शिक्षा का उदेश्य

शिक्षा का मुख्य उदेश्य मानव के व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास करना है | किंतु मुख्य रूप से तीन प्रकार का विकास ही महत्वपूर्ण है | सुप्रसिद शिक्षा शास्त्री जॉन डी वी का भी यही मत है उन्होंने लिखा है की हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाइये जिसमे कि विधर्थियो का शारीरिक, मानसिक, और नैतिक विकास भली भांति हो सके |

सर्वप्रथम शिक्षा इस प्रकार से दी जानी चाहिये ताकि विधार्थियो का शारीरिक स्वास्थ्य बना रहे | क्योकि शरीर का स्वास्थ्य होना जीवन की सबसे बड़ी सम्पति है | इसी स्वास्थ्यता पर समाज के सभी काम निर्भर है | आज का विधार्थी कल का नागरिक है | एक विधार्थी अच्छा नागरिक तभी बन सकता है जबकि उसका शारीर स्वास्थ्य होगा | किसी ने कितना ही सुंदर कहा है| स्वास्थ्य शरीर में ही स्वाथ्य आत्मा निवास करती है | विधर्थियो को अच्छा नागरिक बनाने के लिए उन्हें किताबी ज्ञान के अतिरिक्त शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिये उचित शिक्षा दी जानी चाइये | विधाय्लो में व्यायम, खेल खुद और भ्रमण इत्यादि को उचित स्थान दिया जाये |

विधायलो में शरीरिक शिक्षा के अतिरिक्त मानसिक शिक्षा भी सुचारू रूप से दी जानी चाइये | कोर्स की किताबो के विषय विधार्थियो की रुची के अनुसार होने चाहिये | कुछ विषय ऐसे भी होने चाहिये जिसमे कि बच्चो को अपनी संस्कृति के विषय में पूण ज्ञान हो उन्हें इस ढंग से पढाया जाना चाहिये ताकि वे भी संस्कृति के विशाल भवन को सुरक्षित रख सके | यदि ऐसा न किया गया तो जिन महान पुर्वजो ने संस्कृति रूपी विशाल भवन को खड़ा किया था वह गिर कर राख हो जायेगे |

Read more

अहंकार का अंत

पक्षियों की सभा ही रही थी | सभा में तय होना था कि उनका राजा कोन बनेगा | इस मुदे पर कुछ पक्षी लड़ने लगे | यह देख कर सब से बुज़ुर्ग पक्षी, जिसे सभी लोग संत कहते थे ने कहा, “राजा वाही बन सकता है जिसमें ताकत हो, सूझभूझ हो और जो अपने समाज को एकजुट रख सके |

यह सुन सभी पक्षी एक दुसरे को देखने लगे | उसी समय एक पक्षी ने खड़े होकर कहा, “में सबसे शक्तिशाली हू इसलिय में राजा बनूगा | उसकी बगल में पंख फेलाए दुसरे पक्षी ने कहा, “तुमसे जयादा शक्तिशाली और बुदिमान में हू | इसलिय राजा बनने का मोका मुझे मिलना चाहिय |’ जब सर्व्सम्ह्ती से तय नहीं हुआ कि राजा कोन बने तो संत ने कहा, ‘तुम दोनों लड़ो | जो जीत जाएगा वही राजा बनेगा |’ दोनों आपस में लड़ने लगे | पहले वाले पक्षी ने छल कपट से जीत हासिल कर ली | संत ने उसे विजयी घोषित कर दिया | सभी विजयी पक्षी के इर्द गिर्द जमा होकर उसका गुणगान करने लगे |

Read more

आज के वैज्ञानिक युग में मानव मूल्य गिरते जा रहे है

मेरे दोस्तों ने आज के विषय पैर काफी कुछ कहा किन्तु किसी ने यह स्पषट नहीं किया की विज्ञान क्या है और मानव मूल्य क्या है! विज्ञान का अर्थ है विशैष ज्ञान जिसके इस्तमाल सा इन्सान को अधिक से अधिक किंतु सचे सुख की प्राप्ति हो और मानव मानव बन सके ! मानव मूल्य का अर्थ है ऐसे गुण, ऐसी भावनाए जिनसे मानव साधारण दिनचर्या से ऊपर उठ कर एक दुसरे के प्रति प्रेम, विश्वास तथा सहानुभूति पैदा करे! जिस समय विज्ञान का जन्म हुआ उस समय तथा उसके बाद भी कई वर्षो तक मानव विज्ञान के परयोग से सुख प्राप्त करता रहा और अपना जीवन अनद से वतित करता रहा! किंतु जब मानव ने विज्ञान को जीवन का सब कुछ, जीवन का सर्वस्य मान लिया तो उसका आनंद और सुख भय, असंतोष तथा दुःख में बदल गया! आज इस २०वि शताब्दी में तो हालत और भी ख़राब है तथा दिन ब दिन ख़राब होती जा रही है ! मानव मूल्य गिरते जा रहे है!

विज्ञान दवारा प्रकति के रहस्यों को जानने के लिए कुछ देशो के कुछ लोगो के हाथ में असीम शक्ति आ जाने के कारण आज संसार में प्रतिस्प्रथा, कश्मकश और धन वैभव पाने की भावना ने इंसान को मास की हर्दय शुन्य मशीन बना दिया है |

यह ठीक है कि आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रो तथा दुसरे साधनों से पैदा होने वाली धन दोलत ने मानवता को भोतिक समृधि दी है | पर एक बात यह भी निशित है कि भोतिक समृधि से संसार को चकाचोंध में डाला जा सकता है किंतु श्रदा से झुकाया नहीं जा सकता | शायद सही कारण है कि आज अमेरिका तथा उसके पद चिन्हों पर चलने वाले देश अपनी भोतिक समृधि के बलबूते पर संसार के महान देश तो माने जाते है  किंतु नेतिक तथा आत्मिक कि दृष्टि से कई कदम पिछड़े हुए है |

Read more