मुंशी प्रेमचंद का परिचय (Introduction of Munshi Premchand in hindi)

हिंदी साहित्य में जिन्हे भी रुचि है उन्हे मुंशी प्रेमचंद का परिचय देने की जरूरत नही है। हिंदी साहित्य के एक कद्दावर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।

उनका जन्म 11 जुलाई 1880 को बनारस के लमही जिला में हुआ था। उन्होंने हिंदी एवम उर्दू के सोशल  फिक्शन को सम्पूर्ण जगत में एक विशेष स्थान दिया है।

उनकी कहानियां समाज में मौजूद कुरूतियो को एड्रेस करती है और एक व्यंगात्मक तरीके से समाज में जागरूकता फैलाने का काम करता है। जाति प्रथा, महिलाओं की पीड़ा एवम मजदूरों के शोषण के बारे में लिखने वाले मुंशी प्रेमचंद चंद लेखकों में से एक थे।

वे २० शताब्दी के सबसे मशहूर लेखक के रूप में भी जाने जाते है। उनके लेखनी में गोदान, कर्मभूमि, गबन, ईदगाह, मानसरोवर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध लेख है।

उन्होंने अपनी पहली किताब १९०७ में सोज ए वतन के नाम से प्रकाशित की थी। यह किताब ५ शॉर्ट स्टोरीज का कलेक्शन है।

मुंशी प्रेमचंद से पहले वे नवाब राय के नाम से प्रसिद्ध थे लेकिन उनके लेख प्रसिद्ध होने पश्चात उन्हे मुंशी की उपाधि दी गई। तत्कालीन लेखकों द्वारा उन्हें उपन्यास सम्राट भी कहा जाता था।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन (Early days of Munshi Premchand’s Life in hindi)

मुंशी जी एक कायस्थ परिवार से आते थे उनके दादाजी अपने गांव के पटवारी थे और पिताजी अजैब लाल एक पोस्ट ऑफिस में क्लर्क के रूप में तैनात थे।

उनकी माताजी का नाम आनंदी देवी था जो करौनी गांव की रहने वाली थी। ऐसा भी कहा जाता है की उनकी माताजी उनकी कहानी बड़े घर की बेटी की मुख्य किरदार आनंदी कि प्रेरणास्त्रोत थी।

मुंशी प्रेमचंद अर्थात धनपत राय अपने माता पिता की चौथी औलाद थी और उनकी एक बहन थी जिनका नाम सुग्गी था। प्रेमचंद जी को उनका पहला उपनाम नवाब उनके करीब के चाचा महावीर जी ने रखा था।  मुंशी प्रेमचंद जी एक धन सम्पूर्ण परिवार से आते थे।

उन्होंने अपना शुरवाती शिक्षण लालपुर एक मदरसा से पूर्ण किया और वही उन्होंने उर्दू और पर्शियन भाषा मदरसा के मौलवी से सीखी। उनकी 8 साल की उम्र में उनकी माताजी का एक लंबे बीमारी के कारण देहांत हो गया उसके बाद उनके दादीजी ने ही उनका पालन पोषण किया परंतु वे भी जल्द ही

इस दुनिया से चल बसी। उनकी बहन की भी छोटी उम्र में शादी हो गई और पिताजी हमेशा ही काम में व्यस्त  रहते थे जिससे उनका बचपन बहुत ही एकांत में गुजरा। उनके पिताजी ने दूसरी शादी भी कर ली थी पर सौतेली मां से उन्हे उतना प्यार और दुलार नही मिला।

आगे चल के प्रेमचंद जी ने अपनी कई लेखनों में अपनी सौतेली मां का उल्लेख किया है। इसी अकेलेपन के कारण बचपन से ही मुंशी प्रेमचंद को काल्पनिक कथाएं पढ़ने का शौक था ।

उन्हे पर्शियन भाषा की कथाएं सुनने में भी दिलचस्पी थी । उनके पढ़ने कि इसी दिलचस्पी से उन्होंने ने  पुस्तक बिक्री की दुकान में काम करना शुरू किया और यह उन्हे विभिन्न किताबे पढ़ने का अवसर मिला ।

