कैसे मिले जेवर

एक नगर में एक बहुत बड़ा धनी व्यापारी रहता था जिसका नाम मोहनदास था | वह बहुत इमानदार था उसकी बड़ी इज्जत थी | उसकी दुकान के पास ही एक बुढिया रहती थी वह बहुत दिनों से सोच रही थी की तीर्थ यात्रा पर जाने की परन्तु उसके पास कुछ सोने-चांदी की चीजे थी | जो की वो घर पर छोड़ना नहीं चाहती थी | तो उसने सोचा की क्यों ने में इसे मोहनदास के पास छोड़ आऊ, और फिर में अपनी तीर्थ यात्रा पर जा सकुगी |

उस ओरत ने अपना सारा सोना, चांदी के डिब्बे में बंद किया और मोहनदास के पास पहुच गई और बोली, “मोहनदास जी, में तीर्थ यात्रा पर जा रही हु तो क्या में आप के यहाँ अपने जेवर रख सकती हु क्या?”

मोहनदास ने मना कर दिया, परन्तु बुढिया ने बहुत विनती की और डब्बा खोल कर उसके सामने रख दिया | जेवर देख कर उसका मन ललचा गया और बोला, “ठीक है तुम इतनी विनती कर रही हो तो रख जाओ |”

बुढिया घर आ गई और अगले दिन तीर्थ यात्रा पर चल गई | २ महीने बाद बाद जब बुढिया वापिस आई और मोहनदास के पास अपने जेवर लेने गए तो उसने मना कर दिया |

वह बोला, “हमारे यहाँ पर तुमने कुछ नहीं रखा था और यहाँ से चले जाओ |”

यह सुनते ही बुढिया रोने लगी और उसे विनती करने लगी परन्तु उसने एक न सुनी और अपने नोकर को बुला कर उससे धक्के देकर घर से बहार निकाल दिया |

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असली खजाना

बहुत साल पहले एक गाँव में एक सीताराम नाम का एक गरीब चरवाहा रहता था | वह पुरे दिन में सिर्फ अपनी भेड़ो को उन से बनी उन से बने फटे – पुराने कपड़े बस इतना ही जुटा पाता था परन्तु फिर भी वह बहुत ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन बीता रहा था |

वह बहुत इमानदार, और बुद्धिमान था | उस गाँव के सभी लोग उसका बहुत आदर करते थे | सीताराम उनकी सभी परेशानियों को मिनटों में सुलझा देता था |

धीरे धीरे उसकी बुद्धिमानी की चर्चा वहा के राजा के कानो में पहुची | उस समय वहा का राजा कुछ परेशानियों से जूझ रहा था उसने सीताराम को बुलवा भेजा और अपनी सभी परेशानियों का हल माँगा | सीताराम ने राजा की सभी परेशानियों का हल दे दिया | अब वह भी सीताराम का कायल हो गया और खुश होकर उसे अपने दरबार में स्थान दे दिया |

धीरे धीरे राजा बिना सीताराम के कोई भी काम नहीं करता था | वह हर वक़्त राजा के साथ ही रहता था | यह सब देख कर दुसरे दरबारियों के मन में उसके प्रति इर्षा पैदा हो गई और वे मोका देखकर राजा के कान भरने लगे | लेकिन सब व्यर्थ था क्योकि राजा के मन में सीताराम के लिए स्नेह और सम्मान बहुत ज़यादा था | उल्टा दरबारियों को राजा ने बहुत खरी-खोटी सुनाई |

एक दिन की बात है की राजा ने सीताराम को बुलाया और अपने उतरी प्रदेश का गवर्नर नियुक्त कर दिया और बोले, “सीताराम हमे पता है की हम तुम्हे अपने से अलग कर रहे है लेकिन क्या करे, मजबूरी है | उतरी प्रदेश का शासन सही नहीं है | वहा के लोग मनमानी कर रहे है और वहा की प्रजा को तंग कर रहे है | सिर्फ तुम ही हो जिस पर मुझे पूरा भरोसा है | तुम आज ही वहा के लिए रवाना हो जाओ और वहा का कार्य संभालो |

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अतिथि सत्कार का फल

बहुत पुरानी बात है एक गाँव में एक शिकारी रहता था वह बड़ा क्ररू, असत्यवादी और पाप में सलंग्न रहने वाला प्राणी था | एक बार वह जंगले में शिकार करने गया | वहा उसने बहुत सारे जानवर और पक्षियों को पकड़कर पिंजरे में बंद कर लिया | अनेक म्रगो का वध किया | इस प्रकार सारा दिन बीत गया | श्याम होते ही वह अपने घर जा रहा था की अचानक आकाश में काले काले बादल आ गए और थोड़ी ही देर में मुसलाधार वर्षा सुरु हो गई | तब वह शिकारी एक विशाल व्रक्ष के निचे बेठ गया |

उस व्रक्ष पर कबूतर और कबूतरी का एक जोड़ा रहता था प्रर्तिदीन की भांति उस दिन भी वे दोनों दाना चुगने वन में गए हुए थे, किन्तु अब तक सिर्फ कबूतर ही अपने घोसले में लोटा था| कबूतरी को वहा ना देख कर वह विलाप करने लगा | रोने की अवाज सुन कर, कबूतरी ने जोर से अवाज दी, “में यहाँ पिंजरे में केद हु |”

अवाज सुनकर कबूतर जल्दी से पिंजरे के पास गया और उसको बाहर निकालने का प्रत्यन करने लगा | तब कबूतरी बोली, “स्वामी, इससे तोडना असंभव है, आप चले जाओ यहाँ से | यह सब विधि के विधान के अनुसार है | इसमें किसी का दोष नहीं है | और एक बात, इस समय यह शिकारी हमारे घर पर आया है और अतिथि भगवान का रूप होता है | इस समय यह मुसीबत में है और आप को किसी तरह इसकी मदद करनी है |

यह बात सुन कर कबूतर जल्दी से उड़ कर कही से जलती हुई लकड़ी अपनी चोंच्मे दबाकर ले आया और शिकारी के सामने रखकर उसमे सूखे पत्ते, लकड़ी, और तिनके डालने लगा| देखते – ही – देखते उसमेऔर आग लग गई| यह सब देख कर शिकारी हेरान रह गया |

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