सिखों के पहले गुरु – नानक देव जी – Part 3

सुन 1497 सन 28 वर्षीय गुरु नानक अपनी पहली लम्बी यात्रा पर निकल पड़े | इस दोरान उन्होंने सत करतार का प्रचार किया और संपूर्ण उतर भारत में भुमते रहे | इस दोरान उन्होंने लाहोर, सेयदपुर करनाल, पानीपत, हरिद्वार, म्हनू का टीला (दिली), मथुरा, बनारस, पटना जैसे स्थानों में जाकर लोगो को सच्चे मार्ग पर चलने का उपदेश दिया |

एक बार की बात है नानक जी हरिद्वार में कुछ पडितो को गंगा जी की धारा में खड़े होकर सूर्य को जम अर्पित कर रहे थे | यह देख कर गुरु नानक ने उनसे पूछा, “अप्प लोग यह क्या कर रहे हो?”

तब उन्होंने उतर दिया, “हम लोग अपने पूर्वजो को जल अर्पित कर रहे है | सूर्य को दिया हुआ जल सीधा हमारे पूर्वजो को लगता है | और यह सुनते ही नानक जी अपने सारे कपड़े उतार दिए और गंगा जी में कूद पड़े और पशिचम दिशा में खड़े होकर जल देने लगे | वहा खड़े लोगो ने पूछा महाराज सूर्य इधर है आप गलत जगह पत जल अर्पित कर रहे हो | नानक जी बोले में अपने खेतो को जल दे रहा हु अभी आप ने ही तो कहा है की ऐसा जल देने से उनको जल पहुच जाता है जिसको आप देना चाहते हो इसलिए में अपने खेतो को दे रहा हु | यह सुनकर सभी हंस पड़े और बोले ऐसा थोड़ी न होता है | ऐसा जल कैसे पहुच सकता है | यह सुनकर गुरु नानक जी हस पड़े बोले, “तुम भी तो यही कर रहे हो, सूर्य को जल देने से यह जल कैसे उन तक पहुच सकता है |”

यह बात सुनकर उन सभी लोगो को अपनी गलती का अहसास हुआ और गुरु नानक जी के शिष्य बन गए |

जो गुरु नानक को अपना अंत समय निकट आया तो उन्होंने सारी सिख संगत को बुलाया और फिर उन्होंने भाई लहना के हाथ ने पांच पैसे और एक नारियल रखा और उनके माथे पर तिलक लगाकर उने अपनी गद्दी सोंप दी | फिर वे संत संगत को सबोधित करके बोले, “आज से भाई लहना आप सबके गुरु है | आज से ये गुरु आनंद देव कहलायेगे |”

वो फिर वो 22 सिंतबर 1539, को गुरु नानक परमतत्व में लीन हो गए | जब उन्होंने अपना देह छोड़ा तो दोनों सम्प्रदायों के लोगो ने अपने अपने रीती – रिवाजो से उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे | लेकिन जब उनके शरीर पर से चादर हटाई गई तो वहा शरीर के स्थान पर फूलो का ढेर पाया जिन्होंने हिन्दुओ और मुसलमानों ने आपस में बाँट लिया |

गुरु नानक जी के उपदेश मानव जीवन का हमेशा मार्गदर्शन करते रहगे और प्रतेक मनुष्य को नि:स्वार्थ सेवा करने का संदेश देते रहेगे |

अगले गुरु आनंद देव जी

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