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मेहनत की रोटी का स्वाद

एक गाँव में एक जमीदार रहता था | वह वहुत अत्याचारी था वह गरीबो से दो गुना धन बटोरता था | एक दिन की बात है उसने सोचा क्यों न थोडा पूण्य ले लिया जाए | उसने सोचा में एक काम करता हु कुछ साथु-संतो को भोजन करवा देता हु | जमींदार ने अपने हाथो से सभी साधू-संतो को भोजन करवाया | जमींदार ने सभी साधू-संतो को दान दक्षिणा भी दी | दान – दक्षिणा पा कर सभी साधू-संतो ने जमींदार की बहुत तारीफ की |

यह सुनकर जमींदार अत्यधिक प्रसन्न हुआ | जो वो चाहता था वह उसने कर दिया | कुछ समय बीतने के बाद जमींदार को पता चला की गाँव में एक बहुत बड़े साधू महाराज आये हुए है लेकिन वो भोजन पर नहीं आये | जमींदार ने तुरंत अपने एक आदमी को भेजा | उन्होंने प्राथना की लेकिन वो फिर भी नहीं आये | जमींदार खुद उनके पास गया और प्रार्थना की और उनको कहा, महाराज सिर्फ आप ही नहीं आये वर्ना मेरे यहाँ पर सभी साधू-संतो ने दुपहर का भोजन किया | अगर आप भी मेरे यहाँ चल कर भोजन करे और मुझे आशीर्वाद दे |

यह सब सुनकर भी साधू महाराज ने मना कर दिया | जमींदार को थोडा सा गुस्सा आया परन्तु वह फिर भी वो महत्राज के लिए घर से खाना ले कर आया और अनुयय किया, “महाराज कुछ तो लीजिए |”

महाराज ने ही नहीं भरी और तभी वहा गरीब किसान आया | वो महाराज के लिए ज्वर की रोटिया लाया और महाराज जी के चरणों में रख दी | महाराज जी बहुत प्रंसता पूर्वक ग्रहण किया और कहा बेटा, “इतनी मीठी रोटिया तो कभी भी नहीं खाई मैंने|”

यह देख कर जमींदार गुरु जी के चरणों में गिर गया और माफी मागने लगे और कहा महाराज मेरे भोजन को भी ग्रहण करो | तब गुरु जी बोले, “बेटा जो मिठास इस रोटियों में है वह मिठास तुम्ह्रारी रोटियों में नहीं है बल्कि इनमे तो अत्याचार की दुर्गन्ध आ रही है | “

यह सुनकर जमींदार बोला, “गुरु जी आप कैसी बात कर रहे है | इतने स्वादिष्ट भोजन में से कैसे दुर्गन्ध आ सकती है |”

और तभी गुरु जी एक तरफ रोटी ली और दूसरी तरफ पूरी और दोनों को निचोड़ दिया | रोटी में से दूध और पूरी में से खून निकलने लगा |

गुरु जी ने कहा, “मेहनत की कमाई से बनी रोटी में हमेशा प्यार होता है और अन्याय की रोटी जितनी भी घी में लबा – लप को उसमे कभी भी स्वाद नहीं होता | यह देख और सुनकर जमींदार गुरु जी के चरणों में गिर गया और माफी मांगने लगा और गुरु जी आज के बाद में भी ईमानदारी के रास्ते पर चलूगा |

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