मुर्ख और ज्ञानी

एक दिन एक समस्या को सुलझाने के बाद बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल, क्या तुम जानते हो कि एक मुर्ख और ज्ञानी व्यक्ति में क्या अंतर है ?” “जी महाराज में जानता हु | “ बीरबल ने कहा “क्या तुम विस्तार से बता सकते हो ?” अकबर ने कहा | “महाराज, वह व्यक्ति जो … Read more

एकता और फुट

एक जंगल में बटेर पक्षियो का बहुत बड़ा झुंड था | वे निर्भय होकर जंगल में रहते थे | इसी करण उनकी संख्या भी बढती जा रही है |

एक दिन एक शिकारी ने उन बटेरो को देख लिया | उसने सोचा की अगर थोड़े – थोड़े बटेर में रोज पकडकर ले जाऊ तो मुझे शिकार के लिए भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी |

अगले दिन शिकारी एक बड़ा सा जाल लेकर आया | उसने जाल तो लगा दिया, किन्तु बहुत से चतुर बटेर खतरा समझकर भाग गए | कुछ नासमझ और छोटे बटेर थे, वे फंस गए |

शिकारी बटेरो के इतने बड़े खजाने को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था | वह उन्हें पकड़ने की नई – नई तरकीबे सोचने लगा | फिर भी बटेर पकड़ में न आते |

अब शिकारी बटेर की बोली बोलने लगा | उस आवाज को सुनकर बटेर जैसे ही इकटठे होते कि शिकारी जाल फेककर उन्हें पकड़ लेता | इस तरकीब में शिकारी सफल हो गया | बटेर धोखा खा जाते और शिकारी के हाथो पकड़े जाते | धीरे – धीरे उनकी संख्या कम होने लगी |

तब एक रात एक बूढ़े बटेर ने सबकी सभा बुलाई | उसने कहा – “इस मुसीबत से बचने का एक उपाय में जनता हु | जब तुम लोग जाल में फंसे ही जाओ तो इस उपाय का प्रयोग करना | तुम सब एक होकर वह जाल उठाना और किसी झाड़ी पर गिरा देना | जाल झाड़ी के ऊपर उलझ जाएगा और तुम लोग निचे से निकलकर भाग जाना | लेकिन वह कम तभी हो सकता है जब तुममे एकता होगी |”

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दो भाई

सच और झूठ जुड़वाँ भाई थे | दोनों कि एक सी शकल थी | दोनों एक ही तरह के, एक ही रंग के कपड़े पहनते थे | एक साथ खेलते, एक साथ पढ़ते | दोनों को देखकर लोग यह नहीं समझ पाते थे कि इनमे कोन सच है और कोन झूठ | पर दोनों को सभी पसंद करते थे | दोनों सुंदर थे और हसमुख भी | तब उनके नाम का मतलब वह न था जो आज है | वे तो बस ममतामयी माँ के दो प्य्रारे बेटे थे |

दोनों का बचपन तो खेल खुद में बीत गया | लेकिन किशोर होते ही दोनों अपने अपने मन कि करने लगे | दोनों में झगडा भी हो जाता | जब झूठ कोई शेतानी करके आता तो लोग शिकायत सच कि करते | जब सच कोई अच्छा काम करके आता तो प्रशंसा लुटने में झूठ बाजी मर ले जाता | झूठ भ्रम का फायदा उठाने में कभी न चुकता |

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आज्ञाकारी बीरबल

बीरबल अकबर के दरबार का सबसे ईमानदार और वफादार मंत्री था | एक बार बादशाह अकबर कि सबसे प्रिय पत्नी ने बादशाह से मिलने के लिए अपना सेनिक संदेश लेकर भेजा क्योकि बादशाह सही दरबार में थे, इसलिय वह संदेश लेकर दरबार में ही पहुच गया | बादशाह ने सोचा कि में कार्य समाप्त करके ही जाऊगा | कुछ समय पश्चात महारानी ने संदेश भेजा | बादशाह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे | इसलिय वह तुरंत कार्य छोड़ कर चलने लगे | बादशाह कि रानी से मिलने कि उत्सुकता को देखकर बीरबल अपनी मुस्कुराहट नहीं रोक पाया | उसे इस प्रकार मुस्कुराता देख बादशाह क्रोधित हो गए |

“मुझ पर इस प्रकार हंसने कि तुम्हारी हिम्मत केसे हुई ? तुम्हे तुम्हारे इस व्यवहार के लिए दंड दिया जायगा | में तुम्हे आदेश देता हु कि तुम अपने पैर जमीन पैर नहीं रखोगे | तुम यहाँ से चले जाओ|”

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लोभ का फल

एक साधू तीर्थयात्रा पर निकले | वह मार्ग में पड़नेवाले गावो और कस्बो में ठहरते जाते थे | जहा जो भी भक्त उन्हें प्रेम और आदर से बुलाते, चले जाते |

एक गाव में एक ऐसा भक्त मिला जिसने उन्हें एक गाय दान दे दी | वह बोला – “महाराज | इसे आप साथ रखिए | रास्ते में घास – पात लेगी और आपको दूध भी देगी |”

साधू ने गाय ले ली और आगे चल पड़े | अभि कुछ देर ही गए होगे की एक व्यापारी मिला | वह भी साधू के साथ साथ चलने लगा | व्यापारी ने साधू को अपना परिचय दिया | फिर उत्सुकतावश पूछ बेठा – “ यह गाय लेकर आप तीर्थयात्रा के लिए क्यों निकले है?”

साधू ने कहा – “में तो अकेला हु चला था | परंतु एक भक्त ने इसे भी साथ कर दिया ताकि दूध मिलता रहे |”

व्यापारी ने देखा की गाय बहुत सुन्दर है | दूध भी काफी देती होगी | अगर किसी तरह इसे में खरीद लू तो इसके अछे दाम मिल जायगे | यह सोचकर बोला – महाराज | आपके लिए भला दूध की क्या कमी है ? जिस गाव में डाल देगे, वहा भकत लोग दूध –ही-दूध ले आएगे | पैर इतना ज़रूर है की जंगल का मामला है | अगर गाय को खतरा हो गया तो व्यथ ही आपको पाप लगेगा | मेरी बात मानिए, आप इसे बेच दीजिए |”

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बीरबल की बेटी

एक दिन बीरबल की बेटी ने बादशाह से मिलने के लिए बहुत जोर दिया | वह 11 वर्ष की थी | वह भी अपने लिटा के समान बुद्धिमान तथा चतुर थी | बीरबल ने उसे खुश करने के लिए महल में ले गया | महल में जाकर उसने सभी कक्ष तथा शाही उधान देखे | उसके बाद वह शाही दरबार में गई | उस समय बादशाह दरबार में बैठे थे | उन्होंने बीरबल की बेटी को देखा तथ उसका स्वागत किया | उसके बाद वह भोजन करने चली गई | भोजन के बाद बादशाह ने उससे पूछा, “बेटी क्या तुम जानती हो कि किस प्रकार बात करनी चाहिए “

“जी महाराज, न अधिक न ही बहुत काम” और यह जवाब सुनकर बादशाह हेरान हो गए, उन्हें समझ नहीं आया कि वह क्या बताना चाहती है, इसलिय उन्होंने उससे पूछा, “तुम क्या कहना चाहती हो, बेटी |”

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