सोने का लोभ

एक शहर में एक सेठ मायादास रहता था और वो बहुत धनी थे | उनके पास बहुत सारा सोना चांदी भी था परन्तु फिर भी उन्हें बहुत कम लगता था | वो चारो पहल सिर्फ और सिर्फ धन कमाने ले लिए सोचता रहता था | एक दिन उसके पास एक साधु आया | मायादास ने उस साधु की खूब सेवा की | यह देखकर साधु बहुत खुश हुए और बोला, “तुम क्या चाहते हो?”

मायादास ने मोका का फायदा उठाया, “उस ने झट से बोल दिया, महाराज में जिस को भी हाथ लगाऊ जो सोने की हो जाए |”

यह संकर साधु हस पड़े और बोला ठीक है, ऐसा ही होगा | और फिर साधु वहा से चले गए | साधु के जाते ही मायादास ख़ुशी से पागल हो गया | उसने लकड़ी के दरवाजे को छुआ और वह सोने का बन गया | यह देखकर मायादस बहुत खुश हो गया | फिर उसने सभी को धीरे धीरे हाथ लगाना शुरू कर दिया और सभी कुछ सोने का होने लगा | सोने की कुर्सी, सोने का मेज, सोने का पलंग, सोने के कपड़े, सोने का रथ | यहाँ तक की उसने जानवरों को भी सोने का बना दिया |

अब वह थक चूका था उसने अपने नोकर से पानी का गिलास मंगवाया, गिलास को छुते ही वह भी सोने का हो गया | मायादास अब घबरा गया | फिर उसने खाना मंगवाया, वह भी सोने का हो गया | अब वह किसी को भी छुता वह सोने का हो जाता | वह भूखा प्यासा रह गया |

कुछ दिन बीत गए बिना खाए पिये | अब उसे सारा धन बेकार लगने लगा | अब उसे समझ आ गया की रोज मरा की चीजे जैसे की पानी, खाना, सोने-चांदी से ज्यादा जरूरी है |

साधु फिर से उनके पासआए और यह देखकर मायादास उनके चरणों में गिर गया और माफी मांगने लगा और कहा, “साधु महाराज मुझे माफ कर दो, और अपना आशीर्वाद वापिस ले लो, अब मेरा सारा लालच ख़तम हो गया | “

यह सुनकर महाराज बोले, “मायादास, तुमने लालच छोड़ दिया है जाओ अब आराम से रहो | में तुम्हे अपने जादू से आजाद करता हु |”

यह सुनकर मायादास खुश हो गया और वह लालच की केद से छुट गया |

सीख: लालच बुरी बला है |

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