोग निचे से निकलकर भाग जाना | लेकिन वह कम तभी हो सकता है जब तुममे एकता होगी |”
अगले दिन से बटेरो ने एकता दिखाई और वे शिकारी कि चकमा देने लगे | शिकारी अब जंगल से खाली हाथ लोटने लगा | उसकी पत्नी ने करण पूछा तो वह बोला – “बटेरो ने एकता का मंत्र जान लिया है | इसलिए अब पकड़ में नहीं आते है | तू चिंता मत कर | जिस दिन उनमे फुट पड़ेगी, वे फिर पकड़े जाएगे |”
कुछ दिन बाद ऐसा ही हुआ | बटेरो का एक समूह जाल में फंस गया | उसे लेकर उड़ने कि बात हुई | बटेरो ने बहस छिड गई | कोई कहता –“में क्यों जाल उठाऊ? क्या यह सिर्फ मेरा ही कम है?” दूसरा कहता –“जब तुझे चिंता नहीं है तो में क्यों जाल उठाऊ |” तीसरा कड़ता –“ऐसा लगता है जैसे उठाने का ठेका तुम्ही लोगो ने ले रखा है |”
वे आपस की फुट में पड़कर बहस कर ही रहे थे कि शिकारी आ गया और उसने सब बटेरो को पकड़ लिया | अगले दिन बूढ़े बटेर ने बचे हुए बटेरो को समझाया –“एकता बड़े-से-बड़े संकट का मुकाबला कर सकती है | कलह पर फुट से सिर्फ विनाश होता है | अगर इस बात को भूल जाओगे तो तुम सब अपना विनाश कर लोगे |” और फिर वह शिकारी कभी भी बटेर नहीं पकड़ सका |
सीख: एकता में ही ताकत है |
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Regards :
surjeet singh
lecturer : political science