यमुना के किनारे के पेड़ था उस पेड़ पर एक कोआ रहता था | वह खुद को चालक, समझदार, और होशियार रहता था वह बहुत ज्यादा धमंडी था |
एक दिन एक हंस बहुत दूर से उड़ता हुआ उस पेड़ पर आ कर बेठ गया | वह वहा रात बिताने के लिए आया था | कोए ने सुबह उठकर हंस को देखा | वह हंस के पास आया और बोला भाई तुम कहा से आए ह, क्या तुम उड़ना आता है ? अगर नहीं आता हो में तुम्हे उड़ना सिखा सकता हु | तुम मेरे चेले बन जाओ, में तुम्हे उड़ना सिखा दुगा |
हंस चुपचाप सुनता रहा | हंस ने उसकी बात अनसुनी कर दी और कुछ देर बाद वो वह से उड़ गया | यह देखकर कुआ भी उसके पीछे पीछे उड़ गया | रास्ते में कुआ बोला, “तुम्हे सही से उड़ना नहीं आता है | तुम तो बिलकुल सीधा – सीधा उस रहे हो, मुझे देखो में तो किसी भी तरह से उड़ सकता हु | यह देखो मेरी कलाबाजी उडान, में टी नाचते हुए भी उड़ सकता हु | वह कभी दाए तो कभी बाए, तो कभी ऊपर तो कभी नीचे उड़ता | हंस अपनी उडान भरता रहा | अब दोनों के दोनों यमुना नदी के ठीक उपर आ गए | थोड़ी देर बाद कुआ थक गया और उसने बोलना भी बंद कर दिया था कुआ बहुत दूर तक आ गया था और अब वापिस जाना चाहता था | वह बहुत ज्यादा थक गया था और उसकी साँस भी फूल गई थी | हंस चुपचाप यह सब देख रहा था |
कुआ इतना थक गया था की वह नीचे गिरने लगा | उसे महसूस हो गया था की अब वो नहीं बचेगा | आज वह नदी में गिर जायेगा | यह सब देखकर हंस भी नीचे आ गया | उसने कोए से कहा, “तुम एक काम करो, तुम मेरी पीठ पर बेठा जाओ, और कोए ने ठीक वैसे ही किया | वह हंस की पीठ पर बेठ गया | हंस ने उसे थोरी देर बाद उसे उसी के पेड़ पर छोड़ दिया | कोए ने अपना सिर झुकाते हु हंस का धन्यवाद किया और उसे माफी भी मांगी और बोला, “हंस भाई, तुम्हारी तरह उड़ने की कोशिश करने में में अपनी खुद की चाल भूल गया था |
सीख: कभी भी दुसरो को देख कर काम न करो, आप को जो आता है उसी में महारथ हासिल करो |