चिंपू और चींची

किसी जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था | उस पेड़ पर एक बंदर रहता था | उसका नाम चिंपू था | वह हमेशा सबसे लड़ता और उनका नुकसान करता था | उसी पेड़ पर एक चिड़िया भी रहती थी | उसका नाम चींची था | वह एक समय मीठे मीठे गीत गाती थी | गरमी का मोसम चला गया और बरसात का मोसम आ गया | चींची ने बरसात आने से पहले ही अपना घोंसला बला लिया था |

आकाश में काले – काले बादल आकर गरजने लगे | मोर नाचने लगे | देखते – ही – देखते बरसात होने लगी | बारिश के जल से जंगल की मिटटी महक उठी | धीरे – धीरे बारिश और तेज हो गई | चींची अपने घोसले में दुबककर बेठ गई | चिंपू बेचारा पेड़ पर बेठा – बेठा भीगता रहा | चिंपू को भीगता देख चींची हसने लगी |

हँसते – हँसते उसने चिंपू से कहा – अरे, मामा जी | आपसे मेने पहले ही कहा था, अपने लिए घर बना लो, लेकिन मेरी बात नहीं सुनी | अब भीगते रहिए | भगवान ने आपको दो हाथ दिए है | मुझे देखो मेरे पास तो हाथ भी नहीं है | फिर भी मेने अपनी चोंच से यह घोंसला बनाया | चाहते तो आप भी अपने लिए एक घर बना सकते थे |

चिंपू बोला – “ देखो, मुझे सीख मत दो | तुम चुप हो जाओ |” चींची ने कहा – “देखिए आप मुझे से बहुत बड़े है | आपके हाथ, पैर, सिर, कान, नाक सब कुछ इंसानों जैसा है | आप मुझसे अधिक ताकतवर भी है | यदी आपने समय रहते अपने लिए घर बना लिया होता टी, आज मजे से उसमे बेठे होते | अब भीगते रहिये, मुझे क्या |”

चींची की बात सुनकर चिंपू नाराज हो गया | वह जोर से बोला – “ मेने तुझे मना किया था की मुझे सीख मत दे, लेकिन तू नहीं मानी | मेरी बहुत हंसी उड़ा रही है | में तुझे अभी मजा चखाता हु |” यह कहकर चिंपू ने चींची का घोसला तोडकर फेक दिया |

सीख: समझाओ उसे जो समझना चाहे|