पांच वर्ष की गोरिका की एक सेहली जिसका नाम रिंकी था उसके पास बहुत सारे खिलोने थे | रिकी के साथ खेलते खेलते उसका मन एक गुडिया पर आ गया और उसने सोचा की उसके पास भी बिलकुल वेसी गुडिया होनी चाहिए यही सोच कर उसने अपनी में बोला, “माँ मुझे भी वेसी ही गुडिया चाहिए, परन्तु माँ में उसे डाट कर मना कर दिया और कहा नहीं बेटा अब तुम्हारी उर्म नहीं है गुडियों के साथ खेलने की | गोरिका के बार – बार निवेदन करने पर भी माँ टस से मस नहीं हुई |
गोरिका को बहुत क्रोध आया उसने उस वक्त का खाना भी नहीं खाया | उसने रात का भी खाना नहीं खाया उसकी माँ ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की परन्तु वह नहीं मानी | उसकी माँ भी हार मान के वहा से चली गई | गोरिका अपने कमरे में अकेली लेटी हुई थी तभी उसको याद आया की उसकी माँ ने कहा था की उसके पिता का बहुत अच्छा वेतन है | तो इसका मतलब उसकी माँ के पास बहुत पैसे होगे फिर भी मुझे माँ मेरी मन पसंद की किताब खरीदने नहीं दे रही है | वह पूरी रात भर सोचती रही की कैसे वह गिडिया ले, क्या करे वो | बहुत सोचने के बाद उसने अपनी माँ के पर्स में से पैसे लेने की ठान ली और खुद ही गुडिया लेने का निश्चय कर लिया | उसने अगले दिन सुबह ही अपनी माँ के कमरे में चले गई, उसे पता था की उस वक्त माँ पापा के लिए खाना बना रही होगी | बस मोका देख कर वह कमरे में प्रवेश कर गई और उसने पर्स उठा ही लिया था की अचानक उसे अपनी माँ की अवाज सुनाई दी, “काश मेरे पास इतने पैसे होते की में अपनी बेटी को वो गिडिया दिला सकती | में हमेशा अपने बच्चो को कहती थी की उसके पिता का बहुत अच्छा वेतन है परन्तु मुझे हमेशा कोई न कोई बहाना बनाना पड़ता है उन्हें मना करने के लिए | मुझे बहुत दुःख होता है अपने बच्चो का मुरझाया चहरा देख कर |
अपनी माँ को रोते और बड बडा ते देखा कर उसे बहुत श्रम आई उसने पर्स को वाही पर रख दिया जहा से उसने उठाया था | वह कमरे से बाहर आ गई और देखा उसके माता – पिता बहुत गंभीर बात कर रहे थे उसे बहुत दुःख हुआ अपनी हरकत पर और वह महसूस कर रही थी उसके माता – पिता उनसे किता प्रेम करते है |