नमस्कार दोस्तों! आज हम बात करने जा रहे हैं सुमित्रानंदन पंत की जीवनी के ऊपर तो क्या जानते हैं हमारे भारत देश में ऐसे कई सारे हंसती हैं जिन्होंने अपने हुनर से देश का नाम रोशन किया है उसी नाम में एक नाम सुमित्रानंदन पंत जी का भी है।
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई उन्नीस सौ में हुआ था यह एक हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे यह काफी मशहूर कवि थे जिन्होंने अपनी कविता से लोगों का दिल मोह लिया था इस युग को जयशंकर प्रसाद, राजकुमार वर्मा, महादेवी वर्मा, और सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” जैसे कवियों का युग माना जाता था।
हमारे भारत के इतिहास में हिंदी साहित्य का बहुत ही बड़ा भूमिका रहा है हमारे भारत देश में ऐसे ऐसे लेखक और कवि जन्म लिए जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से पूरे समाज को सुधार दिया था और अपने देश का नाम ऊंचा किया था।
सुमित्रानंदन पंत जी उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा केसोनी गांव के रहने वाले थे और जब इनका जन्म हुआ था उसी के एक कुछ समय बाद इनकी मां चल बसी थी सुमित्रानंदन का देखभाल उनकी दादी ने किया था।
क्या आप जानते हैं?
सुमित्रानंदन पंत जी का नाम गुसाई दत्त रखा गया था लेकिन यह नाम उनको जरा भी पसंद नहीं आता था तो आगे चलकर उन्होंने खुद का नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया था। आइए इनके बारे में और विस्तार रूप से जानते हैं।
Table of Contents
सुमित्रानंदन पंत की जीवनी – Sumitranandan Pant Biography in Hindi
सुमित्रानंदन के बारे में हम आज इस लेख में पूरे विस्तार रूप से जानेंगे इनके परिवार में कौन-कौन था? इनका जन्म कब, कहां हुआ था और उनकी मृत्यु कब हुई थी यह सब आज हम इस लेख में जानेंगे।
क्रमांक | बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
1. | नाम (Name) | सुमित्रानंदन पंत |
2. | वास्तविक नाम (Real Name) | गोसाई दत्त |
3. | जन्म तारीख (Date of Birth) | 20 मई 1900 |
4. | जन्म स्थान (Birth Place) | अल्मोड़ा उत्तर प्रदेश |
5. | मृत्यु (Death) | 28 दिसंबर 1977 |
6. | मुख्य कृतियां | पल्लव, छिंदवाड़ा, सत्यकाम |
7. | पुरस्कार (Awards) | पद्म भूषण (1961) ज्ञानपीठ (1968) साहित्य अकादमी |
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
सुमित्रानंदन पंत का जन्म बागेश्वर अल्मोड़ा के जिले में हुआ था उनका जन्म 20 मई 1900 को हुआ था सुमित्रानंदन जी का जन्म होते ही कुछ समय के बाद उनकी मां चल बसी थी इसीलिए बचपन से ही उनको मां का प्यार नहीं मिला लेकिन उनकी दादी ने उनका पालन पोषण अपने बच्चे की तरह किया।
सुमित्रानंदन पंत के पिता जी का नाम गंगादत्त पंथ था और मैं आपको बता दूं सुमित्रानंदन पंत जी अपने पिता के आठवीं संतान थे उनके पहले उनके साथ बच्चे उनसे बड़े थे सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म स्थान बहुत ही खूबसूरत जगह कौसानी में हुआ था।
आप लोग को पता ही है कौसानी इतनी खूबसूरत जगह है यहां पर प्रकृति को देखकर उनसे प्यार हो जाता है इसीलिए सुमित्रानंदन पंत जी अपने कविता में अपने घर की रचना करते ही हैं उनके कविता में झरना, पुष्प, भंवर, गुंजन, उषा-किरण, शीतल, पवन, तारों की चुनरी उड़े गगन से उतरती संध्या यह सब कविता में आपको मिल जाएगा।