उन्होंने अंग्रेजी की पढ़ाई एक मिशनरी स्कूल से की थी और फिर उनकी अंग्रेजी काल्पनिक कथाओं में भी दिलचस्पी जग गई।

उनका कथाओं का पहला संकलन उन्होंने गोरखपुर में लिखा था परन्तु वो संकलन कभी प्रकाशित ही नही हुआ और अब वो खो गया है। यह संकलन एक युवा का एक छोटी जाति की महिला से प्रेम करने का स्वांग था।

यह संकलन उन्होंने अपने के चाचा के ऊपर लिखा था जो उन्हे हमेशा उनके पुस्तको के लगाव के कारण  चिल्लाते रहते थे । कई जानकारों का यह भी मानना है यह संकलन उन्होंने अपने चाचा से बदले के रूप में लिखा था।

 

मुंशी प्रेमचंद की पढ़ाई (Education of Munshi Premchand in hindi)

१८९० के मध्य में उन्होंने क्वीन कॉलेज एट बनारस के दाखिला लिया और वहा उन्होंने अपना उच्च शिक्षण पूर्ण किया। १८९५ में १५ साल की उम्र में उन्होंने पहली शादी कर ली।

उस समय वे कक्षा ९ में पढ़ रहे थे । लड़की एक अमीर खानदान से थी और प्रेमचंद जी से उम्र में बड़ी भी थी।

इतिहासकारों की माने तो प्रेमचंद जी को अपनी पत्नी पसंद नही थी और उनकी इच्छा विरुद्ध यह शादी हुई थी।

उनकी शादी के तुरंत बाद १८९७ में लंबी बीमारी के पश्चात उनके पिताजी का भी देहांत हो गया। मुंशीजी ने सेकंड डिवीजन में अपना मैट्रिकुलेशन पास कर लिया और उसके बाद उन्होंने सेंट्रल हिंदू कॉलेज मे एडमिशन लेने की कोशिश की लेकिन पढ़ाई में कमजोर होने की वजह से उन्हे वहा दाखिला नहीं मिला और उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी।

इसके बाद उन्होंने एक वकील के बेटे को शिक्षा लेने कार्य ५ रुपए महीने की सैलरी पे चालू किया। इसी दौरान उन्होंने अपने किताबे पढ़ने का शौक जारी रखा और खूब सारी किताबे पढ़ी।

अपने बढ़ते कर्ज को चुकाने के लिए एक दिन वो अपनी किताबे बेचने एक दुकान गए जहा वे मिशनरी कॉलेज के हेडमास्टर से मिले जिन्होंने प्रेमचंद जी को स्कूल में टीचर के रूप में कार्य करने का मौका दिया।

तब उनका वेतन ५ रुपए से बढ़कर १८ रुपए हो गया। इसी के साथ साथ उन्होंने बच्चो को पढ़ाने का कार्य भी जारी रखा। १९९० में उन्होंने सरकारी जिला स्कूल में सहकारी टीचर के रूप में २० रुपए प्रति महीने की सैलरी पे काम करना शुरू किया।

अपनी पहली पत्नी से निरंतर झगड़ो के कारण प्रेमचंद ने दूसरी शादी शिवराणी देवी से की जो एक जमींदार की बेटी थी। शिवरानि देवी एक विधवा थी जिस कारण प्रेमचंद को समाज से काफी आलोचना का भी  सामना करना पड़ा। उनका ये शादी करने का कदम उस समय एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखा जाता है।

प्रेमचंद का लेखन (Premchand’s Writing in hindi)

नवाब राय के उपनाम से उन्होंने अपना पहला हिंदी उपन्यास असरार ए माबिद, देवस्थान रहस्य लिखा। यह उपन्यास मंदिर के पंडित और उनके द्वारा गरीब महिलाओं का शोषण किए जाने पर आधारित था यह उपन्यास बनारस के उर्दू साप्ताहिक आवाज e खल्क ने १९०३ में प्रकशित किया था।

उनके इस पहले उपन्यास का उपन्यासकारो द्वारा खूब आलोचना की गई। इसे अपरिपक्व तक कहा गया था। १९०५ में वे कानपुर रहने लगे और कानपुर में उन्होंने ४ साल बिताए. कानपुर में उनकी मुलाकात उर्दू मैगजीन  ज़माना के एडिटर मुंशी दया नरेन निगम से हुई|

