बहुत पुरानी बात है एक छोटा सा राज्य जिसका नाम भानगढ़ था भानगढ़ के राजा रविचन्द्र बहुत ही अच्छे इन्सान थे उनकी प्रजा बहुत संतुष्ट थी राजा के मन में भी सभी के लिए बहुत प्यार था उनके दरबारी और उनकी प्रजया भी उनका बहुत आदर सम्मान करती थी |
उनके दरबारियों में एक दरबारी हरीश भी था हरीश सभी दरबारियों में से सबसे बुद्धिमान था जब कोई भी समस्या उलझ जाती तो सभी लोग हरीश जी से ही परामर्श करते और हरीश उनकी सहायता करते |
एक दिन की बात है राजा रविचन्द्र को एक स्व्प्पन आया की उन्होंने के महल बनवाया है | यह कोई आम महल नहीं था उन्होंने देखा उनका यह महल न तो जमीन पर था और न ही पूरा आसमान में |
उस महल में दुनिया के सारे ऐशो आराम मोजूद थे दुनिया में ऐसा महल दूसरा कोई न था |
सुबह जब वो उठे तो राजा को महल बार – बार याद आ रहा था राजा ने अपने सभी दरबारियों को अपना यह स्वपन सुनाया और सभी ने राजा के इस काल्पनिक महल की बहुत तारीफ की |
राजा बोले, “में चाहता हु आप लोग किसी ऐसे कारीगर को खोजे जो हमारे इस स्वपन को पूरा कर सके | यह सुनकर सभी दरबारी हेरान रह गए | ऐसा कैसे संभव है हवा में लटका हुआ महल?
कुछ दिनों बाद राजा ने सभी दरबारियों को बुला कर पूछा, :क्या आप लोगो को कोई मिल जो मेरा स्वपन पूरा कर सके |”
कब किसी से कोई उतर नहीं मिला तो राजा को गुस्सा आ गया आदेश दे दिया की “ ५ दिनों के अंदर अंदर न मिला तो सभी दरबारियों को उमर केद की सजा सुना दी जाएगी |”
यह सुनकर डर गए और सभी लोग भागे – भागे हरीश के पास गए जो कुछ कल रात पहले ही अपने गाँव से वापिस आये थे | फिर सभी दरबारियों ने उनको सारी बात बताई |
अगले ही दिन राजा के दरबार में एक भिखारी आया राजा ने न्याय मागने |
राजा ने पूछा, ‘क्या दुःख है तुम्हे?”
भिखारी ने कहा, महाराज, में बर्बाद हो गया | मेरी सारी जीवन की जमा पूंजी किसी ने चुरा ली है |”
राजा ने पूछा, “कोन है वो, क्या तुम उससे जानते हो?”
“जी महाराज में उसे जनता हु परन्तु में आपसे अपनी जान की भिक्षा मांगता हु |”
राजा बोला, “डरो मत, हम तुम्हारे साथ हु, बोलो कोन है वो |”
भिखारी बोला, “महाराज आप, कल रात मेने एक स्वपन देखा की आप मेरे घर में घुस कर मेरी सारी जमा पूंजी चुराकर ले गए |”
यह सुनकर राजा के होश उड़ गए और बोले, “यह क्या कह रहे हो तुम, तुम ठीक तो हो | यदि हम ने तुम्हे वचन न दिया होता तो तुम्हे अभी मृत्यु दंड दे देते |”
तुम बहुत बड़े मूर्ख हो, जो स्वपन की बात सच मानकर हमारा समय नष्ट करने यहाँ आगे | भला स्वपन भी कभी सच होता है |”
तभी हरीश बोले, महाराज, हम भी यही कहना चाहते है की स्वपन कभी सच होता है क्या? और इस प्रकार हरीश ने सभी दरबारियों की जान बचाई और राजा की अंसभव हठ छोड़ने को राजी कर लिया |