प्रार्थना क्या है?

प्रार्थना क्या है? शायद एक ऐसी अवस्था जिसमें हम जो भी आभाव महसुस करते है हम परमात्मा से मांगते है | क्या प्राथनाए सिर्फ जो ध्यावे, फल पावे वाला फ़ॉर्मूला है? हम बच्चो से भी कहते है कि आज परीशा है परमात्मा से प्रार्थना कर के जाना | माना प्रार्थ्रना का जन्म इन्सान की बेबसी, तनाव, चिंता, आदि परेशानियों से निजात पाने के लिए होता है | पर इसका मतलब ये नहीं की हम हर वक़्त भगवान से सिर्फ प्रार्थना ही करते रहे कि है भगवान मुझे ये दिला दे, मुझा इम्तिहान में अवल करा दे, इत्यादि |

ऐसे समय हम पूर्ण व विश्वाश से परमात्मा से प्रार्थना करते है | वेसे हमारा हर विचार एक प्रार्थना ही हे | हर विचार तरंगो के रूप में निकलता है | हमारे विचार जिन्हें हम प्रार्थना में दोहराते हे, धनात्मक शिवांक पैदा होते है, जो उस वस्तु को अपनी और आकर्षित करने लगती है | आप ने महसुस किया होगा जब आप कुछ चाहते है सच्चे दिल से तो पूरी कायनात का जर्रा – जर्रा आपको उससे मिलाने में लग जाता है|

किंतु हर प्रार्थना पूरी तो नहीं होती ? प्रार्थना कैसी होनी चाहिय? कई लोग पूछते है क्या प्रार्थना करनी ज़रूरी होती है? ये प्रशन हर इन्सान के मन में आता है और जब तक इनका उत्तर नहीं मिलता, इन्सान को मन विचलित रहता है |  सही मायनो में हमे अपने लिए तो प्रार्थना करनी ही नहीं चाइये क्योकि परमात्मा को सब पता है की उसके बच्चे को कब क्या चाइये और कितना चाइये | क्योकि वो अध्यातम पिता है ना की संसारिक पिता जिसको बताना पढ़े | वैसे भी जो हम ने कर्म किये है वैसा ही हमे फल मिलता है | और अगर हमे प्रार्थना करनी भी है तो प्रार्थना स्वार्थ सीधी के साथ जगत हित भी शामिल हो तो सोने पे सुहागा हो जाता है | जैसे हे प्रभु मुझे डॉक्टर बनाना ताकी में मानवता की सवा कर सकु|

यह तो शांत मन की बात हुई पर उस माँ का क्या जिसका बच्चा दुर्घटना से ज़ख़्मी , मोत से लड़ रहा है| उस वक़्त, माँ बच्चे को बचाने के लिया प्रार्थना तो करेगी किंतु उस मनुष्य को भी कोसेगी जिसके द्वारा ये दुर्घटना हुई | किंतु देनिक सजगता से हम अपने व्यवहार बदल सकते है | हमे प्रार्थना इस तरह करनी चाइये “हे प्रभु मेरे बच्चे के जीवन की रक्षा करना और उस मनुष्य को सध्बुदी, होश देना ताकी वो और ऐसी दुर्घटना ना करे | याद रहे दोस्तों, अगर कोई भी हमारा बुरा करे तब भी हमे उसके लिया बुरा नहीं सोचना चाइये क्योकि बुरा सोचने से भी हम अपना एक गलत संस्कार अपने कर्मकांड में जोड़ देते है  जिसका फल हमे ही भुगतना पड़ता है कभी ना कभी | बल्कि हमे परमात्मा से यह प्रार्थना करनी चाइये की उस इन्सान को सही मार्गदर्शन दे ताकी वो किसी के साथ भी गलत ना कर सके |

दोस्तों अगर मांगना भी है तो उस परमात्मा को मांगो, जिसके मिलने से किसी और वस्तु की अवक्ष्कता ही नहीं पड़ती | फिर इन्सान सम्पूर्ण हो जाता है |

सर्वे सुखिनः भवन्तु | सर्वे संतू निरामय |

सर्वे भद्राणी पशन्तु | मा कशिचदू दूख माग भवेत |

 

लेखक: युग्म जेतली

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