बरतनों की मोत

रामू बड़े मजाकिया इन्सान थे | वो हर हलात में खुश रहते थे और अपने मजाकिए स्वभाव, हाजिरजवाबी और होशारियो से सबको हंसाते रहते थे |

एक बार की बात है | रामू के एक पड़ोसी के घर घर दावत थी | पड़ोसी खाना बनाने के कुछ बरतन रामू के घर से मांग कर ले गया | दुसरे दिन वह बरतन वापिस करने आया |

उन बरतनों में से एक बरतन ऐसा था जो रामू का नहीं था | रामू ने देखा तो पड़ोसी से कहा, “करे भाई, यह तो मेरा बरतन नहीं है |”

पड़ोसी ने कहा, “ रामू भाई, बात दरसल यह है की जब आपके बरतन मेरे यहाँ रहे तो उन्ही में से किसी ने यह बच्चा दिया है | अप आपने बरतनों का बच्चा है | इसलिए आपको लोटा दिया है |”

रामू ने कोई जवाब नहीं दिया | चुपचाप सारे बरतन ले कर रख लिए | कुछ दिनों बाद रामू के यहाँ दावत का मोका आया | उन्होंने अपने पड़ोसी से कुछ बरतन उधर लिए | लेकिन कई दिन बीत गए, रामू ने पड़ोसी के बरतन वापिस नहीं किए |

पड़ोसी ने काफी दिनों तक इंतजार किया | आख़िरकार एक दिन वह खुद रामू ने घर अपने बरतन लेने पहुच गया | रामू जैसे भूल ही गुए थे | बोले, “कहिए कैसे आना हुआ | “

पड़ोसी थोडा हेरान हुआ | वह बोला, “ भाई वो मेरे बरतन……|”

रामू ने बड़ी उदास आवाज में कहा, “भाई, मुझे बड़ा दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की आपने बरतनों की मोत हो गई है | भला होनी को कोन टाल सकता है |”

यह सुनकर पड़ोसी का मुह खुला का खुला रह गया } बड़ी मुश्किल से उसके मुह से निकला, “ यह आप क्या कहे रहे है रामू सहाब ? बरतनों की मोत ? या नामुनकिन है |”

रामू ने आराम से कहा, अरे भाई जब बरतनों को बच्चा हो सकता है तो उनकी मोत को भला क्यों रोक सकता है | सब ऊपर वाले की मर्जी है भाई |

पड़ोसी कुछ नहीं बोला और चुप चाप वहा से चला गया |

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