असली खजाना

बहुत साल पहले एक गाँव में एक सीताराम नाम का एक गरीब चरवाहा रहता था | वह पुरे दिन में सिर्फ अपनी भेड़ो को उन से बनी उन से बने फटे – पुराने कपड़े बस इतना ही जुटा पाता था परन्तु फिर भी वह बहुत ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन बीता रहा था |

वह बहुत इमानदार, और बुद्धिमान था | उस गाँव के सभी लोग उसका बहुत आदर करते थे | सीताराम उनकी सभी परेशानियों को मिनटों में सुलझा देता था |

धीरे धीरे उसकी बुद्धिमानी की चर्चा वहा के राजा के कानो में पहुची | उस समय वहा का राजा कुछ परेशानियों से जूझ रहा था उसने सीताराम को बुलवा भेजा और अपनी सभी परेशानियों का हल माँगा | सीताराम ने राजा की सभी परेशानियों का हल दे दिया | अब वह भी सीताराम का कायल हो गया और खुश होकर उसे अपने दरबार में स्थान दे दिया |

धीरे धीरे राजा बिना सीताराम के कोई भी काम नहीं करता था | वह हर वक़्त राजा के साथ ही रहता था | यह सब देख कर दुसरे दरबारियों के मन में उसके प्रति इर्षा पैदा हो गई और वे मोका देखकर राजा के कान भरने लगे | लेकिन सब व्यर्थ था क्योकि राजा के मन में सीताराम के लिए स्नेह और सम्मान बहुत ज़यादा था | उल्टा दरबारियों को राजा ने बहुत खरी-खोटी सुनाई |

एक दिन की बात है की राजा ने सीताराम को बुलाया और अपने उतरी प्रदेश का गवर्नर नियुक्त कर दिया और बोले, “सीताराम हमे पता है की हम तुम्हे अपने से अलग कर रहे है लेकिन क्या करे, मजबूरी है | उतरी प्रदेश का शासन सही नहीं है | वहा के लोग मनमानी कर रहे है और वहा की प्रजा को तंग कर रहे है | सिर्फ तुम ही हो जिस पर मुझे पूरा भरोसा है | तुम आज ही वहा के लिए रवाना हो जाओ और वहा का कार्य संभालो |

सीताराम ने राजा का आदेश मान कर, वहा से रवाना हो गया | सीताराम ने पुरे प्रांत में घूम – घूमकर लोगो से बात की और हालत का जायजा लिया | उसने वहा के लोगो को बहुत दुखी देखा और कोशिश की उनके दुखो को दूर करने की | और दोषी लोगो को सजा देना शुरू कर दिया | धीरे धीरे अपराध कम होने लगे और प्रांत में शांति फेल गई |

सीताराम का समान पुरे राज्य में फेल गया और राजा तक भी सारी खबरे पहुची | राजा को बहुत ख़ुशी होती थी | सीताराम हमेशा प्रांत का दोरा किया करता था वो जब भी दोरा करते थे तो उनके घोड़े के साथ एक घोडा और चलता था | जिस पर एक बड़ा सा बक्सा रखा रहता था | कोई नहीं जनता था की उस बक्से में क्या है | सीताराम कभी भी उस बक्से को अपने से अलग नहीं करता था |

बस दरबारियों को मोका मिल गाय राजा के काम भरने को | लेकिन राजा दरबारियों की बातो पर ध्यान नहीं देता था | परन्तु अकेले में राजा भी सोचता था की ऐसा क्या है उस बक्से में, जो सीताराम उसे अपने साथ साथ रखता है | यह सवाल उसे हर वक़्त सताता रहता था |

और एक दिन उसे सीताराम को बुलवा भेजा | सीताराम सुनते ही राजधानी की और चल पड़ा | उसके साथ उसका बक्सा भी था | अगले दिन सीताराम दरबार में पहुचा और राजा को प्रणाम किया और एक और खड़ा हो गया |

आइये सीताराम जी आइये, “हमने तुम पर यकीन किया, इज्जत दी और तुमने हमारे साथ दोखा किया |”

“बिलकुल नहीं राजा जी “ सीताराम ने कहा |

“झूठ बोल रहे हो तुम, क्या हमारा दिया हुआ धन तुम्हारे लिए काफी नहीं जो तुम बेईमानी से धन बटोर रहे हो “ राजा ने कहा |

“नहीं महाराज आप को किसी ने गलत बात बताई है “ सीताराम ने कहा |

यह सुनते ही राजा को गुस्सा आ गया और चिल्लते हुए बोला, “फिर इस बक्से में क्या है जो तुम सपने साथ लिए फिरते हो?”

“इस बक्से में मेरा खजाना है महाराज” सीताराम ने कहा |

राजा ने कहा, हम देखना चाहेगे, “खोलो इस बक्से को |”

सीताराम ने उस बक्से को खोला तो सब की आंखे खुली की खुली रह गई | उस बक्से में भेड़ की उन से बना हुआ एक पुराना फटा चोगा था, जेसा की चरवाहे पहनते थे |

राजा ने पूछा, “सीताराम, यह क्या है और इसे तुम अपने साथ क्यों रखते हो?”

महाराज, यह मेरा पुराना चोगा है इसे पहनकर ही में भेड़ चराया करता था यही मेरा असली खजाना है में इसे हमेशा अपने साथ रखता हु ताकि मुझे यह याद रहे की में एक चरवाहा था और मेरे मन में कभी घमंड पैदा न हो |

यह बात सुनकर राजा को और दरबारियों को अपनी गलती का अहसास हो गया | राजा ने उठाकर सीताराम को अपने गले लगा लिया और बोले, “धन्य हो तुम सीताराम, तुम्हे पाकर यह धरती भी धन्य हो गई |”

सीख: आप जीवन में कुछ भी बन जाओ, परन्तु अपने कल को कभी मत भूलना |

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