बहुत पुरानी बात है जब मोहनगढ़ पर सेठ हरिराम का शासन हुआ करता था | उसी जगह रामू नाम का एक लड़का रहा करता था | वो बहुत ही बुद्धिमान था | बड़ा होकर उसे मोहनगढ़ का दरबारी विदूषक नियुक्त किया गया |
सेठ हरिराम की माता जी जब गंभीर रूप से बीमार पड़ी तो सेठ हरिराम को यह बात समझ आ गई की उनकी माता जी के पास ज्यादा समय नहीं है | इसलिए सेठ अपनी माताजी की हर अभिलाषा को पूरा करने की कोशिश करने लगे | एक दिन उनकी माताजी का मन आम खाने की इच्छा हुई | पुत्र ने माँ की आज्ञा का तुरंत पालन करने का आदेश दिया | मगर वे उन्हें आम खिला पते उससे पहले की उनकी माता जी का देहांत हो गया और उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई | हरिराम हो अपनी माता जी की आखरी इच्छा पूरी न कर सकने का बहुत दुःख हुआ | वही पास खड़े एक ब्राहमण ने कहा सेठ अगर आप सोने के आम दान में देगे तो उनकी माँ की आत्मा को शांति मिल जायगी |
तभी सेठ ने सभी ब्राहमण को सोने के आम देना शुरू कर दिया | रामू यह सब देख रहा था और उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था की बार-बार ब्राहमण सेठ के घर के आस – पास चक्कर लगा रहे थे |
सेठ के मुनीम जी को स्वरण भंडार घटता देख कर चिंता होने लगी | उन्होंने रामू से अपनी चिंता व्यक्त की और कोई उपाय सोचने की प्राथन की | आखिर रामू ने एक रास्ता निकाल ही लिया | उन्होंने एक सेनिक को आदेश दिया की जो भी ब्राहमण सोने के आम पाने की इच्छा से आये है उन्हें पहले मेरे पास भेजा जाए और तुरंत ही रामू के ब्राह्मणों की कतार लग गई | रामू सभी ब्राह्मणों से कहता, “जो भी ब्राहमण अपनी पीठ दगवाएगा उसे सेठ सोने के तीन आम दान में देगे |”
यह बात सेठ हरिराम के कानो में पड़ी | उन्होंने तुरंत रामू को बुलवाया और कहा, “यह में क्या सुन रहा हु रामू |”
रामू ने कहा, सेठ जी मेरी माँ की अंतिम इच्छा थी की उसकी पीठ द्गवाई जाए ताकि वह रोगमुक्त हो जाए | अफसोस में उनकी या इच्छा पूरी न कर सका | इसलिए में अब दान में ब्राह्मणों को दगवा रहा हु | जिससे मेरी माँ की यह इच्छा पूरी हो सके |”
यह सुनते ही हरिराम को अपनी गलती का अहसास हो गया पर उन्होंने तुंरत स्वर्ण आम फ्लो का दान रुकवा दिया |
सीख: बिना सोचे समझे कोई भी काम न करे |
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