क्या है योगी का कर्तव्य

यह कहानी तब की है जब पुणे में महामारी ने अपना भीषण प्रोकोप फेला रखा था दिन प्रतिदिन बहुत से लोग मारे जा रहे थे इस बीमारी से | सभी लोग इतने डर चुके थे की कोई भी किसी की मदद नहीं कर रहे थे | यहाँ तक की अगर किसी परिवार के सदस्य को भी बीमारी हो जाती तो भी उसे मरने के लिए छोड़ देते थे |

उन्ही दिनों वहा से थोरी ही दूर पर एक ऋषि रहा करते थे जो सभी की मदद किया करते थे | और उस वक्त वो ऋषि लोगो के लिए रौशनी की एक किरण बनकर आए | वो सभी को समझाते थे की किसी को भी बिच मझधार में न छोड़े, सभी की मदद करे | यह सिद करने के लिए उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था | तथा वो जो कहते वो करते भी थे व् अपना आश्रम छोड़ कर पुणे में आ कर रहने लगे और रोगियों की मदद करने लगे | यह देख कर उनके सभी शिष्य भी उनके साथ सभी रोगियों की मदद करने लगे | स्वामी जी ने अपने सभी शिष्यों को आज्ञा दी की सभी एक – एक गाँव का भर सभाल ले ताखी हम सभी एक बीमारी को जड से ख़तम कर सके |सभी शिष्यों ने स्वामी जी की बात का पालन किया | परन्तु उन में से कुछ योगी डर रहे थे और उनके मन में कुछ संकाए भी थी | लेकिन वो डर रहे थे स्वामी जी से पूछने में| पंरतु उनमे से एक योगी ने हिमत करके स्वामी जी से पूछा, “हे स्वामी जी हम लोग योगी है हम लोगो ने एक जगत को छोड़ दिया है, फिर हम इन लोगो की मदद क्यों करे ? जबकि ये लोग अपनी मदद खुद नहीं करना चाहते |

सह सुनकर स्वामी जी ने उत्तर दिया, “बेटा, तुम ने बिलकुल सही कहा की हम लोग योगी है, हम लोगो ने यह संसार छोड़ दिया है | लिकिन इसका मतलब यह नहीं की हमारा इस दुनिया से कुछ लेना देना नहीं है | यह संसार भी उसी परमात्मा का है जिसकी हम आराधन करते है तो क्या हम अपने परमात्मा की बनाई इस दुनिया को छोड़ दे ? क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीं है उस परमात्मा के प्रति ? बेटा सच्चा योगी वाही जो इस संसार के दुःख को अपना दुःख मानता हो | और हर संभव कोशिश करे उस दुःख को दूर करने के लिए | तो हमारा कर्तव्य है की हम इन रोगियों की सेवा करे | वोही सच्चा योगी है | योगी मतलब यह कतई नहीं की संसार को छोड़ दो |

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