जो होता है अच्छे के लिए होता है

एक बार एक सेठ अपने साथियों के साथ शिकार पर गया | वह एक हिरण के पीछे जंगल में कभी अंदर तक चला गया था और वहा जाकर हिरण उसकी आँखों के सामने से ओझल हो गया था परन्तु तब तक संध्या हो चुकी थी और वहा रास्ता भी भूल गया था | करीब करीब २-३ हफ्तों तक वह एक दुसरो को खोजते रहे | और एक दिन वो सब मिल गए और सेठ अपने पर बहुत ज्यादा क्रोधित था क्योई सब ने उसे मना किया परन्तु वह फिर भी उस हिरण के पीछे चला गया था |

परन्तु सब के मिलने पर उसके दोस्तों ने उसे समझाया और कहा “सब कुछ अच्छे के लिए होता है “ यह बात सुनकर सेठ को कुछ समझ नहीं आया वह ज्यादा दिमाग नहीं लगाना चाहता था क्योकि वह बहुत थक चूका था | कुछ दिनों बाद कुछ काम करते हुए उसकी एक ऊँगली कट गई और यह देख कर फिर उसके दोस्त ने कहा “जो हुआ अच्छे के लिए होता है “ | इस बार यह सुनते ही वो गुस्से से लाल-पिला हो गया | उसने उसे तुरंत अपने घर से निकाल दिया | इस पर भी उसने यही कहा, “जो हुआ अच्छे के लिए हुआ |”

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बरतनों की मोत

रामू बड़े मजाकिया इन्सान थे | वो हर हलात में खुश रहते थे और अपने मजाकिए स्वभाव, हाजिरजवाबी और होशारियो से सबको हंसाते रहते थे |

एक बार की बात है | रामू के एक पड़ोसी के घर घर दावत थी | पड़ोसी खाना बनाने के कुछ बरतन रामू के घर से मांग कर ले गया | दुसरे दिन वह बरतन वापिस करने आया |

उन बरतनों में से एक बरतन ऐसा था जो रामू का नहीं था | रामू ने देखा तो पड़ोसी से कहा, “करे भाई, यह तो मेरा बरतन नहीं है |”

पड़ोसी ने कहा, “ रामू भाई, बात दरसल यह है की जब आपके बरतन मेरे यहाँ रहे तो उन्ही में से किसी ने यह बच्चा दिया है | अप आपने बरतनों का बच्चा है | इसलिए आपको लोटा दिया है |”

रामू ने कोई जवाब नहीं दिया | चुपचाप सारे बरतन ले कर रख लिए | कुछ दिनों बाद रामू के यहाँ दावत का मोका आया | उन्होंने अपने पड़ोसी से कुछ बरतन उधर लिए | लेकिन कई दिन बीत गए, रामू ने पड़ोसी के बरतन वापिस नहीं किए |

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खत्म न होने वाली कहानी

अरब देश में एक सुलतान रहता था उसे कहानिया सुनने का बड़ा शोक थे | वह चाहता था की दिन रात बस कहानिया ही सुनते रहे |

एक दिन उसने अपने वजीर की बुलाकर कहा, “में एक ऐसी कहानी सुनना चाहता हु जो कभी ख़त्म न हो | क्या तुम मुझे ऐसी कहानी सुना सकते हो क्या?”

यह बात सुनकर वजीर थोडा सा घबरा गया | ऐसी कहानी वह भला कहा से लाकर सुनाए जो खत्म ही न हो | उसे कुछ सुझाई न दिया | उसने सुलतान से कहा, “महाराज, मुझे एक दिन की मिह्ल्ट दीजिए |

सुलतान ने कहा, “ठीक है”

वजीर अपने घर पहुचा और अकेला बेठ कर सोचने लगा | उसे न तो भूख लग रही थी और न ही प्यास | उसने सोना चाह तो नीद भी न आई | उसे बस रक ही चिंता सता रही थी | की कल सुलतान की क्या जवाब देगा |

वजीर के बेगम से उसकी यस परेशानी देखी न गई | उसने पूछा, “क्या बात है आप इतने परेशान क्यों है?”

