चालक पंडित

कशी पुर एक पंडित रहता था और वो बहुत गरीब था वह अपने परिवार के लिए बहुत मुश्किल से दो वक्त की रोटी का बंदोवस्त कर पाता था इसलिए उसकी पत्नी ने उसे सुझाव दिया की वह एक बार राजा से मिले और उनसे कुछ मदद मांगे | उसका सुझाव मानकर पंडित उसी दिन राजा के दरबार के लिए चल दिया | वह राजा से मिला और राजा ने उसके आने का कारण पूछा तो पंडित जी बोले, हे महाराज में सीधा केलाश पर्वत से आ रहा हु | वहा में भगवान शिव से मिला था | उन्होंने मेरे आप के लिए के संदेश भेजा है की उन्हें एक गाये की आवश्यकता है |

राजा बहुत चतुर था उसको शंका हुई | वह तुरंत समझ गया की गाय भगवान को नहीं उसे चाहिए किंतु वो सीधा मांगने से डर रहा है | राजा ने अपने मंत्री को कहा की पंडित जी के लिए गाय का बंदोवस्त किया जाए और राजा ने अपने मंत्री को कहा की पंडित जी को एक हजार स्वर्ण मुद्रए दे दे | मंर्त्री ने उसे गाय और एक हजार स्वर्ण मुद्रए दे दी | पंडित ने एक नजर में ही भांप लिया की गाये बहुत बड़ी थी | उसे देखा कर उसने नाटक किया और उसके चारो तरह घुमा और सिर झुका कर और अचानक वह अपने कान को गाये के पास ले गया | कुछ देर बाद वह सीधा खड़ा होकर राजा से बोला, महाराज, इस गाय ने मुझे अभी अभी बताया है की यह बहुत ही बूढी गाय है और यह भी कहा की इस आयु में अब वह दूध भी नहीं दे सकती और बछड़े को भी पैदा नहीं कर सकती है |

यह सुनकर राजा पंडित की बुदिमानी से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपने मंत्री की एक जवान गाय लाने को कहा और राजा ने साथ ही साथ पंडित को राजे पंडित को घोषण कर दी |

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