इनकी इन्हीं सारे काव्यगत विशेषताओं के वजह से सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता था सुमित्रानंदन पंत जी का व्यक्तित्व को भी काफी आकर्षक वाला था उन्हें जो देख ले उन्हें बस देखता ही रहता था।
सुमित्रानंदन पंत जी का वास्तविक नाम गुस्साई तक रखा गया था लेकिन यह नाम उनको जरा भी पसंद नहीं था इसी वजह से उन्होंने आगे चलकर अपने नाम को बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया जो कि इनके व्यक्तित्व को दर्शाता है।
सुमित्रानंदन पंत का जन्म और परिवार
जैसा कि दोस्तों मैंने आपको बताया इनका जन्म 20 मई 1900 मैं अल्मोड़ा जिले के बहुत ही खूबसूरत कौसानी नामक गांव में हुआ जो कि हमारे भारत देश के उत्तराखंड में स्थित है। इनके पिता जी का नाम गंगादत्त था और इनकी माता जी का नाम सरस्वती देवी था।
जन्म के कुछ ही घंटों के बाद उनकी माताजी गुजर गई थी इसके बाद सुमित्रानंदन पंत जी का पूरा पालन पोषण उनके दादी जी के द्वारा ही किया गया पंत कुल 7 भाई-बहन थे जिसमें से सबसे छोटे पंत ही थे बचपन में इनका नाम गोसाई दत्त रख दिया था जिसकी वजह से इन्हें बहुत गुस्सा आता था।
जैसे-जैसे यह बड़े होते गए वैसे वैसे इन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया इन्होंने सिर्फ 7 साल की उम्र से ही कविता कि दुनिया में चल पड़े थे इतनी छोटी उम्र से इन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था।
सुमित्रानंदन पंत जी का शिक्षा – Sumitranandan Pant Education
सुमित्रानंदन पंत 1910 में शिक्षा को ग्रहण करने के लिए अपने घर से निकल पड़े थे इन्होंने अल्मोड़ा गांव में ही एक गवर्नमेंट हाई स्कूल में अपनी पढ़ाई की शुरुआत की थी।
साल 1918 का, समय था जब सुमित्रानंदन पंत ने अपने मंजिलें भाई के साथ काफी गए थे और किस कॉलेज में अपनी आगे की पढ़ाई जारी की थी वहां से इन्होंने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर मयूर कॉलेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद के लिए निकल पड़े थे।
साल 1921 में, असहयोग आंदोलन के समय महात्मा गांधी के भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों और महाविद्यालयों और न्यायालय एवं कई सारी सरकारी कार्यालय का बहिष्कार करने के लिए अहान पर इन्होंने महाविद्यालय को रद्द कर दिया था और घर पर ही हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए साहित्य का अध्ययन करना शुरू कर दिया था।
इलाहाबाद शहर में ही सुमित्रानंदन पंत का कविता की ओर मन चल पड़ा और इसके बाद इन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। सुमित्रानंदन पंत एक बहुत ही अच्छे इंसान थे इन्होंने घर से ही सारे भाषाओं को सीखा और कविता की ओर चल पड़े।
सुमित्रानंदन पंत का आर्थिक संकट
बचपन से इनका पालन-पोषण ठीक ढंग से हो रहा था लेकिन कुछ सालों के बाद सुमित्रानंदन पंत को आर्थिक संकट का बहुत सामना करना पड़ा सुमित्रानंदन पंत जी के पिताजी कार्ड से लड़ते लड़ते इस दुनिया से चल बसे कर्ज को चुकाने के लिए सुमित्रानंदन पंत को अपना घर अपना जमीन सब कुछ बेचना पड़ गया था।
इसी वजह से उनका मार्क्सवाद की ओर उन्मुख होना पड़ा इतनी बुरी स्थिति आन पड़ी थी की सुमित्रानंदन पंत मार्क्सवाद की ओर उन्मुख हो गए।
सुमित्रानंदन पंत जी का उत्तरोत्तर जीवन
