तुम्हे तम्हारा अस्तित्व देने वाली नारी है |
तुम्हारा परिवार शुरू करने वाली नारी है |
निस्वार्थ सेवा करने वाली भी नारी है |
मन्दिरों की मूर्तियों में भी नारी है |
बचपन में यही तुम्हारा घर सजाती है |
तुम्हारे आगन की रोनक बढ़ाती है |
तुम्हे अभिमान करना सिखाती है |
फिर उम्र का नया पड़ाव आता है |
पराये धन होने का उसे मतलब बताता है |
फिर वो ही नारी शादी का बंधन बनाती है |
वो ही नारी पत्नी का भी कर्तव्य निभाती है |
जिन्दगी के नए अनुभव सिखाती है |
माँ बन नई जिन्दगी को जन्म देती है |
फिर जिन्दगी ने ली करवट |
अब उसकी संतान उसे सहारा देती है |
वह छड़ी से चलने वाली बन जाती है |
अपने परिवार को पूरा का चली आती है |
फिर भी समाज उसकी निंदा ही करता है |
कभी दुष्कर्म तो कभी हिंसा करता है |
फिर उसी को बदचलन साबित करता है |
हे मानव! नारी के हर रूप का सम्मान करो
उसके मान पर आंच न आने दो |