अब नानक युवा हो चुके थे इसलिए उनके पिता ने सोचा की अब नानक का जनेऊ करा देना चाहिए | जनेऊ हिन्दुओ का प्रमुख संस्कार है | और यह माना जाता है इस इसके बाद व्यक्ति उच्च वर्ण में प्रवेश कर जाता है | हिन्दू धर्म के अनुसार जनेऊ केवल ब्रह्मणों, क्षत्रियो और वेश्यो को ही अधिकार था | और जैसा की हमे अभी तक पता चला है की नानक जी को इस सभी प्रकार के कर्मकांडो पर बिलकुल विश्वास न था और अपने पिता को साफ मना कर दिया जनेऊ पहनने से और अपने पिता और पुरोहित से बोमे, “क्या कोई ऐसा जनेऊ भी है जिससे व्यक्ति परलोक में ले जा सके ? और अगर है तब में वो जनेऊ जरुर धारण करुगा |
यह बात सुनकर पुरोहित ने स्वीकार किया की उनके पास ऐसा कोई जनेऊ नहीं है | उस वक्त धर्मिक कर्मकांडो को विरोध करना इतना आसन नहीं होता था | परन्तु नानक अपनी बात पर अड़े रहे और इस प्रकार के कर्मकांडो को विरोध करते रहे | उन्होंने अपने शब्दों में आदर्श जनेऊ की व्याख्या की : –
दइआ कपाह संतोखु सुनु जतु गंढी सतुवटु|
एहु जनेऊ जीउ का ह्यीता पांडे धाउ||
ना एहु न मलु लगे न एहु जले ना जाई ||
धनु सु माणस नानका जो गलि चले पाई ||
व्याख्य: इस शब्दों का अर्थ हहै की जनेऊ ऐसा हिना चाहिए, जिसमे दया की कपास लगी हो और संतोष की सूत लगी हो | ऐसा जनेऊ सत्य से बटा जाता है | मनुष्य को ऐसा ही जनेऊ धारण करना चाहिए | ऐसा जनेऊ न कभी टूटता है न कभी गन्दा होता है और न कभी जलता है | नानक कहते है की जो व्यक्ति ऐसा जनेऊ फंता है उसे सत करतार का आशीर्वाद मिलता है |
नानक जी मानते है की संसार में जन्म, विवाह, मुत्यु, आदि जीवन की सभी चीजो में कही न कही कोई न कोई रीती – रिवाज जुड़े हुए है | इस प्रकार के रीती – रिवाजो को नानक समय और धन की बर्बादी समझते थे | नानक अनुभव करते थे की पुरोहित, ब्रह्मणों अपने स्वार्थ के लिए भोली भली जनता को धर्म के नाम पर मुर्ख बनाते है |