साल 1931 में सुमित्रानंदन पंत जी कुंवर सुरेश सिंह के साथ कालाकाकड़ प्रतापगढ़ के लिए निकल पड़े थे और आने वाले कई सालों तक उन दोनों ने वहीं पर अपना समय बिताया साल 1938 में इन्होंने प्रगतिशील मासिक पत्रिका रूपाभ का संपादन किया था।
श्री अरविंद आश्रम की यात्रा से इन्होंने आध्यात्मिक चेतना का पूरी तरह से विकास किया और उन्होंने आजीवन आविवाहित रहने का निश्चित भी किया उन्होंने सोच रखा था कि आने वाले समय में हम विवाह नहीं करेंगे और अपना जीवन ऐसे ही बिताएंगे।
- साल 1950 से लेकर साल 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता रहे थे।
- साल 1958 में युगवाणी से वानी काव्या संग्रहो की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन चित्रबमबड़ा प्रकाशित भी हुआ था।
- साल 1960 में “कला और बूढ़ा चांद” काव्या संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी सुमित्रानंदन पंत जी को मिला था।
- साल 1961 में सुमित्रानंदन पंत को पद्म भूषण की उपाधि भी मिली थी।
- सुमित्रानंदन पंत जी का मृत्यु 28 दिसंबर 1970 को हो गया उन्होंने अपना पूरा जीवन अविवाहित रहकर गुजारा था।
साहित्य सृजन
सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति से काफी ज्यादा लगाओ हुआ करता था वह बचपन से ही ऐसी प्रकृति के बीच रहे थे जहां से सिर्फ प्यार ही प्यार खेलता था उन्होंने अपनी कविता में भी प्रकृति का सुंदर रचनाएं के बारे में लिखा करते थे।
सुमित्रानंदन पंत जी केवल 7 वर्ष के ही थे जबसे उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था तब वह चौथी कक्षा में पढ़ते थे साल 1918 के आसपास इनको सब हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने लग गए थे।
उस दौर की इनकी सारी कविता बहुत ही सुंदर और मोहने वाली थी साल 1926 में इनका एक बहुत ही प्रसिद्ध काव्य संकलन “पल्लव” पर प्रकाशित हुआ था जो सभी के मन में एक प्यार था भाव जगा देता था।
इसी के कुछ समय के प्रस्ताव सुमित्रानंदन पंत जी अपने भाई देवी दत्त के साथ अल्मोड़ा वापस लौट गए थे इसी दौरान इन्होंने मार्क्स वह प्राइड की विचारधारा से काफी प्रभाव हुए थे और साल 1938 में इन्होंने रूपाभ नामक एक प्रगतिशील मासिक पत्र भी निकाला था।
यह बहुत ही बड़े बड़े कभी के साथ जुड़े रहे जिनमें से शमशेर रघुपति सहाय इत्यादि आते हैं 8 साल 1950 से लेकर सन 1957 तक सुमित्रानंदन पंत जी आकाशवाणी से भी जुड़े रहे थे और उन्होंने मुख्य निर्माता के पद पर काम भी किया था।
सुमित्रानंदन पंत जी का विचारधारा योगी अरविंद से काफी प्रभावित भी हुआ था जो बाद में उनकी रचनाओं “श्रवणकिरण” और “श्रवणदुली” में हम बहुत ही अच्छे से देख सकते हैं। सुमित्रानंदन पंत जी की साहित्यिक यात्रा के तीन बहुत ही पूर्व प्रमुख पड़ाव थे।
पहला में यह छायावादी लगते हैं और दूसरे में समाजवादी आदर्शों से काफी प्रेरित प्रतिवादी की तरह लगते हैं और तीसरे में अरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यामआदि की तरह लगते है।
सुमित्रानंदन पंत जी की प्रमुख कृतियां
- युगपथ, (1949)
- मुक्ति यज्ञ
- स्वर्णकिरण,(1947)
- ‘स्वर्ण-धूलि’ (1947)
- ‘उत्तरा’ (1949)
- तारापथ
- ‘अतिमा’,
- ‘रजत-रश्मि’
- गीतहंस (1969)
- चिदंबरा, (1958)
- अनुभूति
- मोह
- सांध्य वंदना
- वायु के प्रति – सुमित्रानंदन पंत
- चंचल पग दीप-शिखा-से
- लहरों का गीत
- यह धरती कितना देती है
- मछुए का गीत
- चाँदनी
- काले बादल
- तप रे!