वजीर ने अपनी परेशानी का कारण बताया तो वह हंस पड़ी और बोली, “बस इतनी सी बात है | आप बिना वजह परेशान हो रहे है | में सुलतान की कभी ख़त्म न होने वाली कहानी सुनाउगी | आप इत्मीनान से सो जाइए और चिंता छोड़ दीजिए |”

अगले दिन वजीर ने सुलतान को बताया, “मालिक मेरी बेगम को एक ऐसी कहानी आती है जी कभी खत्म न हो | आप इजाजत गे तो कल उन्हें अपने साथ ने आऊ |”’

“सुलतान ने कहा, “ठीक है कल तुम अपनी बेगम को अपने साथ ले आना” |

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कैसे बना कपड़ा, कपास की जुबानी

यह कहानी नन्ही ममता की है | वह पहली बार अपनी मोसी के घर आई थी जो में रहती थी | सबेरा हुआ, चिड़िया ची-ची करने लगी | ममता सो कर उठी और घर के बाहर आई | उसने अपने घर के सामने कपास का खेत था | वह एक पोधे के पास जाकर उसने पूछा – “तुम्हारा नाम क्या है?”

ममता को लगा की पोधा बोल रहा है – “मेरा नाम कपास है और तुम ने जो कपड़े पहन रखे है वो भी कपास के ही है | में खेत में ही पैदा हुई और बढ़ी हुई हु | मेरे ऊपर ये डोडिया लगी है | ये जब पकेगी, तो फुट जाएगी | इनमे कपास भरी हुई है | कपास के अंदर बीज होते है | किसान बीजो को अलग क्र लेता है इस बीजो से ही नये पोधे पैदा होते है | मेरे बीजो को बिनोले कहा जाता है | बिनोले अलग करने के बाद कपास को रुई कहते है |

ममता ने पूछा – “इसके बाद क्या करते है?”

पोधे ने उतर दिया – “रुई की पुनिया बना कर चरखे पर काती जाती है | उनसे सूत के धागे बन जाते है | इस धागों से ताना तना जाता है | अगर रंगदार ल्प्ड्स बनाना हो, तो इस धागों को पहले रंग लिया जाता है | फिर ताना तना जाता है |

फिर ताने को खड्डी पर चढ़ा कर कपड़ा बन लिया जाता है | दरी, खेस, चादर आदि इसी तरह बुनी जाती है इसी तरह खद्दर भी बुना जाता है |

कपड़ा बुनने के बड़े-बड़े कारखाने में काटने, बुनने का काम मशीनों से होता है | वे मशीने बिजली से चलती है |

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सजा का इनाम

बहुत समय फहले की बात है | पंजाब में राजा रणजीत सिंह का राज था | वह अपनी प्रजा के सुख का बड़ा ध्यान रखते थे |

एक दिन रणजीत सिंह अपने सेनिको के साथ एक गाँव के पास से गुजर रहे थे | व तब तक काफी थक गए थे | राजा आम का पेड़ का धना पेड़ देखकर वे रुक गए और सिपाहियों से कहा – “हम यहाँ थोड़ी देर आराम करेगे |

रणजीत सिंह पेड़ के नीचे आँखे बंद करके आराम करने लगे | तभी एक पत्थर का ढेला आकर उनके सर पर लगा | रणजीत सिंह उठ बेठे | उनके सिपाही गुस्से में इधर-उधर दोड़ पड़े | किसने राजा को ढेला मारा?

सिपाही एक छोटे से लडके को पकड़ कर ले आए | एक सिपाही ने कहा, “महाराज, इसी लडके ने आपको ढेला मारा है |”

रणजीत सिंह को बड़ा आश्चर्य हुआ | उन्होंने लडके से पूछा, “बच्चे, मेने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?” तुमने मुझे पत्थर क्यों मारा?”

