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बुर्ज खलीफ़ा (Burj Khalifa) के बारे में तथ्य और आंकड़े

बुर्ज खलीफा जिसे सारा संसार जनता है बुर्ज खलीफा हो पूरे दुनिया में सबसे ऊंची इमारत होने का सम्मान भी मिला है और यही नही बुर्ज खलीफा ने अपना नाम सात अजूबों में भी दर्ज करवा रखा है ।

हम आपको बता दे की बुर्ज खलीफा इतनी ऊंची इमारत है की आज तक कोई भी इमारत इतना ऊंचा नहीं बना परंतु बहुत सारी ऐसी इमारत है जो बुर्ज खलीफा जितना बड़ा तो नही है पर उससे थोड़ा बहुत छोटा है ।

बुर्ज खलीफा से थोड़े छोटे इमारत , चीन का शंघाई टावर , सऊदी का मक्का आदि और भी कई इमारतें है जो बुर्ज खलीफा से थोड़े छोटे है ।  तो आज के इस पोस्ट में हम आपको बुर्ज खलीफा के बारे में बताएंगे ।

बुर्ज खलीफा कहा पर है ?

जैसा की हमने आपको बताया कि बुर्ज खलीफा दुनिया की सबसे बड़ी इमारत है । इसलिए बुर्ज खलीफा को देखने के लिए पूरे दुनिया से लोग आते है बुर्ज खलीफा मानवी द्वारा ही बनाया गया है और इसने बहुत से रिकॉर्ड को तोड़ा भी है , बुर्ज खलीफा की स्थापना 4 जनवरी 2010 को हुआ था ।

बुर्ज खलीफा संयुक्त अरब अमीरात दुबई में है और ये इमारत दुबई की सोभा को बनाए रखा है ।

बुर्ज खलीफा में कितनी मंजिल है ?

दुबई , जिसको पूरे संसार में सबसे अमीर देश माना जाता है जोकि अपनी अमीरता के साथ साथ कई और तथ्यों को लेकर पूरे संसार में चर्चित है ।

इसी देश में बुर्ज खलीफा स्थित है जोकि सबसे बड़ी इमारत है इस इमारत की ऊंचाई लगभग 828 मीटर तक लंबा है इतनी ऊंची इमारत पूरे विश्व में एकमेव है है आपको बता दे की इस इमारत में 168 मंजिले है ।

बुर्ज खलीफा टिकट प्राइस

बुर्ज खलीफा के अन्दर घूमने के लिए आपको एंट्री फीस देना होता हैं। बुर्ज खलीफा घूमने के लिए आप ऑनलाइन बुकिंग कर सकते है, और ऑफलाइन बुकिंग भी कर सकते है। यदि हम बात करे टिकेट के कीमत की तो बुर्ज खलीफा का टिकेट Price कुछ तय नहीं है वह आप के घूमने के समय और कितने मंजिल तक आप घूमना चाहते है उस पर निर्धारित किया जाता है। जो की लगभग 1,900 रुपय से  7,500 रुपय के बीच का होता है ।

क्यों इस्तेमाल किया गया Concrite Suction System

  • बुर्ज खलीफा को बनाना इंजीनियर्स के लिए सबसे बड़ा चुनौती था इसको बनाने के लिए इंजीनियर्स को 6 साल दिए गए थे जिसमे से 3 साल बुर्ज खलीफा का डिजाइन देने में ही बीत गए । यदि इसमें तीन सालों का इंतज़ार करते तो बाकी के तीन सालों में इमारत खड़ा करना लगभग नामुमकिन हो जाता। यही कारण है कि इसके कंस्ट्रक्शन का डिजाइन बनने के पहले ही काम शुरू किया गया और इसके साथ-साथ डिज़ाइन का काम भी जारी रहा ।
  • आमतौर पर बड़ी बिल्डिंग की बुनियाद बड़े-बड़े पत्थरों पर डाला जाता है, परंतु जिस जगह बुर्ज खलीफा को बनाया जाना था उसके नीचे रेतीले और छोटे-छोटे पत्थर ही थे। इससे निपटने के लिए विज्ञान के एक मूल सिद्धांत फ्रिक्शन को प्रयोग किया गया।
  • बुर्ज खलीफा की बुनियाद 192 सॉलिड स्टील पाईल पर खड़ी की गयी, जो 50 मीटर जमीन के अंदर खोदी गयी है। पूरे बुर्ज खलीफा का वजन इन्हीं 192 सॉलिड स्टील पाईल पर बराबर वितरित किया गया है। साथ ही इस ऊंची इमारत को बनाने के लिए पहली बार Buttress Structure के रूप में बनाया गया।
  • कंस्ट्रक्शन टीम एक के बाद एक फ्लोर को बनाती गयी, परंतु थोड़ा ऊपर जाते ही इनको एक और मुश्किल का सामना करना पड़ता था । जिस कंक्रीट का मिक्सर ये लोग तैयार करके ऊपर भेजते थे वो ऊपर जाते-जाते पूरा सूख जाता था। इसका सिर्फ एक ही इलाज था वो है concrite suction system।

