दोस्ती की परख

एक जंगले था | गाय, घोडा, गधा और बकरी वहा चरने आते थे | उन चारो में अच्छी दोस्ती हो गई थी | वे चरते चरते बहुत बातें किया करते थे | पेड़ के नीचे एक खरगोश का घर था | एक दिन उसने उन चारो की दोस्ती देखी |

खरगोश पास जा कर कहने लगा – “ तुम लोग मुझे भी मित्र बना लो |” उन्होंने कहा अच्छा | तब खरगोश बहुत प्रसन्न हुआ | खरगोश हर रोज उनके पास आकर भेठ जाता | उनकी बातें सुन और कहानियाँ सुन कर वह भी मन बहलाया करता था | एक दिन खरगोश उनके पास बेठा कहानियाँ सुन रहा था | अचानक शिकारी कुतो की आवाज सुनाई दी | खरगोश ने गाय से कहा – तुम मुझे अपनी पीठ पर बेठा लो | जब शिकारी कुते आए हो उन्हें सीगों से मार कर भगा देना |

गाय ने कहा – “मेरा तो अब घर जाने का समय हो गया है | तब खरगोश घोड़े के पास गया | कहने लगा – बड़े भाई | तुम मुझे अपनी पीठ पर बेठा लो और शिकारी कुतो से बचाओ | तुम तो एक दुलती मारोगे तो कुते भाग जाएगे | घोड़े ने कहा – “मुझे बेठना नहीं आता | में तो खड़े खड़े सोता हू | मेरी पीठ पर कैसा चढोगे | मेर पाव भी दूख रहे है | इन पर नई नाल चढी है | में दुलती कैसे मरुगा ? तुम कोई और उपाय करो |

तब खरगोश ने गधे के पास जाकर कहा – “मित्र गधे | तुम मुझे शिकारी कुतो से बचा लो | मुझे पीठ पर बिठा लो | जब कुते आए तो उन्हें झाडकर उन्हें भगा देना | “गधे ने कहा – में घर जा रहा हू | समय हो गया है अगर में समय पर घर न लोटा तो कुम्हार डंडे से मार – मार कर मेरा अचुमर निकाल देगा | “तब खरगोश बकरी के तरफ चला |

बकरी ने कहा = छोटे भाई इधर मत आना, मुझे शिकारी कुतो से बहुत डर लगता है | कही तुम्हारे साथ में भी न मरी जाऊ | इतने में कुते पास आ गए | खरगोश सिर पर पैर पाव रखकर भागा | कुते इतनी तेज दोड न सके | खरगोश झाड़ी में जा कर छिप गया | वह मन में कहने लगा – हमेशा अपने पर ही भरोसा करना चिया |

सिख : दोस्ती की परख मुसीबत में ही होती है |

लेखक: युग्म जेतली

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