बालक डरते-डरते बोला, “महाराज, मेने आपको ढेला नहीं मारा था | में तो आम तोड़ने के लिए पेड़ पर ढेला मार रहा था | मैने आपको देखा नहीं था | गलती से ढेला आपको लग गया |”

सिपाही बोला, “यह झूठ बोल रहा है महाराज | इस शरारती लडके को सजा दीजिए |”

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अभागा कोन

राजा के दरबार में चापलूसों की भीड़ लगी रहती थी | राजा को अपनी तारीफ सुनना बहुत अच्छा लगता था | अत: सभी दरबारी राजा को खुश करने में लगे रहते थे | राजा को अपनी प्रजा के प्रति कोई रूचि न थी | बुद्धिमान और विवेकी मंत्रियो को कोई पूछाता तक न था |

राजा के दरबारियों में एक दरबारी जिसका नाम बलबीर सिंह था वो राजा के बहुत ही मुंह लगा हुआ था | एक बार राज्य के मुख्य पुजारी से बलबीर सिंह का झगड़ा हो गया | उसने मन-ही-मन पुजारी से शत्रुता ठान ली | वह उससे बदला लेने का अवसर तलाशने लगा और मोका मिलते ही उसने राजा के कान भर दिए, “महाराज दुर्गा मंदिर का मुख्य पुजारी बड़ा अभागा है | सुबह-सुबह उसका मुंह देख लेने से दिन भर कुछ न कुछ बुरा अबश्य होता है |

“नहीं, नहीं | ऐसा नहीं हो सकता |” राजा के स्वर में आश्चर्य था |

“आपको विश्वास न हो महाराज तो आप स्वंय इस बात को आजमा कर देख लीजिए”, बलबीर सिंह न अपनी बात पर जोर देते हुए कहा |

राजा ने दुर्गा मंदिर के मुख्य पुजारी को बुलवा भेजा और आज्ञा दी की अगले दिन सुबह सबसे पहले वह उसका मुंह देखेगे |

अगले दिन राजा ने सुबह – सुबह पुजारी का मुंह देखा | संयोग की बात की उस दिन कार्य की अधिकता और व्यस्तता के कारण राजा समय पर भोजन न कर सका | शाम होते ही राजा ने पुजारी को फांसी दे देने का हुक्म दे दिया |

पुजारी ने जब यह बात सुनी तो बह बड़ा हेरान और दुखी हुआ | उसे दरअसल समझ ही नहीं आया था | की क्यों राजा ने उसे बुलाया है और रातभर महल में रखा | सारी बात सुन और समझकर पुजारी ने राजा से फरियाद की, “महाराज, मेने क्या अपराध किया है जो आप में मुझे यह सजा सुना दी ?”

“तुम अभोग हो | यही तुम्हारा अपराध है |” राजा ने कहा |

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पांड्वो की गेंद

जैसा की हम सभी जानते है की पांडव पांच भाई थे | एक दिन पांचो भाई मैदान में गेंद खेल रहे थे | अचानक गेंद उछली और पास के एक कुए में जा गिरी | खेल बंद हो गया |

अभी वे बच्चे ही तो थे इसलिए वो सभी बहुत दुखी हुए | वे सोचने लगे की अब गेंद को कुए से बाहर कैसे आएगी |

पांचो पांडव कुए में झाकने लगे | गेंद पानी के ऊपर तेर रही थी परन्तु कुआ बहुत गहरा था उसमे उतरने का साहस किसी में न था | इतने में वहा से एक ऋषि जा रहे थे | बालको को उदास देखकर उनसे उनकी उदासी का कारण पूछने लगे |

तभी उनमे से एक भाई ने कहा – मुनिवर, हम लोग यहाँ पर गेंद खेल रहे थे और फिर गेंद कुए में जा गिरी | परन्तु हम उसे निकल नहीं पा रहे है | इसलिए हम सभी लोग बहुत उदास है |

ऋषि ने बोले बस इतनी सी बात – “लो में अभी तुम्हरी गेंद निकाल देता हु |”

इतना कहा कर ऋषि ने अपना धनुष निकला और बाण चढाया और कुए में छोड़ दिया | और वह बाण गेंद में लग गया और फिर ऋषि ने दूसरा बाण और फिर तीसरा बाण और फिर बाण पर बाण छोड़े |अंत में ऋषि ने ऊपर वाले बाण को पकडकर ऊपर खिंचा और गेंद को कुए के बाहर निकला |

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कथनी और करनी

एक गरीब बुढा था | उसके कोई सन्तान नहीं थी | बुढ़ापे में उसकी देखभाल करती | अत: उसे स्वंय मेहनत – मजदूरी करके अपना पेट पालना पड़ता था |इसलिए वह रोज जंगल से लकडिया काटकर लाता तथा उन्हें शहर में बेचता था |

