एक बहुत बड़ा राजा था परंतु उस राजा के बुरे दिन आ गये थे क्योकि उसके पड़ोसी राजा ने उस पर हमला कर दिया और मजबूरी में उसने अपनी पत्नी और बच्चे सहित अपने राज्य से भागकर जंगल में शरण लेनी पड़ी | राजा बहुत ही दयालु और दानी था उसके यहाँ से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता था और सही सोच कर राजा और रानी अपने दिन बिता रहे थे की कोई न कोई उनकी मदद करने जरुर आयगा | परन्तु स्थिथि बहुत ही जायदा ख़राब हो रही थी | यहाँ तक की उनके भूखे मरने की नोबत आ गई थी |
राजा दिन प्रति दिन शहर जाता, काम की तलश में परंतु उसे कही काम न मिला | एक दिन भाग्यवश उसे काम मिल गया | और ख़ुशी ख़ुशी कुछ राशन ले कर अपनी पत्नी और बच्चो के पास पहुचा | रानी ने सभी के लिए खाना बनाया और खाने ही लगे थे की उनके पास एक महात्मा उनके घर आ गए | जैसे की राजा और रानी बहुत दानी थे उन्होंने अपने अपने हिस्से का खाना महात्मा को दे दिया |
महात्मा के खुश हो कर राजा को एक सेठ के बारे में बताया की वो पुण्यो के बदले पैसा देता था | यह सुनकर राजा अगले ही दिन शहर चला गया अपने पुण्यो के बारे में बताने ताकि उसको कुछ पैसे मिल सके | राजा ने अपने सारे पुण्ये की एक सूची सेठ को दे दी | जब सेठ ने यह सूची तराजू के एक पलड़े में रखी तो भी दोनों पलड़े बराबर ही रहे | यह देखकर सेठ ने राजा के कहा, “लगता है तुम्हारे पुण्यो में मेहनत और बलीदान शामिल नहीं थे | किसी ऐसी वस्तु की यद् करो जिसकी तम्हे बहुत आवश्कता थी, किंतु फिर भी तुम ने उस को दान में दे दिया था |