कैसे लीया अपना बदला

एक बार की बात है एक लड़का और एक लडकी अपने घर के बहार एक साथ खेल रहे थे | खेल खे में दोनों में कहा सुनी हो गई और जल्द ही दोनों में लड़ाई भी हो गई और फिर आखिर कर उस लडके ने उस लडकी को २ चांटे मार दिया, और वहा से चली गई |

लडकी गुस्से में अपने घर पहुची ही थी उसने देखा की उसके घर तो मेहमान आये हुए है तो उसने अपने गुस्से पर काबू किया परन्तु उसके पिता जान गए थे की कुछ हुआ है | उसके पिता ने पूछा, बेटा,”क्या हुआ, इतने गुस्से में क्यों हो?”

लडकी बोली, “कुछ नहीं पिता जी, बस अपना डंडा दीजिए गा, मुझे एक लडके की पिटाई करनी है |”

मेहमान ने सारी बात सुन ली बोला, “बेटी तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए, किसी पर हाथ उठाना अच्छी बात नहीं होती है |”

“उस लडके की इतनी मजाल की उसने मुझे २ चांटे मारे और में उसे कुछ भी न कहू, ऐसा नहीं हो सकता | में उसे माफ नहीं कर सकती | में तो बदला ले कर रहूगी |”

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मनुष्य की इच्छाएँ

मनुष्य की इच्छाएँ कभी खतम  नही होती | मानव की इछाये कुछ देर के लिये तो सुख देती पर मन की शांती नही दे सकती | मन एक प्रकार का रथ है जिसमे कामन, करोध, लोभ, मोह, अंहकर, ओर घृणा नाम के साथ अश्व जुटे है | कामना इन सब से प्रमुख है |

मन के तीन विकार होते है:- तामसिक, राजसिक व् सात्विक | तामसिक मन हमेशा दुसरो को नुकसान पहुचाने में आनंद प्राप्त करता है और राजसिक मन अहंकार व् शासन की बात सोचता है और सात्विक हमेशा प्रेम और शांति ही चाहता है| विवेक से ही मन को शांत और काबू में किया जा सकता है | मनुष्य के भीतर कामना, मोह, व् अंहकार जेसी जो व्रतिया है उनके सकारात्मक रूप भी है | माता पिता अपने बच्चो को कभी दुख नहीं दे सकते इसलिए कामना करते है की उनके बच्चे हमेशा सुखी रहे | मन का प्रेम ही उन्हें सन्तान के लिए बलिदान करने को भी तत्पर करता है | उनका इसमें कोई स्वार्थ नहीं होता है बस होती है तो कामना और आशीर्वाद | इसी तरह मोह का भी उदारण भी है | जब कोई युवक किसी युवती के प्रति आकर्षित होता है तो वह उसके अवगुण नहीं देखता और उसकी तरह खिंचा चला जाता है | पहले तो येन केन प्रकारेण वह उसे पाना चाहता है और पा लिया तो खोना नहीं चाहता है | उसका अंह जब जगता है तो वह खुद को उसकी नजरो में उठाने के लिए तरह-तरह से हाथ पैर मरता है | इस तरह वह अपने प्यार को पाने में सफल होता है |

नकारात्मक रूप में अंह मानव का दुश्मन भी है क्योकि यह दुसरो से बेमतलब मुकाबला करवाता है | इससे ग्रस्त व्यक्ति तरह-तरह की इच्छाएँ पलता है  और जब उससे नहीं मिलती तो बेमतलब दुखी भी हो जाता है | परन्तु अगर अंह सकारत्मक हो तो मानव का जीवन आनंद मय हो जाता है | मन को किस दिशा में ले जाना है वो इन्सान के हाथो में होता है | चाहे तो अच्छी जगह पर लगा दे या बुरी जगह पर | संतो ने कहा है: कामनाओ का अंत विनाश है | तो सवाल उठता है की क्या इनका त्याग कर देना चाहिए? क्या इन्सान को बड़ा बनने का सपना नहीं देखना चाहिए?

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