अक्सर परेशानी में वह बुढा एक ही बात कहता, “इससे तो अच्छा है की यमराज मुझे उठा ले |” एक दिन बुढा बीमार पड़ गया | परन्तु लकडिया काटने के किए जैसे-तेसे लकडिया काटकर उनका गट्ठर बनाया और उसे उठाकर गाँव की तरफ चल दिया और जल्दी ही वह थक गया | उसने लकडियो का गट्ठर जमीन पर पटकते हुए कहा, “ इससे तो अच्छा हो यमराज उठा ही ले मुझे |”

ठीक उसी समय यमराज वंहा से गुजरे | बूढ़े के दर्द भरे शब्द सुनकर उन्हें दया आ गई | उन्होंने सोचा क्यों न इस बूढ़े को अपने साथ ले ही जाऊ | इसे इसके दर्दो से भी मुक्ति मिल जायगी | यमराज बूढ़े के समक्ष प्रकट हुए और साथ चलने को कहा | बुढा अपनी बात से तुरंत मुकर गया और कहने लगा  “मेने तो गट्ठर उठाने के लिए मदद मांगी थी |”

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बेलो की नासमझी

बहुत समय की बात है, जंगल में चार बेल रहते थे | उनका आपस में बहुत प्रेम था | वे आपस में घूमते, साथ खाते पीते और कभी भी झगड़ा नहीं करते थे | उसी जंगल में शेर भी रहता था | बेलो को देखकर वह उन्हें खाने के लिए नए नए उपाय करता, ताकि वह उन्हें खा सके | पर उन चारो को एक साथ देख कर निराश हो जाता था |

और एक दिन उसने चारो बेलो को लड़ाने का उपाय सोच लिया | वह उन चारो बेलो के पास जाकर इधर-उधर घुमने लगा | बेल उसे अपने इतने पास घूमता देखकर डर गए | घबराहट के कारण वे एक दुसरे से अलग हो गए | बस शेर को तो इसी मोके की तलाश में था | वह बारी-बारी से एक-एक बेल के पास गया और उनके कान में कुछ कहा – “कुछ नहीं” और फिर वहा से चला गया और दूर कही पेड़ के पीछे छिप गया | अब क्या था चारो बेल यह जानने को उसुक्त थे की शेर ने उनके कान में क्या कहा |

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पछतावे के आँसू

संजय बहुत अच्छा बच्चा था पर उसको चोरी करने की बहुत बुरी आदत थी अध्यापक महोदय उसे कई बार दंड भी दे चुके थे और कई बार धमकी भी दे चुके थे | परंतु फिर भी वो बच्चो के बस्तों से उनकी चीजे खो जाती थी | सभी का शक संजय पर ही था की उनके बस्तों से वही चीजे चुराता है | और एक दिन आखिर एक दिन अध्यापक ने संजय को तेज आवाज में डांटते हुए कहा, यदि अब किसी भी बच्चे का सामान चोरी हुआ, तो तुम्हे में पाठशाला से निकाल दुगा |

इस बात को कुछ दिन बीत गए और एक दिन एक बच्चा अचानक रोने लगा | अध्यापक के पूछने पर उसने बताया की उसकी गणित की किताब खो गई है | यह सुन अध्यापक महोदय बहुत नराज हुए और उन्होंने उस बच्चे को सबके बसते में अपनी किताब ढूंढने को कहा | सभी के बस्तों में देखने के बाद आखिर किताब पंकज के बसते में से मिली | यह देख कर अध्यापक को बहुत आश्चर्य हुआ की पंकज जैसा ईमानदार और मेहनती बालक भी चोरी क्र सकता है | पूरी कक्षा में सन्नाटा सा छा गया हो, सब एकदम चुप होकर इधर-उधर देखने लगे, क्योकि किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था की पंकज जैसा बच्चा ऐसा कर सकता है | इसलिए अध्यापक ने भी उसे कुछ नहीं कहा सिर्फ आगे से ऐसा न करने को कहकर बेठा दिया |

कुछ देर बाद अध्यापक के बाहर जाते ही संजय ने पंकज से पूछने लगा –“अरे | किताब तो मेने चुराई थी, लेकिन वह तुम्हारे बस्ते में कैसे चली गई?”

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