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भारत को आजाद कराने में दो तरह के स्वंतंत्रता सेनानियों ने अपनी भूमिका निभाई। एक ने बरछी तीर तलवार से अंग्रेजों से युद्ध किया तो दूसरे ने अपने कलम के जरिए युवाओं में उत्साह भर कर भी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भरपूर योगदान दिया।
ऐसा ही एक नाम है सुभद्रा कुमारी चौहान जी का। बल्कि इनकी बारे में तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि इन्होंने तो इन दोनों ही रुपों में देश को आज़ाद करने में अपनी भूमिका निभाई। एक तरफ ये अपनी कविताओं के मध्यम से देश भक्ति की भावना को जगाती तो दूरी तरफ गांधी जी के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। आज के अपने इस अंक में हम इसी स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जानेंगे।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी भारतीय हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध देशभक्त कवयित्री एवं लेखिका थी। इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से जान जान में देशभक्ति का संचार किया। इनका जन्म 16 अगस्त 1904 ईस्वी को इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गाँव में एक प्रसिद्ध जमींदार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह बहुत बड़े शिक्षा प्रेमी थे। सुभद्रा कुमारी जी चार बहने और दो भाई थे।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके पिता के संरक्षण के ही हुई। बाद में ये इलाहाबाद के क्रोसथवेट गर्ल्स स्कूल में अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए गईं जहां महदेवी वर्मा जी इनकी जूनियर एवं सहेली थीं। प्रारम्भ से ही इन्हें कविताएं करने का बहुत शौक था। इनकी कविताएं राष्ट्रीय भावना से भरी होतीं थीं।
इनका विवाह ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ हुआ जो जबलपुर के रहने वाले थे। 1921 ई० में ग़ांधीजी के साथ असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इस आंदोलन में भाग लेने वाली ये प्रथम महिला थीं। इस आंदोलन के कारण इन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा। 15 फरवरी 1948 में जब एक बार वे कार से यात्रा कर रहीं थी तो कार दुर्घटना में इनकी अकस्मात मृत्यु हो गई। अपने छोटे से जीवन काल मे भी इन्होंने ऐसे कार्य किए जो इन्हें हमेशा के लिए अविस्मरणीय बना दिए।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने गद्य एवं पद्य दोनों में अपनी कला का प्रदर्शन किया है। इनकी प्रमुख कहानी संग्रह निम्न हैं-
बिखरे मोती यह सुभद्रा जी का पहला कहानी संग्रह है जिसमे कुल पंद्रह कहानियां संग्रहित है। जो इस प्रकार हैं- होली, भग्नावशेष, पापीपेट, परिवर्तन, मछली रानी, कदम्ब के फूल, मछुए की बेटी, किस्मत, दृष्टिकोण, एकादशी, आहुति, अमराई, थाती, अनुरोध और ग्रामीण कूल। इन कहानियों में लेखिका ने बिल्कुल सहज भाषा का प्रयोग किया है जो जन सामान्य के लिए अनुग्रहित है। अधिकांश कहानियों की केंद्र बिंदु महिलाएं ही हैँ।
उन्मादिनी यह उनका दूसरा कहानी संग्रह है जो कि 1934 में प्रकाशित हुआ। इसमें कुल नौ कहानियां है जो कि इस प्रकार हैं- उन्मादिनी, अभियुक्त, असमंजस, सोने की कंठी, पवित्र ईर्ष्या, नारी हृदय, अंगूठी की खोज ,चढ़ा दिमाग एवं वैश्या की लड़की। इन सबमे मुख्य रूप से लेखिका ने परिवार एवं समाज को केंद्रित किया है। तत्कालीन समाज की स्थिति को अपने लेखनी के माध्यम से सुभद्रा जी ने बखुबी दर्शाया है।
सीधे साधे चित्र यह सुभद्रा कुमारी जी का तीसरा एवं अंतिम कहानी संग्रह है। इसमें कुल चौदह कहानियाँ संग्रहित है। कैलाशी नानी, रूपा, कल्याणी, बीआल्ह, दो साथी, प्रोफेसर मित्रा, दुराचारी एवं मंगला, ये इस कहानी संग्रह की ऐसी आठ कहानियां है जिनमे नारियों के जीवन मो मुख्य रूप से दर्षाया गया है। नारी जीवन से जुड़ी पारिवारिक सामाजिक समस्याओं को इन कहानियों में दिखाया गया है।
राही, हिंगवाला, तांगेवाले, गुलाबसिंह जैसी कहानियों में राष्ट्रीयता की भावना को दर्शाया गया है।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने कुल छियालीस कहानियां लिखीं जो अपनी भाषा की सहजता और तत्कालीन सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियों से सामंजस्यता होने के कारण आसानी से हृदयग्राही हैं।
सुभद्रा जी ने कहानियों के साथ साथ कविताओं में भी अपनी जगह बनाई हैं। इनकी कविता संग्रह मुकुल (1930ई०) एवं त्रिधारा हैं। इनमें संग्रहित कविताएं इस प्रकार हैं- अनोखा दान, इसका रोना, आराधना, कलह कारण, उपेक्षा, उल्लास, खिलौनेवाला, चलते समय, जीवन फूल, चिंता, झाँसी की रानी की समाधि, मेरा नया बचपन, ठुकरा दो या प्यार करो, तुम, नीम, परिचय, पानी और धूप, प्रथम दर्शन, पूछो, प्रतीक्षा, प्रथम दर्शन, प्रभु तेरे मन की जानों, भ्रम, प्रियतम से, विदाई, फूल के प्रति, मधुमय प्याली, मुझ्या फूल, मेरा गीत, मेरा जीवन, मेरी टेक, मेरे पथिक, विजयी मयूर, कदम्ब का पेड़, वीरों का कैसा हो बसन्त, वेदना, व्याकुल चाह, समर्पण, साथ, स्वदेश के प्रति, जलियांवाला बाग में बसंत।
