कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है

कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है  |
कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है  |

ज़मीन के टुकड़ो का क्या करेगे, अगर धरती नहीं पूरी हमारी है.
समझ ना सके जो तुम हमको, गलती नहीं इसमें तुम्हारी है,
जीवन के देखो पन्नो की, श्याही जो मिटती जा रही है,
जिंदगी के देखो पन्नो की, लिखाई धुंधली पड़ती जा रही है,
नमक की गुडिया देखो तो, खारे पानी में घुलती जा रही है,
बारिश की बुदे देखो तो, सुमुंदर में गिरती जा रही है,
फूलो की खुशबू देखो तो, हवा में मिलती जा रही है
कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है  ||

ना हुए आजाद जो, नहीं कहना गलती हमारी है,
कही अहंकार का भोझ, आत्मा तो नहीं उठा रही है,
अपने जो रूठ गए, मनाने की हमारी बारी है,
सपने जो टूट गए, सजाने की अब बारी हमारी है,
कुछ बातें है उसको पसंद, याद दिलाने की बारी हमारी है
बचपन की उसकी दास्तान, उसको याद तो अब दिलानी है,
बचपन में बस्ता था प्रभु, याद तो अब दिलानी है,
कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है  ||

दो घंटे के आनंद से होगा क्या, घंटे बाईस तो अब भी बाकि है,
थोड़े आनंद से होगा क्या, ताप का आनंद जो अभी बाकि है,
ठंडी छाव में बेठने से होगा क्या, धुप में चलना तो अभी बाकि है.
गिरकर चलना, चलकर गिरना, गिरकर चलना, चलकर गिरना,
चलने, गिरने की कला, कला को समझना तो अभी बाकि है,
कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है  ||

साधू संतो ने पूछा, गुमराह क्यों दुनिया हमारी है,
हर तरफ क्यों है अशांति, सवारने की अब बारी हमारी है,
अनत पथ की देखो रौशनी, हर तरफ से फिर भी आ रही है,
सोचने की नहीं अब, चलने की अब बारी हमारी है,
संग संग चलेगे हम सभी, चलना ही ज़िन्दगी हमारी है,
संग संग बढ़गे हम सभी, आगे बढ़ना ही ज़िन्दगी हमारी है,
कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है ||

ज़मीन के टुकड़ो का क्या करेगे, अगर धरती नहीं पूरी हमारी है.
कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है  ||

 

पड़ तो आप सभी ने लिया होगा इसको, पर एक बार फिर से पड़े और अब की बार सिर्फ प्रमात्मा का भाव ले कर पड़ना इस कविता को |

लेखक: युग्म जेतली

1 thought on “कदम जो तेरे रुक गए, चलने की अब बारी हमारी है”

Leave a Comment