चार धामों की चर्चा हो और रामेश्वरम की बात ना हो ऐसे नहीं हो सकता ।
आप भी रामेश्वरम जाने की सोच रहे या रामेश्वरम से जुडी जानकारी जानना चाहते है तो हमारी लेख को पूरा पढ़े । इसमें हम रामेश्वरम से जुड़ हर छोटी छोटी जानकारी को आपसे सरल भाषा में सांझा करेंगे ।
तो चलिए शुरुवात करते है जाना माना पवित्र स्थल रामेश्वरम किधर है और इसकी हिन्दुओं में मान्यता के साथ ।
Table of Contents
रामेश्वरम शहर
रामेश्वरम दक्षिण-पूर्व भारतीय राज्य तमिलनाडु के पंबन द्वीप पर एक शहर है, जो की तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है ।
वैसे रामेश्वरम – रामनाथस्वामी मंदिर (Ramanathaswamy Temple) के लिए जाना जाता है, जो एक हिंदू तीर्थ स्थल है जिसमें शानदार गलियारे, बड़े बड़े विशाल तराशे हुए स्तंभ और पवित्र पानी की टंकियां हैं ।
यह मंदिर एक पवित्र हिंदू मंदिर है और चार धामों में से एक माना जाता है । इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है ।
रामेश्वरम दक्षिण भारत में उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उत्तर भारत में काशी है ।
रामेश्वरम एक शंख के आकार का द्वीप है जो हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है । सदियों पहले यह द्वीप मुख्य रूप से भारत की भूमि से जुड़ा था, लेकिन धीरे धीरे सागर की तेज लहरों से कटकर यह अलग हो गया । बाद में जर्मन इंजीनियरों ने रामेश्वरम को जोड़ने के लिए एक पुल बनाया ।
रामेश्वरम मंदिर का इतिहास
जितना अनोखा यह द्वीप है उतना ही शानदार इसका इतिहास है । ऐसा माना जाता है कि श्रीलंका से लौटने के दौरान, श्रीराम ने यहां भगवान शिव की पूजा की थी । रामेश्वर मंदिर और रामेश्वर द्वीप का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है ।
रावण की मृत्यु के बाद, श्रीराम अपनी पत्नी देवी सीता के साथ रामेश्वरम के तट पर कदम रखने के साथ ही भारत लौटे थे ।
ब्राह्मण को मारने वाले अपराध को खत्म करने के लिए श्रीराम शिव की पूजा करना चाहते थे । चूंकि द्वीप पर कोई मंदिर नहीं थे, इसलिए श्री हनुमान को भगवान शिव की मूर्ति लाने के लिए कैलाश पर्वत पर भेजा गया था । जब हनुमान शिवलिंग लेकर समय पर नहीं पहुंचे तब देवी सीता ने समुद्र की रेत को मुट्ठी में बांधकर शिवलिंग बनाया और भगवान राम ने उसी शिवलिंग की पूजा की जो की आज भी आप रामेश्वरम में स्थित है ।
रामेश्वरम मंदिर के 78 फ़ीट ऊंचे गोपुरम का निर्माण 15वीं शताब्दी के राजा रहे उडैयान सेतुपति और 1450 ईसाई में नागूर निवासी वैश्य ने करवाया था ।
फिर 16वीं शताब्दी में तिरुमलय सेतुपति ने मंदिर के दक्षिण में दूसरे भाग की दीवार का निर्माण करवाया था । मंदिर के प्रवेश द्वार पर तिरुमलाई और उनके पुत्र की कोई मूर्ति नहीं है ।
नंदी मंडप का निर्माण 16वीं शताब्दी में मदुरै के राजा विश्वनाथ नायक के अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर ने करवाया था और राजा किजहावन सेठुपति या रघुनाथ किलावन ने इस मंदिर के निर्माण कार्य की आज्ञा दी थी । मंदिर के निर्माण में सेठुपति साम्राज्य के जफ्फना राजा का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।
रामेश्वरम मंदिर की वास्तुकला