जिन्होंने बाद में मुंशी प्रेमचंद जी के कई कहानियां भी मैगजीन में प्रकशित किए। स्वाधीनता आंदोलन से प्रेरणा लेकर उन्होंने कांग्रेस लीडर गोपाल कृष्ण गोखले पर ज़माना मैगजीन में आर्टिकल लिखे।

उन्होंने गोखले की कार्य की आलोचना की और स्वाधीनता पाने के लिए उन्हें बाल गंगाधर तिलक के आक्रामक तरीके से काम करने की सलाह दी। प्रेमचंद जी की पहली प्रकाशित कहानी का नाम दुनिया के सबसे अनमोल रतन था|

जिसका प्रकाशन ज़माना ने ही किया था यह कहानी भी स्वाधीनता आंदोलन से प्रेरित थी जिसके अनुसार वो अनमोल रतन की वजह से हमे स्वाधीनता प्राप्त होती है। मुंशीजी की शुरुवाती कई कहानियां स्वाधीनता के आंदोलन से ही प्रेरित थी।

मुंशी प्रेमचंद एक सच्चे देशभक्त भी थे इसका परिचय उन्होंने असहयोग आंदोलन में शामिल होकर दिया था। गांधीजी के आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी थी।

प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास हमखुर्मा ओ हमसवेब जिसे हिंदी में प्रेमा भी कहा जाता है १९०७ में प्रकशित हुआ  था। ये उन्होंने बाबू नवाब राय बनारसी उपनाम से लिखा था।

उसमे उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के बारे में लिखा था जो उस समय एक बहुत ही क्रांतिकारी कार्य था। यह उपन्यास उनकी खुद के द्वारा विधवा से किए गए शादी से प्रेरित माना जाता है।

अपनी पहले उपन्यास के आलोचना के बाद उनके दूसरे उपन्यास ने काफी तारीफे बटोरी। यह उपन्यास महिला शस्तीकरण के और एक कदम था।

प्रेमचंद जी का पहला उपन्यास सोज ए वतन ज़माना में प्रकशित तो हुआ लेकिन इसे बाद में ब्रिटिश द्वारा प्रतिबंधित भी किया गया क्योंकि तब उपन्यास यूवाओ को स्वाधीनता आंदोलन में शामिल होने में लिए आव्हान कर रहा था। प्रेमचंद जी प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन लखनऊ के पहले प्रेसिडेंट भी चुने गए थे।

 

प्रेमचंद नाम के पीछे की कहानी (Story of premchand’ s Name in hindi)

प्रेमचंद जी का महोबा के बाद हमीरपुर के सरकारी स्कूल में सब डिप्यूटी इंस्पेक्टर के तौर पर तैनाती हुई ।

इसी वक्त सोज ए वतन ने ब्रिटिशर्स का ध्यान आकर्षित किया और राष्ट्रद्रोह के जुर्म में इसपे प्रतिबंध भी लगाया गया l

ब्रिटिशर्स ने प्रेमचंद जी के घर पर रेड मारकर पुस्तक की सारी कापिया बरामद की । इसी घटना के चलते मुंशी दया नरेन ने धनपत राय को प्रेमचंद नाम रखने की सलाह दी।

तो इस तरह धनपत राय धनपत राय से प्रेमचंद बन गए।

१९१४ में जब प्रेमचंद ने हिंदी में लिखना चालू किया तब तक वह उर्दू के मशहूर लेखक बन चुके थे। उस समय उर्दू कहानियों को प्रकाशित करने के लिए कई मुश्किलें आती थी यही वजह थी कि प्रेमचंद ने हिंदी में लिखना

शुरू किया।

 

सौत नाम की उनकी पहली हिंदी कहानी सरस्वती नाम के मैगजीन में १९१५ में प्रकाशित हुई थी और उनकी पहली हिंदी कहानियों का संकलन सप्ता सरोज जून १९१७ में प्रकाशित हुआ।

 

पुरस्कार (Awards)

