जैसा की में आप सभी के साथ रमेश की ज़िन्दगी के कुछ पल बाँट चूका हु | आज कुछ और रमेश की ज़िन्दगी के पल आप लोगो के साथ बाँट रहा हु |
जैसा की मेने कहा था की वो ज़िन्दगी जीने से डर रहा है लड़ रहा है अपने हलातो से, लड़ रहा है अपने मन में चल रहे तुफानो से | भाइयो, बहनों ऐसा लग रहा है मनो ज़िन्दगी भी रूठ गई है रमेश से | दुःख खत्म लेने का नाम ही नहीं ले रही है | एक खत्म होता है तो दूसरा शुरू हो जाता है |
पिछले साल उसके पिता का देहांत हुआ था | ऐसा नहीं है की मीठे पल नहीं है रमेश की ज़िनदगी में, है पर बहुत बहुत थोड़े से और भी आते है दुखो के साथ | इसी साल उसके यहाँ एक नन्ही परी ने भी जन्म लिया पर नोकरी न होने के कारण बभौ कर्जा लेना पड़ा जो की अभी तक चूका रहा है | और अब तो उसकी नोकरी भी खतरे में है | पता नहीं है अपनी जीविका कैसे चलाए गया इतनी महगाई में |
अभी रमेश अपने पिता के जाने के सदमे से बहार निकला भी नहीं था की उसकी माँ को brain tumor हो गया | दोस्तों में कैसे कहू उसकी कहानी क्योकि मुझे भी रोना आ रहा है | मेरा मन भी द्दुख रहा है | पर मुझे तो बताना ही है |
रमेश अपने दुःख सिर्फ मेरे साथ ही बांटता है | रमेश बताता है की उसके परिवार में बहुत सारे लोग है जिनकी देखभाल उसको करनी है | पर वो कैसे करे क्योकि देखभाल के लिए भी पैसे चाहिए जो की उसके पास नहीं है | माँ के ऑपरेशन में भी कम से कम ३ लाख रुपए चाहिए है | घर चलाने के लिए भी चाहिए और भी बहुत सारे खरचे होते है परिवार के | वो मुझसे पूछता है की “क्यों ज़िन्दगी इम्तिहान लेती है अच्छे लोगो के साथ ही” बुरे लोग तो पैसा भी कमाते है और अपनी ज़िन्दगी भी अच्छे से गुजारते है | फिर क्यों भगवान अच्छे लोगो का ही इम्तिहान लेता है, क्यों इतना दुःख देता है की उसका भी विश्वास डोल जाए उसके प्रति |
रमेश कहता है की अब वो हार चूका है ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते | अब वो भी चेन की नीद लेना चाहता है | भाग जाना चाहता है इन सबसे, पर वो कहता है की मेरी किस्मत इतनी ख़राब है की में भाग भी नहीं सकता क्योकि मेरे ऊपर जिमेदारिया है मेरे अपनों की | अगर में भाग गया तो उनका क्या होगा | बस यही एक किरण है मेरे अन्दर जिसके लिए में जी रहा हु वर्ना में तो कब का मर ही गया होता |