चूहे का व्यापारी

वाराणसी में एक सेठ था | एक दिन वह दुकान कि और जा रहा था | रास्ते में एक मरा हुआ चूहा पड़ा था | उसे देखकर वह एक क्षण के लिए रुक गया | वह उस चूहे को देखते हुए कुछ सोचने लगा |

नगर सेठ, क्या सोच रहे हो?” किसीने पूछा |

यही सोच रहा हू कि यदि कोई समझदारी से काम करे तो इस चूहे को बेचकर भी लखपती बन सकता हे|

नगर सेठ की  बात एक गरीब बनिये ने सुन ली | नगर सेठ के जाते ही उसने वह चूहा उठा लिया और बाजार में घूमने लगा | तभी एक महाजन ने अपनी बिल्ली के भोजन के लिए वह चूहा खरीद लिया |

बनिये ने उन पैसो से थोडा गुड और घडा खरीदा | घड़े में पानी भरकर वह एक मार्ग पैर बेठ गया | जंगल से लोटनेवाले लकडहारे और माली उसी मार्ग से आते थे | थके हुए लकडहारे तथा माली गुड खाकर और पानी पीकर बहुँत प्रसन्न हुए | उन्होंने उसे बदले में लकडिया और फूल दिए | बनिये ने लकडिया और फूल बेचकर फिर पैसे कमाए |

उसी मार्ग पर प्रत्येक दिन नियमित रूप से जा बेठता | कुछ दिनों बाद उसने घास काटनेवालो को भी पानी पिलाना शुरु कर दिया | बदले में वह उनसे घास का एक – एक पूरा लेने लगा |

एक दिन बनिये को पता लगा कि कुछ ही दिनों में घोड़ो का एक व्यापारी पांच सो घोड़े लेकर आने वाला है | बनिये के पास कुछ घास तो पहले से थी | अब उसने बचे धन से घसियारो कि घास भी खरीद ली |

घोड़ो का व्यापारी अब आया तब उसे घास कि जरूरत पड़ी | वह सारे नगर में  घुमा, पर कही घास न मिली | अंत में वह उस बनिये के पास आया और भारी कीमत देकर घास खरीद ले गया |

उस बनिये के पास काफी धन हो गया | उन्ही दिनों एक व्यापारी नाव में माल भरकर लाया | बनिये ने अपनी चतुर बुधि से सारे माल का सोदा कर लिया | फिर उस माल को दुगने दाम पर नगर के व्यापारी को बेच दिया | उस तरह बिना धन लगाए ही उसे एक लाख रुपयों का लाभ हुआ | अब वह बनिया नगर सेठ के पास पहुचा | उसने एक लाख रुपयों कि थेली दिखाकर सारी कहानी सुना दी |

“धन मेने आपकी प्रेरणा से ही कमाया है” बनिये ने कहा |

“इसमें मेरा कुछ नहीं है } सब तुम्हारे प्र्यत्न्न का फल है |”

“लेकिन इसमें यह सिद्ध हो गया है कि समझदार और चतुर व्यक्ति वही है जो थोड़े से साधनों से भी अपना काम बढाकर जीवन में उन्नति कर सकता है | आशा है, तुम्हारी यह कहानी  भविष्य की पीढीयो को प्रेरणा देगी |”

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