रामेश्वरम मंदिर का प्रवेश द्वार 40 फीट ऊंचा है और भारतीय वास्तुकला का एक आकर्षक नमूना है । मंदिर के अंदर सैकड़ों विशाल स्तंभ हैं और प्रत्येक खंभे पर विभिन प्रकार की विशेष एव बारीक कलाकृतियां बनी है ।
द्रविण स्थापत्य शैली में रामनाथस्वामी मंदिर का निर्माण किया गया है ।
मंदिर में प्रमुख भगवान रामनाथस्वामी यानि शिव को माना जाता है ।
सबसे पवित्र मंदिरों में दो लिंग हैं, जिनमें से एक लिंग देवी सीता की देन है, जो रेत से बना है और इनका नाम रामलिंगम रखा गया था । वही हनुमान जी द्वारा कैलाश पर्वत से लाया गया दूसरे लिंग का नाम विश्व लिंगम रखा गया था ।
भगवान राम के आदेश के अनुसार हनुमान जी द्वारा लाए गए दूसरा लिंग जो की विश्वलिंगम है उसकी पूजा आज भी सबसे पहले की जाती है ।
रामेश्वरम मंदिर में पूजा का समय
रामेश्वरम मंदिर सुबह 5 बजे से ही अपने भक्तों के लिए खुल जाता है ।
श्रद्धालु पहले पहर में सुबह पांच बजे से लेकर दोपहर के एक बजे तक दर्शन-पूजन कर सकते हैं । जिसे ठीक दोपहर 1 बजे मंदिर को बंद कर दिया जाता है ।
इसके बाद दूसरे पहर, शाम तीन बजे से फिर मंदिर को खोला दिया जाता है । इस पहर में शाम तीन बजे से रात के नौ बजे तक दर्शन किया जा सकता है ।
आपको बता दें कि रामेश्वर मंदिर में होने वाली प्रत्येक पूजा का अलग अलग नाम है और ये पूजा अलग अलग समय पर होती है । हर पूजा का एक विशेष अर्थ है, इसलिए रामेश्वर मंदिर जाने वालों को अवश्य ही प्रत्येक पूजा में शामिल होना चाहिए ।
– सुबह 5 बजे मंदिर के कपाट खुलने के बाद सबसे पहले पूजा ही की जाती है, जिसे पल्लियारै दीपा अरथाना कहा जाता है ।
– उसके बाद स्पादिगालिंग दीपा आराधना सुबह 5.10 पर ।
– तिरुवनंतल दीपा आराधना सुबह 5.45 पर ।
– विला पूजा सुबह 7 बजे ।
– पल्लियाराय पूजा सुबह 8 बजकर 45 मिनट पर होती है।
– कलासंथी पूजा सुबह 10 बजे ।
– उचिकाला पूजा दोपहर 12 बजे ।
– सायरात्चा पूजा शाम 6 बजे ।
– अर्थजमा पूजा रात 8.30 बजे ।
मंदिर में नकद, सोने और चांदी के आभूषण चढ़ाने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है । इन वस्तुओं को चढ़ाने वाले भक्त का नाम मंदिर के खातों में दर्ज किया जाता है और साथ में एक रसीद भी दी जाती है ।
इसके अलावा, मंदिर में गंगाजल चढ़ाने की अनुमति केवल पीतल, तांबे या कांसे के बर्तनों से ही दी जाती है । श्रद्धालुओं को टिन या फिर स्टील के बर्तन में गंगाजल चढ़ाने की अनुमति नहीं मिलती है ।
रामेश्वरम मंदिर में महत्वपूर्ण त्यौहार
रामेश्वरम मंदिर के दर्शन किसी भी समय किए जा सकते हैं, लेकिन यदि आप मंदिर में मुख्य त्योहारों को देखना चाहते हैं । तो आपको इन विशेष महीनों के दौरान ही रामेश्वरम मंदिर जाना चाहिए ।
महाशिवरात्रि का त्योहार, फरवरी-मार्च के महीने में रामेश्वरम में अद्भुत रूप से मनाया जाता है । यह त्यौहार कुल 10 दिनों तक चलता है । अगर आप एक अनोखा महाशिवरात्रि पर्व देखना चाहते हैं तो इस दौरान रामेश्वरम मंदिर के दर्शन जरूर करे ।
मई-जून के महीने में, इस मंदिर में वसंतोत्सवम उत्सव मनाया जाता है, जो 10 दिनों तक चलता है और वैशाख में समाप्त होता है ।
इसके अलावा थिरुक्कल्याणम नामक पर्व भी रामेश्वरम मंदिर का एक बड़ा उत्सव है, जो 17 दिनों तक चलता है । इसे देखने के लिए हर साल लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है ।
