मनुष्य की ज़रुरतो की पूर्ति के लिए धन बहुत ज़रूरी है इसलिए धन की कामना करना भी स्वाभिक है | इस धरती पैर ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसे धन न चाहिए हो पर प्रश्न तब उठता है जब धन, साधन न रह कर साध्य बन जाता है |
धन का अपने आप में कोई महत्व नहीं है जब तक उससे हमारी ज़रूरते पूरी न हो जैसे भगवान् क्योकि जब तक हमारे पास खुशिया है तब तक भगवान् है और जब कुशिया नहीं भगवान् भी नहीं | ज़रूरत से जयादा धन भी व्यर्थ है अगर वो किसी के काम न आय | आज का समाज बीमार है क्योकि इस समाज में व्यक्ति का सम्मान उसके गुणों और उसकी योग्यता के आधार पर नहीं अपितु धन के आधार पर होता है | निजी और सार्वजनिक समारोहों में धनपति को विशिष्ट स्थान दिया जाता है | प्रशासन में सामान्यत: कोई भी ऐसा कार्य नहीं होता जो धन के बूते न करवाया जा सके | आज के व्यावसायिक समय में हर वस्तु बिकाऊ है अमीर आदमी अपने के बल पर नेतिक और अनेतिक काम करवाने में सक्षम होते है |