 

बुर्ज खलीफा को बनाने में आई कठिनाइयां

  • बुर्ज खलिफा के नीचे से लेकर ऊपर तक मोटे-मोटे पाइप को बिछाया गया है जिनके जरिये कंक्रीट को ऊपर के फ्लोर तक पहुंचना था। ये कोई छोटा काम नही था । बुर्ज खलीफा में लगने वाले कंक्रीट का कुल वजन करीब 1 लाख हाथियों के वजन के बराबर था और इतना ज्यादा कंक्रीट ऊपर तक पहुंचाने के लिए दुनिया के तीन सबसे ज्यादा ताकतवर पंप मंगवाए गए।
  • कंस्ट्रक्शन के तीन सालों में बुर्ज खलीफा के 140 फ्लोर बन के तेयार हो चुके थे और इसके साथ ही बुर्ज खलीफा ने दुनिया की सबसे ऊंची इमारत होने का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया था। इसके बाद मटेरियल ऊपर पहुंचाने के लिए जिन क्रेनों का प्रयोग किया जा रहा था वो मटेरियल को महज 120 वे फ्लोर तक ही पहुंचाने की काबिलियत रखता था । इन्हें प्रयोग करने वाले ऑपरेटरों ने भी इतनी ऊंचाई पर काम करने से मना कर दिया था ।
  • इसके लिए बाद में पूरी दुनिया से अलग-अलग देशों से क्रेन ऑपरेटरों को दुबई में लाया गया। ये क्रेन ऑपरेटर अलग-अलग भाषा बोला करते थे परंतु इनमें एक ही चीज कॉमन था और वो ये था कि इन्हें ऊंचाई से डर नहीं लगता था और ये क्रेन ऑपरेटर दिन के 12-12 घंटों तक काम किया करते थे। यहां तक की कभी-कभी तो क्रेन में ही सो जाया करते थे।
  • बुर्ज खलीफा को लांच करने के लिए लगभग 2 साल ही बचा था सारे फ्लोर का स्ट्रक्चर तैयार हो चूका था, परंतु ग्लास पैनल का काम अभी शुरू भी नहीं किया गया था। बुर्ज खलीफा में कुल 24000 विंडो पैनल लगाने बाकी थे। जब ग्लास पैनल लगाने की बारी आयी तो उनको लगाने से इमारत के अंदर का तापमान दुबई की कड़कती गर्मी और ऊंचाई की वजह से 100 Degree Centigrade तक चला गया था।
  • यदि इस Glass Panels को लगाया जाता तो इमारत को ठंडा करने में 10 गुना से भी ज्यादा बिजली खर्च होता। इस मुश्किल का हल ढूंढ़ते-ढूंढ़ते 18 महीने केसे बीत गए पता भी नही चला ।  आखिरकार John Zerafa नाम के एक इंजीनियर ने इसका हल निकाल ही लिया जो काफी महंगा था। जॉन की पेशकश कबूल को कबूल किया गया क्यूंकि इसके अलावा और कोई रास्ता भी नही बचा था।
  • इसके बाद जॉन ने एक ख़ास किस्म का ग्लास तैयार किया जो सूरज की रोशनी से निकलने वाली यूवी किरणों को वापस reflect कर देता था। इस एक ग्लास को बनाने के लिए 2000 डॉलर थी और ऐसे 24000 पैनल्स बनाने थे। 3 अरब 60 करोड़ के खर्चे में बनने वाली इन Glasses को बनाने के लिए अलग से एक factory बनायीं गयी, जिसमें सिर्फ यही ग्लास पैनल्स बनाये गए। महज 4 महीनों में ही ये Glass Panels बनकर तैयार हो गये।
  • इसके बाद जॉन ने एक ख़ास किस्म के ग्लास को तैयार किया जो सूरज की रोशनी से निकलने वाली यूवी किरणों को वापस रिफ्लेक्ट कर देता था। इस एक ग्लास को बनाने के लिए 2000 डॉलर था और ऐसे 24000 पैनल बनाने थे। 3 अरब 60 करोड़ के खर्चे में बनने वाली इन ग्लासेज को बनाने के लिए अलग से एक फैक्ट्री बनाया गया , जिसमें सिर्फ यही ग्लास पैनल बनाये गए। लगभग 4 महीनों में ही ये ग्लास पैनल बनकर तैयार हो गया।
  • इसी तरह के अनेको संकटों का सामना करते हुए आखिर कार बुर्ज खलीफा तेयार हो हो ही गया और वर्तमान में तो ये लोगो के दिलो पर राज करने वाला इमारत बन गया है ।
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