इन सबके अलावा सुभद्रा जी ने कुछ बाल साहित्य की भी रचना की। इन कविताओं में उन्होंने बच्चों में देश प्रेम को भरने का प्रयास किया है। क्योंकि ये बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं। बचपन में किसी भी बात का असर आसानी से एवम गहराई तक होता है। इन कविताओं में मुख्य रूप से झांसी की रानी, कदम्ब का पेड़ और सभा का खेल नामक कविताएं आतीं हैं।
झांसी की रानी उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता है। जिसने उन्हें खूब प्रसिद्धि दिलाई। इसमे उन्होंने झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के देश प्रेम और देश बलिदान को शब्दों में पिरोया है। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अपने पति को खोने के बाद अपने पीठ पर अपने पुत्र को बांध कर अंग्रेजी सरकार से युद्ध किया था। अपनी विषम परिस्थिति में भी उन्होने हार नही मानी और अपने जीते जी अपनी झांसी को अंग्रेजों के अधीन नही होने दिया। ऐसी महारानी का जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।
जमींदार परिवार में जन्मी, भाई बहनों के साथ माता पिता के संरक्षण में पली सुभद्रा कुमारी चौहान जी प्रखर बुद्धि की स्वामिनी थी। कविता करना उन्हें बचपन से ही बहुत पसंद था। साथ ही यह उन्हें लिए बहुत ही सहज था। स्कूल से घर जाते जाते टांगे पर ही वे कविता कर लिया करती थीं। उनकी कविताएं मुख्य रूप से नारी समाज की समस्याओं को दर्शाने वाली या राष्ट्रीयता मि भावना से भरी होतीं थीं।
ओ कथनी एवं करनी में अंतर न था। इसलिए अपनी कविताओं में दिखाए देश प्रेम को उन्होंने अपने जीवन मे भी उतारा। अपने विवाह के कुछ समय बाद ही वे कोंग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बन गईं। कांग्रेस के विचारों को वे घर घर तक पहुचाने लगी। हर दिन सभाएं हुआ करती थी, जिसमे सुभद्रा जी अपने भाषणों से लोगों में नवीनता का संचार करतीं थीं। उन्होंने लोगों को आज के संघर्ष के बाद सुंदर भविष्य का सपना दिखाया था। गांधीजी के साथ उन्होनें असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इसी वजह से वे दो बार जेल भी गईं, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने कदम वापस नही लिए।
उस समय भारत की राजनैतिक स्तिथी बहुत ही अव्यवस्थित हो गई गई थी। अंग्रेजों ने अपनी जड़ें पूरे देश मे फैला रखीं थी। भरतीय जनता उनके अत्याचारों के अधीन किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी। इन सब से निकल पाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो गया था। एक तरह से सब मृतक का जीवन जी रहे थे । ऐसे समय मे सुभद्रा जी ने अपनी कविताओं से उनमें नए रक्त का संचार किया, उनकी सोई आत्मा को जगाया, उनमे देश प्रेम की भावना को जगाकर ब्रिटिश को भारत से खदेड़ने की योजना बनाई।
सभी तरह से सम्पन्न होने के बावजूद सुभद्रा जी बहुत साधारण जीवन जीतीं थी। किसी तरह के साज सृंगार से वे बहुत दूर थीं। वे चूड़ी एवं बिंदी का भी प्रयोग भी नही करती थीं। सुभद्रा जी मे चंचलता और गंभीरता का सामंजस्य देखने को मिलता है। एक ओर जहाँ वे पूरी निष्ठा से देश की सेवा करती थीं वही दूसरी ओर प्यार दुलार से अपने बच्चों को भी संभालती थीं।
सुभद्रा जी की बेटी सुधा चौहान ने उनके एवं उनके पति लक्ष्मण सिंह जी के संयुक्त जीवन को अपनी पुस्तक मिला तेज से तेज में लिखा है। यह पुस्तक इलाहाबाद में हंस प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक में सुधा जी ने उनकी सम्पूर्ण जीवन यात्रा, उनका बचपन, उनका राजनीति में आना, स्वाधीनता संग्राम में उनका योगदान तथा उनकी अंतिम यात्रा को बखूबी दिखाया है। अपने छोटे से जीवन काल मे किस प्रकार उन्होंने देश और परिवार दोंनो की जिम्मेदारियों को निभाया, ये इस लेख में दिखने को मिलता है।
मुकुल संग्रह के लिए सुभद्रा जी को 1931 में सेकसरिया पारितोषिक से सम्मानित किया गया।
बिखरे मोती कहानी संग्रह के लिए उन्हें दूसरी बार 1932 में फिर से सेकसरिया पारितोषिक से सम्मानित किया गया।
भारीतय डाक विभाग ने उनके सम्मान में पच्चीस पैसे का डाक पारित किया तो भरतीय तटरक्षक सेना ने उनके सम्मान में एक तटरक्षक जहाज का नाम उनके नाम पर रखा।
इस प्रकार आज हमने अपने देश की एक वीरांगना के जीवन के बारे में जाना। हमने ये जान की किस प्रकार उन्होंने अपनी लेखनी से मर चुके भरतीय जनता में नई ऊर्जा का संचार किया, साथ ही साथ खुद लड़ाई में उतर कर लोगों का नेतृत्व भी किया। ऐसे महान लोग युगों में कभी कभी ही अवतरित होते हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान जी की कविताएं आज भी लोगों में देश प्रेम को जगाती है। अपनी कविताओं में वो हमेशा याद की जाएंगी।
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