एक पत्र देशवासियों के नाम

16 सितंबर, 1927

फेजाबाद जेल

मेरे प्यारे देशवासियों,

भारत माता को आजाद करवाने के लिए रंगमंच पर हम सभी भूमिका अदा कर चुके है | गलत किया या सही, हमने जो भी किया, स्वंतत्रता पाने की भावना से प्रेरित होकर किया | हमारे अपने निंदा करे या प्रंशसा, लेकिन हमारे दुश्मनों तक को हमारी हिम्मत और वीरता की प्रंशसा करनी पड़ी है | कुछ लोग कहते है की हमने गुलामी को न सहा और देश में आंतकवाद फेलाना चाहा पर यह सब गलत है | हमारे कितने ही साथी आज भी आजाद है , फिर भी हमारे किसी साथी ने कभी भी किसी की नुकसान पहुचाने वाले तक पर गोली नहीं चलाई | यह हमारा उद्देश्य नहीं था | हम तो आजादी हासिल करने के लिए देशभर में क्रांति चाहते थे |

सरकार भी अंग्रेजो की और जज भी अंग्रेजो के, फिर हमे न्याय की मांग किससे करे | जजों ने हमे निदर्यी, बर्बर, मानवता पर कलंक आदि विशेषणों से पुकारा है | हमारे शासको की कोम के जनरल डायर ने निहत्थो पर गोलिया चलवाई | बच्चो, बुढो, स्त्री , पुरषों – सब पर दनादन गोलिया दागी गई | तब इंसाफ के इन ठेकेदारों ने अपने भाई-बंधुओ को किन विशेषणों से संबोधित किया था | फिर हमारे साथ ही यह सलूक क्यों?

हिंदुस्तानी भाइयो | आप चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय के मानने वाले हो, देश के काम में साथ रहो | आपस में व्यर्थ न लड़ो | रास्ते चाहे अलग हो, लेकिन उद्देश्य तो सबका एक है | सभी कार्य एक ही उद्देश्य की पूर्ति के साधन है | एक होकर देश की नोकरशाही का मुकाबला करो | अपने देश को आजाद कराओ |

देश के साथ करोड़ मुसलमानों में से में पहला मुसलमान हु जो देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ रहा हु, यह सोचकर मुझे गर्व महसूस होता है | सभी को मेरा सलाम | हिंदुस्तान आजाद हो | सब खुश रहे |

आपका भाई,

अशफाक

फांसी के तख्ते पर चढने से तीन दिन पहले अशफाक उल्ला खान ने यह पत्र लिखा | फांसी के तख्ते पर चढ़ते हुए जोर से बोले, “मेने कभी किसी आदमी के खून से अपने हाथ नहीं रंगे | मेरा इंसाफ खुदा के सामने होगा |”

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