हिंदुस्तान में चार धाम माने जाते है – ये धाम है बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री | इनसे जुडी हुई कई पुराणिक और धार्मिक कथाए है | ये महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल भी है | इस चारो धामों में सबसे अधिक प्राक्रतिक सोंदर्य से परिपूर्ण और सबसे कम खचीली यात्रा है यमुनोत्री की |
समुद्र तल से 10,805 फीट की उचाई पर अमुना नदी की उद्गम स्थली यमुनोत्री, उतरांचल के उतर कशी के बीच में सिथत है | यह गंगोत्री के बिरुद्ध दिशा में ऋषिकेश और उतर कशी के बीच में सिथत है | इस तीर्थ स्थल के लिए ऋषिकेश से हनुमान चठी के लिए बसे आदि मिलती है | आगे की शेष यात्रा पैदल, पालकी, टटू या कुलियों की पीठ पर की जाती है | हरिद्वार और क्षेत्र के अन्य मुख्य स्थानों से भी हनुमान चठी आसानी से पहुंचा जा सकता है | इसके दर्शन के लिए बुजुर्ग और अंपग व्यक्ति भी किसी देवी उत्साह से भरे हुए वंहा पहुच कर ही दम लेते है | वे हडिया कंपा देने वाली ठन्ड की भी परवाह नहीं करते | एक तरफ उनकी आस्था है और दूसरी तरफ स्वंय यमुना नदी है है जो गुप्त रूप से बहती हुई मैदानों में उतरती है |
यमुना नदी यमुनोत्री में कालिंद पर्वतों में सिथत च्न्पस्र ग्लेशियर से निकलती है और प्रयाग में आ कर इसका असित्तव गंगा में विलीन हो जाता है | लिकिन इससे इसका महत्त्व जरा भी कम नहीं होता | गंगा यदि आध्यात्मिकता, पवित्रता और पाप से मुक्ति की नदी है तो यमुना प्रेम की प्रतीक है |
सर्दी में अक्टूबर से लेकर अप्रैल-मई तक छह महीने बर्फ जम जाने की करण बद्रीनाथ मंदिर के द्वार बंद रहते है इसलिए इस दोरान यात्रा भी स्थगित रहती है | बर्फ पिधलने पर अप्रैल – मई में यह यात्रा फिर से शुरू होती है | उस समय यात्रियों की संख्या भी सबसे अधिक होती है |
बद्रीनाथ के बाद यात्री गंगोत्री और केदारनाथ धाम आते है | यंहा तक अच्छी सडके और धर्मशालाए आदि है | इनकी तुलना में यमुनोत्री कम यात्री पहुचते है |
यमुनोत्री पहुचने के लिए मोटर वाहन का रास्ता स्यनोचटी तक जाता है | यात्री पना सामान यही छोड़ कर हनुमान चठी पहुचते है | यहाँ हनुमान गंगा डोडिताल से आती हुई यमुना से मिलती है | यहाँ का प्राक्रतिक द्रश्य बड़ा ही सुहावना है | यहाँ यात्री जीप द्वारा फूलचठी पहुचते है | यह यात्रा जोखिम भरी होती है क्योकि यहाँ की पहडिया खडिया मिटी की है और नई – नई बनी सडक धुमावदार है| बरसात से यह सडक फिसलन भी होती है जिससे हर क्षण दुर्धटना की आशंका बनी रहती है |
फूलचठीसे यात्रियों को पैदल ही जाना पड़ता है | अधिक से अधिक यहाँ से टूट किराए पर लिया जा सकता है | यात्रा के समय भी यहाँ ठंड होती है और अगर बरसात हो तो ठंड बहुत बड जाती है | यात्रीगण फूलचठी से यमुनोत्री तक की छह किलोमीटर की यात्रा पैदल ही तय करते है लेकिन बहुत से लोग टटू, कांधी या डानडी में यात्रा करते है | दुसरे दिन सुयोर्द्य के साथ ही यात्री यमुनोत्री के लिए निकल पड़ते है | समुंद्र तल से 3323 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान की यात्रा फूलचठी से और भी कठिन हो जाती है क्योकि यह रास्ता इस स्थान पथरीला, संकरा, फिसलन भरा खतरनाक है | यमुनोत्री में शिखर पर एक छोटा सा मंदिर नजर आता है जिसमे यमुना और श्री कृषण की मुर्तिया है | मंदिर का शिखर समुंद्र तल से 4421 मीटर ऊँचा है |
यमुनोत्री पहुचने पर सबसे पहले यात्री वहा के स्वच्छ और शीतल जल में स्नान करते है | यहाँ यमुना बाल्यवस्था में है | यमुना का निर्मल और मनोहारी रूप यात्री के ह्रदय में स्वत: ही भक्ति का भाव जगाता है | स्नान के बाद यात्री दिव्य शिला का पूजन करते है जो सूर्य कुंड के निकट है | इस शिला से सल्फर युक्त गर्म पानी के स्त्रोत निकलते है | यहाँ युमना की पूजा श्री कृषण की रानी के रूप में की जाती है और उन्हें वाही वस्तुए भेंट को जाती है जो हम नव वधु को देते है जैसे पूजा की थाली में मिठाई, लाल सुनहरी चुनरी, चुडिया, सिंदूर, शीशा, नारियल, फूल आदि |
लेखक: युधिषीटर लाल कक्कड़