क्यों करते है लोग लक्ष्मी की अंधी उपासना

मनुष्य की ज़रुरतो की पूर्ति के लिए धन बहुत ज़रूरी है इसलिए धन की कामना करना भी स्वाभिक है | इस धरती पैर ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसे धन न चाहिए हो पर प्रश्न तब उठता है जब धन, साधन न रह कर साध्य बन जाता है |

धन का अपने आप में कोई महत्व नहीं है जब तक उससे हमारी ज़रूरते पूरी न हो जैसे भगवान् क्योकि जब तक हमारे पास खुशिया है तब तक भगवान् है और जब कुशिया नहीं भगवान् भी नहीं | ज़रूरत से जयादा धन भी व्यर्थ है अगर वो किसी के काम न आय | आज का समाज बीमार है क्योकि इस समाज में व्यक्ति का सम्मान उसके गुणों और उसकी योग्यता के आधार पर नहीं अपितु धन के आधार पर होता है | निजी और सार्वजनिक समारोहों में धनपति को विशिष्ट स्थान दिया जाता है | प्रशासन में सामान्यत: कोई भी ऐसा कार्य नहीं होता जो धन के बूते न करवाया जा सके | आज के व्यावसायिक समय में हर वस्तु बिकाऊ है अमीर आदमी अपने के बल पर नेतिक और अनेतिक काम करवाने में सक्षम होते है |

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नानक की सीख

वर्ष 1521 में गर्मी के दिनों की शुरुआत थी | मक्का और बगदाद की अपनी यात्रा उरी कर गुरु नानक और उनके साथी मरदाना पेशावर और रावलपिंडी होते हुए अमीनाबाद पहुचे| इससे पहले कि  वे अपने घर कि और बढते वहा बाबर कि सेना का हमला हो गया | जैसे कि उन दिनों प्राय: होता था,हमलावरों ने बहुत जोर-जुल्म किया और उनके लोगो को बंदी बना लिया | गुरु नानक और मरदाना भी केद कर लिए गए |

जब बाबर को पता चला कि एक बहुत पहुचे हुए संत को बंदी बना लिया गया है तो उसने तुरंत उनकी रिहाई का आदेश दिया | लेकिन गुरु नानक ने साफ साफ कह दिया कि जब तक अन्य केदियो को नहीं छोड़ा जाएगा तब तक वे भी कारावास से बाहर नहीं निकलेगे| नके इस निर्णय से चकित हो कर बाबर ने उनसे मिलने कि इच्छा जाहिर कि | गुरु नानक ने निर्भय हो कर धर्म का मर्म समझाया और कहा कि चुकी सभी इन्सान ईश्वर या खुदा कि ही संतान है अत: किसी पर अत्याचार मत करो | बाबर उनसे इतना प्रभावित हुआ कि उनसे तत्काल सभी केदियो को

रिहा कर दिया | हालाँकि इसके बाद भी गुरु नानक ने अमीनाबाद नहीं छोड़ा | वे वहा काफी समय तक उन लोगो के बीच रहे जिन्होंने हमले के दोरान बहुत दुःख-दर्द सहा था | वे उन्हें तरह तरह से सात्वना देते रहे और होसला बंधाते रहे |

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