रामेश्वरम मंदिर के पास घूमने के स्थान
– इंदिरा गाँधी सेतु
– अदम्स ब्रिज
– पामबन ब्रिज
– अग्निथीर्थम
– अरियामन बीच
मदुरै रामेश्वरम से 163 किमी दूर है, जो रामेश्वरम का निकटतम हवाई अड्डा है ।
अगर आप हवाई जहाज से उड़ान भरना चाहते हैं । तो आप मुंबई, बैंगलोर और चेन्नई से मदुरै के लिए फ्लाइट ले सकते हैं ।
अगर आप सड़क मार्ग से जाने के इच्छुक है तो आप रामेश्वरम के लिए मदुरै, कन्याकुमारी, चेन्नई या फिर त्रिची के रास्ते से आ सकते है । आज कल आप सड़क मार्ग से भी बहुत आसानी से रामेश्वरम पहुँच सकते हैं ।
इसके अलावा पांडिचेरी से रामेश्वरम और मदुरै होते हुए तंजावुर जा सकते हैं ।
रामेश्वरम शहर में पहुंचने के बाद, आप रामेश्वरम मंदिर तक पहुंचने के लिए जीप या फिर ऑटो रिक्शा की सवारी कर सकते हैं ।
रामेश्वरम मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य
- हिंदू शास्त्रों में रामेश्वरम नाम को गंधमादन पर्वत कहा गया है ।
- श्रीराम ने यहां पर ही नवग्रह की स्थापना की थी और सेतुबंध यहीं से शुरु हुआ था ।
- यह भी माना जाता है कि रामेश्वरम मंदिर में तैरने से सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं ।
- इस स्थल पर ही मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था ।
- रामेश्वरम तीर्थधाम की यात्रा करने के पीछे यह भी मान्यता है कि यहां की यात्रा मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है |
- बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर के संगम स्थल पर स्थित इस प्रसिद्ध तीर्थधाम में उत्तराखंड के गंगोत्री से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करने का विशेष महत्व है । वहीं अगर रामेश्वरम के दर्शन करने के लिए पहुंचने वाले यात्रियों के पास गंगाजल नहीं होता है, तो इस तीर्थधाम के पंडित दक्षिणा लेकर श्रद्धालुओं को गंगाजल उपलब्ध करवाते हैं ।
- रामेश्वरम मंदिर का गलियारा दुनिया का सबसे लंबा गलियारा है ।
- रामेश्वरम से थोड़ी दूर में स्थित जटा तीर्थ नामक कुंड है, जहां पर श्री राम ने लंका में रावण से युद्ध करने के बाद अपने बाल धोए थे ।
- रामेश्वरम मंदिर में कई अन्य देवी-देवताओं को समर्पित मंदिर भी हैं और इसमें 22 पवित्र जल स्रोत हैं ।
- इस हिंदू तीर्थ स्थल का सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण स्थान अग्नि तीर्थ कहलाता है ।
- रामेश्वरम मंदिर के पास अन्य दर्शनीय स्थल जैसे साक्षी विनायक, एकांतराम मंदिर, सीताकुंड, अमृतवाटिका, विभीषण तीर्थ, नंदिकेश्वर, माधव कुंड, रामतीर्थ, आदि सेतु हैं । इसके अलावा यहां से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर धनुष्कोटि नामक जगह है, जो कि पितृ-मिलन एवं श्राद्ध तीर्थ नामक जगह हैं ।
- रामेश्वरम मंदिर में महाशिवरात्रि को बड़े भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है ।
- रामेश्वरम मंदिर चार प्रमुख धामों में से एक है और सैकड़ों हजारों भक्तों की आस्था इसे जुडी हुयी है ।
उम्मीद करते है के आप सबको रामेश्वरम से जुडी जानकारी सारी जानकारी प्राप्त हुयी होगी । आपके कोई अन्य सवाल या विचार हो इस लेख से जुड़ा तो हमें जरूर कमेंट करके बताये ।