- आजाद
- गंगा
- नौका-विहार
- धरती का आँगन इठलाता
- बाँध दिए क्यों प्राण
- चींटी
- बापू
- दो लड़के
- गीत विहग
- कला और बूढ़ा चाँद, (1959)
- उच्छावास
- मधु ज्वाला
- मानसी
- वाणी
- सत्यकाम
- पतझड़
- ज्योत्सना
- अवगुंठित
- मेघनाथ वध
- अतिमा
- सौवर्ण
- शिल्पी
- रजतशिखर
सुमित्रानंदन पंत जी को प्राप्त हुए पुरस्कार
- साल 1960 में हिंदी साहित्यकारों ने अज्ञेय द्वारा संपादित मानग्रंथ रूपमब्रा राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने पंत जी को बहुत ही गर्व से दिया था दिया था। सुमित्रानंदन पंत जी की षष्टिपूर्ति पर दिया गया रूपमब्रा जैसा मानग्रंथ अभी तक शायरी हम कहीं और देख पाएंगे।
- भारत सरकार के द्वारा सुमित्रानंदन पंत जी को पद्मभूषण से 1961 में नवाजा गया था।
- साल 1961 में कला और बूढ़ा चांद पर इनको साहित्यिक अकादमी का 5000 का बहुत ही खूबसूरत अकादमी पुरस्कार दिया गया था।
- साल 1965 के नवंबर में लोकायतन महाकाव्य पर प्रथम सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार भी दिया गया था।
- साल 1965 में सुमित्रानंदन पंत को उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा वरिष्ठ साहित्यिक सेवा हेतु ₹10000 का पुरस्कार दिया गया।
- पंत जी को साल 1967 में विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी○ लिट○ की मानद उपाधि से भी नवाजा गया था।
- साल 1968 में सुमित्रा पंत जी को चिदंबरा पर भारतीय ज्ञानपीठ का ₹100000 का पुरस्कार मिला था।
सुमित्रानंदन पंत का मृत्यु
सुमित्रानंदन पंत जी का पूरा जीवन सिर्फ कविता में ही गुजर गया था इन्होंने अपने जीवन में शादी नहीं की औरतों से दूर रहें और अच्छे अच्छे कर्म करते गए 28 दिसंबर 1977 साल में इनकी मृत्यु हो गई थी और इनकी मृत्यु इलाहाबाद के भूमि पर हुई थी।
FAQ on Sumitranandan Pant Biography in Hindi
सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब और कहां हुआ?
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900, अल्मोड़ा कौसानी में हुआ था।
सुमित्रानंदन पंत का देहांत कब हुआ?
सुमित्रानंदन पंत जी का देहांत 28 दिसंबर 1977 इलाहाबाद में हुआ था।
सुमित्रानंदन पंत का साहित्य में कौन सा स्थान है?
सुमित्रानंदन पंत साहित्य मैं असाधारण प्रतिभा से संपन्न साहित्यकार थे सुमित्रानंदन पंत को काफी श्रेष्ठ कभी भी माना जाता है।
सुमित्रानंदन पंत पर डाक टिकट कब जारी किया गया?
सुमित्रानंदन पंत पर साल 2015 में ₹5 मूल्य का डाक टिकट जारी किया गया था।
Conclusion
आज के फ्लैट में हमने सुमित्रानंदन पंत जी के जीवन परिचय के बारे में पूरा विस्तार रूप से जाना दोस्तों सुमित्रानंदन पंत जी अपने युग के बहुत ही बड़े कभी हुआ करते थे और आज भी इनकी कविताओं को लोग बहुत ही प्यार से पढ़ते हैं।
सुमित्रानंदन पंत जी को प्राकृतिक से काफी लगाव था क्योंकि उनका जन्म वही प्रकृति के आसपास हुआ था और बचपन से वह प्रकृतिक में बहुत ही मगन रहते थे अपनी कविताओं में भी प्रकृति की काफी रचनाएं भी की है सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय बहुत ही प्रभावशाली है।