  • प्रेमचंद की याद में ३१ जुलाई १९८० को उनकी जन्मदिवस के अवसर पर ३० पैसे का एलब्दक टिकट जारी किया गया।
  • मुंशी जी जिस स्कूल में टीचर थे वहा प्रेमचंद की स्मृति में प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है।
  • इसी स्कूल में एक संग्रहालय भी है जहा प्रेमचंद से संबंधित चीजे रखी गई है। इसी के आंगन में इसके भित्तिलेख है।
  • शिवरानी देवी मुंशी जी की करनी ने प्रेमचंद जी की आत्मकथा भी लिखी है जिसका नाम प्रेमचंद घरमें है।
  • इसमें ऐसी कई बाते बताई गई जिससे सम्पूर्ण जग अनजान था।
  • इसी के साथ साथ उनके बेटे अमृत राय ने भी अपने पिता की जीवनी कलम का सिपाही नाम से लिखी है ।
  • प्रेमचंद के उपन्यास सिर्फ भारत में ही नही परंतु सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है ।
  • इसी कारणवश उनकी पुस्तको का अनुवाद चीनी, रूसी, अंग्रेजी एवम अनेक विदेशी भाषाओं में हुआ है।

 

प्रेमचंद के अंतिम दिन एवम उनका प्रभाव (Last days of premchand and his influence in hindi)

अपने अंतिम दिनों में उन्होंने भारत की गांव के जीवन पर वहा की समस्याओं पर अपना लेखन किया। यह लेखन और उनका नजरिया उनकी लिखी गई पुस्तको गोदान और कफन में देखा जा सकता है ।

प्रेमचंद जीवन भर यह मानते रहे की हिंदी साहित्य आक्रामक होना चाहिए उसे भावनाओ से कमजोर बनाना एक चूक होगी।

मुंशी प्रेमचंद ने देश के पाठको को शहरों की चकाचौंध से उठाकर उन्हें गांव के अंधियारे भरे सच्चाई से परिचय कराया।

उनकी लेखनी इतनी ताकतवर थी की उनके जैसा प्रभावशाली उर्दू लेखक उस दौर में शायद ही कोई था। प्रेमचंद के कई उपनायसो से प्रेरित होकर फिल्मे भी बनी है जैसे सेवासंदनाम, द चेस प्लेयर्स इत्यादि।

 

उन्होंने अपने जीवनभर में दर्जन भर से ज्यादा उपन्यास, ३०० के करीब शॉर्ट स्टोरीज, कई निबंध और अनेक विदेशी लेखनों को हिंदी में अनुवाद करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।

 

F.A.Q.s:

1) प्रेमचंद का पहला उपनाम क्या था?

नवाब राय।

2) प्रेमचंद ने अपना प्राथमिक शिक्षण कहा से पूर्ण किया?

लालपुर एक मदरसा से।

3) प्रेमचंद की पहली हिंदी कहानी का नाम क्या था?

सौत

4) मुंशी प्रेमचंद का असली नाम क्या था?

मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।

5) प्रेमचंद की पत्नी का नाम क्या था?

शिवरानी देवी।

6) मुंशी प्रेमचंद के पहले उपन्यास का नाम क्या था?

सोज ए वतन।

7) मुंशी प्रेमचंद ने किस भाषा में कहानियां लिखना चालू किया था?

उर्दू और पर्शियन।

8) मुंशी प्रेमचंद की बहन का नाम क्या था?

सुग्गी।

9) मुंशी प्रेमचंद का शुरवाती लेखनी किसी प्रेरित था?

स्वाधीनता आंदोलन से।

10) मुंशी प्रेमचंद के ३ प्रसिद्ध उपन्यास का नाम बताए?

गोदान, कर्मभूमि, गबन।

 

Conclusion:

मुंशी प्रेमचंद केवल एक लेखक नहीं थे उन्होंने अपने लेखन से समाज में क्रांति लाने का काम किया है। उस समय ऐसे बहुत कम लेखक थे जिन्होंने समाज की कुरुतियो को बिना भय लिखा है।

 

मुंशी जी शुरुवाती जीवन कठिनाइयों से भरा था लेकिन उनकी मेहनत और लगन से वे एक कुशल लेखक बन गए। अपनी लेखनी से उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन को भी मजबूत बनाया।

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