चाँद तारो की चादर तले
निदिया ने जब बुलाया था
हा| कोई बहुत खास
मेरे सपनों में आया था |
पता नहीं क्या था
क्यों था, कैसा था और क्यों था
पता था तो बस इतना
जो भी था अदभुत था
सुंदर थे पहाड वहा के
सजे-धजे बफिलो से
बहती थी गंगा कल-कल
प्रक्रति कर रही थी मजे
बस याद है तो इतना,
गुफा में था और चमक रहा था एक तेज
असमंजस की उस घड़ी में
कर ली मेने आँखे बंद
आँखे खुली तो पाया मेने
महादेव को अपने समक्ष
बुलाया उन्होंने मुझे
और ले चले अपने संग
पूछा मेने आखिर क्यों
जीवन में होते है दुःख
बोले वो, बिना दर्द के
एहसास नहीं होता है सुख
में बोला- कसूरवार न होते
हुए भी मिलती है हमे सजा
वो बोले – जीवन का मूल मंत्र
है मेहनत, लगन, और ईमानदारी
फिर मेने बोला उनसे
भक्तो में भक्ति नहीं है
वे बोले – अच्छे कर्म और सच्ची निष्ठां
जीवन की शक्ति यही है
उनके उत्तर सुनकर में तो
सचमुच ख़ुशी से झूम उठा
पर कुछ नहीं था सामने
जब में बिस्तर से उठा
पता चला की वो था सपना
जो नयनो ने केद किया पर था |