में इस उम्मीद से डूबा की तू बचा लेगा

में इस उम्मीद से डूबा की तू बचा लेगा

अब इस के बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा !!

 

में इस उम्मीद से डूबा की तू बचा लेगा

में भुज गया तो हमेशा के लिए भुज ही जाउगा

कोई चिराग नहीं हु जो फिर जला लेगा

अब इस के बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा !!

 

में इस उम्मीद से डूबा की तू बचा लेगा

अब इस के बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा !!

 

में उसका हो नहीं सकता बता देना उसे

लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

अब इस के बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा

में इस उम्मीद से डूबा की तू बचा लेगा !!

लेखक: स्वर्गीय विष्व नाथ

1 thought on “में इस उम्मीद से डूबा की तू बचा लेगा”

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