जैसा की हम सभी जानते है की पांडव पांच भाई थे | एक दिन पांचो भाई मैदान में गेंद खेल रहे थे | अचानक गेंद उछली और पास के एक कुए में जा गिरी | खेल बंद हो गया |
अभी वे बच्चे ही तो थे इसलिए वो सभी बहुत दुखी हुए | वे सोचने लगे की अब गेंद को कुए से बाहर कैसे आएगी |
पांचो पांडव कुए में झाकने लगे | गेंद पानी के ऊपर तेर रही थी परन्तु कुआ बहुत गहरा था उसमे उतरने का साहस किसी में न था | इतने में वहा से एक ऋषि जा रहे थे | बालको को उदास देखकर उनसे उनकी उदासी का कारण पूछने लगे |
तभी उनमे से एक भाई ने कहा – मुनिवर, हम लोग यहाँ पर गेंद खेल रहे थे और फिर गेंद कुए में जा गिरी | परन्तु हम उसे निकल नहीं पा रहे है | इसलिए हम सभी लोग बहुत उदास है |
ऋषि ने बोले बस इतनी सी बात – “लो में अभी तुम्हरी गेंद निकाल देता हु |”
इतना कहा कर ऋषि ने अपना धनुष निकला और बाण चढाया और कुए में छोड़ दिया | और वह बाण गेंद में लग गया और फिर ऋषि ने दूसरा बाण और फिर तीसरा बाण और फिर बाण पर बाण छोड़े |अंत में ऋषि ने ऊपर वाले बाण को पकडकर ऊपर खिंचा और गेंद को कुए के बाहर निकला |
यह सब देख कर पांडव बहुत चकित हुए | उन्होंने साडी बात अपने ताऊ महाराज धृतराष्ट्र से कही | महाराज धृतराष्ट्र ने उस ऋषि को अपने भतीजे – पांड्वो को और अपने पुत्रो को धनुविधा सिखाने का कम सोंप दिया |
उस ऋषि का नाम था – गुरु द्रोणचार्य |